शुरुआती के लिए रणनीतियाँ

अभौतिक खाता

अभौतिक खाता
मकर संक्राति भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है. इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है. ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं. प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है जिन्हें, शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है. इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती हमें अनाज देती है जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है.

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Gayatri Pariwar

हम चाहे आशावादी हों या निराशावादी, यह सांसारिक जीवन हमारे लिए दुःखपूर्ण अवश्य प्रतीत होता है। बच्चा जब से अपनी माँ के उदर में आता है उसे दुःख का अनुभव होने लगता है। मनुष्य अपने जीवन के शुरू से लेकर अन्त तक दुःख के अनेकों जागृत स्वप्न देखा करता है। मनुष्य इन दुःखों से मुक्त होना चाहता है और इस सम्बन्ध में नाना प्रकार की कल्पनायें किया करता है, जो निम्न लिखित हैं-

1.इस लोक के बाहर परन्तु व्यक्त जगत के अन्दर ही किसी दूसरे लोक में।

2. इस लोक के भीतर ही परन्तु अतीत के क्षेत्र में।

3. इस गोचर जगत से परे अभौतिक और अव्यक्त क्षेत्र में।

4. इस लोक के भीतर परन्तु भविष्य के गर्भ में।

1. यही कारण है कि कुछ लोग इस संसार को दुःखमय समझ कर एक स्वर्ग की कल्पना करते हैं जो हमारे व्यक्त जगत के भीतर किसी अन्य लोक में होता है। उस स्वर्ग में हम उन्हीं सुखों की अधिकता देखते हैं, जिनका यहाँ अभाव होता है। उस स्वर्ग में हमें वही आनन्द प्राप्त होता है, जो इन साँसारिक दुःखों के अभाव में प्राप्त होता है। स्वर्ग के प्राणी हमें अजर और अमर दिखाई पड़ते हैं। वहाँ खाने पीने के लिए बहुत सुन्दर स्वादिष्ट पदार्थ-अमृतादि मिलते हैं। स्वर्ग का सुख इन भौतिक दुःखों का अभाव ही है।

2. दूसरे प्रकार के लोग वे हैं, जो इस समय तो दुःख ही दुःख देखते हैं, परन्तु उनकी निगाह में अतीत का युग सुख ही सुख का युग था। वे राम राज्य को अपना सब कुछ समझते हैं और उसी की प्राप्ति के लिए चिन्तित दिखाई पड़ते हैं। ऐसे लोगों की सम्मति से यह दुःख, जिसका भयानक रूप हम अपनी आंखों के सामने देखते हैं अतीत के युग में न था। पुराणों में ऐसे सुखों का वर्णन है, सभी धर्मात्मा ऐसे सुखों का उपभोग करेंगे।

3. तीसरे तरह के व्यक्तित्व के मनुष्य अतीत युग के युग को सुख का युग नहीं मानते। वे भविष्य में सुख का युग (स्वप्न) देखते हैं। ऐसे मनुष्य जिस प्रकार के सुखों की कल्पना किया करते हैं अथवा कर सकते हैं, वह उन्हें भविष्य में ही प्राप्त होंगे। उनके लिए भविष्य बड़ा ही सुन्दर है, वहाँ वर्तमान की आशा भविष्य पर निर्भर है। अभौतिक खाता इतना सब होते हुए भी उनके भविष्य के सुखों का रूप निश्चित नहीं हैं। ऐसे अनिश्चित सुखों के लिए बहुत से लोग वर्तमान के प्रति विद्रोह करते दिखाई देते है।

4. इन तीन प्रकार के मनुष्यों के अलावा कुछ चौथे प्रकार के भी मनुष्य हैं, जो व्यक्त जगत और ज्ञात कारण में सुख के रूप का दर्शन नहीं पाते। वे अनन्त और किसी अव्यक्त स्थल में अनादि प्राप्ति की आशा करते हैं। हमारे छायावादी लेखक इसी चतुर्थ श्रेणी में आते हैं। छायावादी लेखक का प्रेम एक अनन्त, अव्यक्त और अनिश्चित वस्तु के प्रति होता है। अतः वहाँ तृप्ति का प्रश्न ही वहीं उठता।

अमुक स्थान में, अमुक काल में, अमुक वस्तु में सुख ढूँढ़ने वाले वस्तुतः दुःख के वास्तविक रूप को नहीं समझते, इसीलिए उसके संबंध में विविध प्रकार की कल्पनाएं किया करते हैं। सुख-दुःख का स्थान, काल एवं वस्तु से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। वह तो एक मनोवृत्ति, भावना एवं मान्यता है, जिसे मनुष्य स्वेच्छा पूर्वक किसी में भी आरोपित करके सुखी या दुखी बन सकता हैं। लोभी के लिए धन सब कुछ है, त्यागी के लिए वही भार है। कामी के लिए कामिनी में स्वर्ग है, ब्रह्मचारी को वही नरक दिखाई पड़ती है। आत्म वादी के लिए स्वाध्याय और तप में जीवन लाभ है, भौतिकवादी के लिए जप-तप में समय लगाना एक प्रकार की बेवकूफी है। आज जो घोड़ा अपना होने के कारण परम प्रिय लगता है, कल उसके बिक जाने पर ममत्व न रहने के कारण उससे कोई संबंध नहीं। गरीबों के मस्त रहते और अमीरों को चिन्ता में कुढ़ते देखा जाता है। सतयुग आदि पूर्व युग में भी दुष्ट लोग तथा कष्टकारक कारण मौजूद थे और इस युग में भी सज्जन तथा आनन्द के हेतु मौजूद हैं। स्वर्ग में भी देवता लोग, मनुष्यों की भाँति ही मानसिक उद्वेगों से दुखी रहते हैं, वहाँ भी भोग वस्तुएं उन्हें पूर्ण सन्तोष नहीं दे पातीं। इससे प्रगट है कि सुख-दुःख किसी बाह्य कारण पर अवलम्बित नहीं हैं।

स्ख का एक मात्र केन्द्र मनुष्य के अन्तःकरण में है। जब वह अपनी मनोवृत्ति का समुचित परिमार्जन करके उन्हें पवित्र बना लेता है, तो उसे हर घड़ी, हर परिस्थिति में, दर वस्तु में आनन्द, प्रेम और सन्तोष का दर्शन होता है। उस स्थिति को प्राप्त करने के जो मनोवैज्ञानिक प्रयत्न है, उन्हें ही धर्म धारणा या आत्म साधना कहते हैं।

मकर संक्राति खान-पान 2023 (Makar Sankranti Food and Dishes)

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मकर संक्राति भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है. इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से है. ये तीनों चीजें ही जीवन अभौतिक खाता का आधार हैं. प्रकृति के कारक के तौर पर इस पर्व में सूर्य देव को पूजा जाता है जिन्हें, शास्त्रों में भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है. इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती हमें अनाज देती है जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है.

मकर संक्रांति में सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण में आने का स्वागत किया जाता है. शिशिर ऋतु की विदाई और बसंत का अभिवादन तथा अगहनी फसल के कट कर घर में आने का उत्सव मनाया जाता है. उत्सव का आयोजन होने पर सबसे पहले खान-पान की है चर्चा होती है. मकर संक्रांति पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीके और नाम से मनाया जाता है. उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है. परंतु, एक गौरतलब बात यह है कि मकर संक्राति के नाम, तरीके और खान-पान में अंतर के बावजूद सभी में एक समानता यह है कि इसमें व्यंजन तो अलग-अलग होते हैं किन्तु उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री एक सी होती है.

देश भर में लोग अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं. इन सभी सामग्रियों में सबसे ज्यादा महत्व तिल का दिया गया है. इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाएं किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए. इस दिन तिल के महत्व के कारण मकर संक्रांति पर्व को तिल संक्राति के नाम से भी पुकारा जाता है. मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं.

मकर संक्रांति खान-पान का भौतिक एवं धार्मिक आधार (The religious and practical basis of Makar Sankranti foods)

मकर संक्रांति का पर्व माघ मास में मनाया जाता है. भारतवर्ष में माघ महीने में सबसे अधिक ठंढ़ पड़ती है अत: शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन किया जाता है. मकर संक्रांति में इन खाद्य पदार्थों के सेवन का यह भौतिक आधार है. इन खाद्यों के सेवन का धार्मिक आधार भी है. शास्त्रों में लिखा है कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं. अगर व्यक्ति तिल का सेवन नहीं कर पाता है तो सिर्फ तिल-तिल जप करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है.

तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भी है कि, सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं. मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं. अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्राति में किया जाता है.

चावल, गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह है कि इस समय ये फसलें तैयार होकर घर में आती हैं. इन फसलों को सूर्य देवता को अर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि हे देव आपकी कृपा से यह फसल प्राप्त हुई है अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चात प्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें जो हमारे शरीर को उष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे.

मकर सक्रांति में बिहार और उत्तर प्रदेश का खान-पान (Makar Sankranti Dishes from Bihar and Uttar Pradesh)

बिहार एवं उत्तर प्रदेश में खान-पान लगभग एक जैसा होता है. दोनों ही प्रांत में इस दिन अगहनी धान से प्राप्त चावल और उड़द की दाल से खिंचड़ी बनाई जाती है. कुल देवता को इसका भोग लगाया जाता है. लोग एक-दूसरे के घर खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार के अन्य व्यंजनों का आदान-प्रदान करते हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग मकर संक्राति को खिचड़ी पर्व के नाम से भी पुकारते हैं. इस प्रांत में मकर संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही, गुड़ एवं तिल के लड्डू भी खाते हैं. चूड़े एवं मुरमुरे की लाई भी बनाई जाती है.

मकर सक्रांति में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का खान-पान (Makar Sankranti Foods from Chhatisgarh)

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मकर संक्रांति के दिन बिहार और उत्तर प्रदेश की ही तरह खिचड़ी और तिल खाने की परम्परा है. यहां के लोग इस दिन गुजिया भी बनाते हैं.

मकर सक्रांति में दक्षिण भारत का खान-पान (Makar Sankranti Dishes From South India)

दक्षिण भारतीय प्रांतों में मकर संक्राति के दिन गुड़, चावल एवं दाल से पोंगल बनाया जाता है. विभिन्न प्रकार की कच्ची सब्जियों को लेकर मिश्रित सब्जी बनाई जाती है. इन्हें सूर्य देव को अर्पित करने के पश्चात सभी लोग प्रसाद रूप में इसे ग्रहण करते हैं. इस दिन गन्ने खाने की भी परम्परा है.

मकर सक्रांति में पंजाब एवं हरियाणा प्रांत में खान-पान (Makar Sankranti Foods from Hariyana and Punjab)

पंजाब एवं हरियाणा में इस पर्व में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में मक्के की रोटी एवं सरसों के साग को विशेष तौर पर शामिल किया जाता है. इस दिन पंजाव एवं हरियाणा के लोगों में तिलकूट, रेवड़ी और गजक खाने की भी परम्परा है. मक्के का लावा (पोपकोर्न) , मूंगफली एवं मिठाईयां भी लोग खाते हैं.

चित्त : मन का सबसे भीतरी हिस्सा जो जोड़ता है चेतना से

मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो। यहां कोई स्मृति नहीं होती है। हर तरह की बातें कही गई हैं – ‘ईश्वर बड़ा दयालु है, ईश्वर प्रेम है, ईश्वर यह है, ईश्वर वह है।’ मान लीजिए कि किसी ने भी ये सारी बातें आपसे न कहीं होतीं और आप बिना कुछ सुने या माने बस अपने आसपास की सृष्टि को ध्यान से देखते कि कैसे एक फूल खिलता है, कैसे एक पत्ती निकलती है, कैसे एक चींटी चलती है। अगर आप इन सारी चीजें पर पूरा ध्यान देते तो इस नतीजे पर आपका पहुंचना तो तय था कि इस सृष्टि का स्रोत जो भी है, उसमें अद्भुत इन्टेलिजेन्स है, वह प्रज्ञावान है। सृष्टि की हर चीज में एक जबरदस्त इन्टेलिजेन्स है, जो हमारे काफी तेज़ दिमाग से बहुत परे है।

चित्त का समबन्ध अभौतिक आयाम से है

चित्त मन का सबसे भीतरी आयाम है, जिसका संबंध उस चीज से है जिसे हम चेतना कहते हैं। अगर आपका मन सचेतन हो गया, अगर आपने चित्त पर एक खास स्तर का सचेतन नियंत्रण पा लिया, तो आपकी पहुंच अपनी चेतना तक हो जाएगी।

हम लोग जिसे चेतना कह रहे हैं, वो वह आयाम है, जो न तो भौतिक है और न ही विद्युतीय और न ही यह विद्युत चुंबकीय है। यह भौतिक आयाम से अभौतिक आयाम की ओर एक बहुत बड़ा परिवर्तन है। यह अभौतिक ही है, जिसकी गोद में भौतिक घटित हो रहा है। भौतिक तो एक छोटी सी घटना है। इस पूरे ब्रह्माण्ड का मुश्किल से दो प्रतिशत या शायद एक प्रतिशत हिस्सा ही भौतिक है, बाकी सब अभौतिक ही है।

योगिक शब्दावली में इस अभौतिक को हम एक खास तरह की ध्वनि से जोड़ते हैं। हालांकि आज के दौर में यह समझ बहुत बुरी तरह से विकृत हो चुकी है, इस ध्वनि को हम ‘शि-व’ कहते हैं। शिव का मतलब है, ‘जो है नहीं’। जब हम शिव कहते हैं तो हमारा आशय पर्वत पर बैठे किसी इंसान से नहीं होता। हम लोग एक ऐसे आयाम की बात कर रहे होते हैं, जो है नहीं, लेकिन इसी ‘नहीं होने’ के अभौतिक आयाम की गोद में ही हरेक चीज घटित हो रही है।

चित्त मन के सोलह आयामों में से एक है

तो यह हमारे भीतर मौजूद इन्टेलिजेन्स व प्रज्ञा का आयाम है, जो एक तरीके से हमारे निर्माण का आधार है। अगर आप रोटी का एक टुकड़ा खाते हैं, तो कुछ घंटों में रोटी इंसान में बदल जाएगी, क्योंकि यह इन्टेलिजेन्स व प्रज्ञा आपके और हमारे भीतर मौजूद है। योगिक संस्कृति में बेहद शरारती ढंग से कहा गया है, ‘अगर आप अपने चित्त को छू लेंगे, अगर आप अपनी इन्टेलिजेन्स के उस आयाम तक पहुंच जाएंगे, तो ईश्वर भी आपका दास हो जाएगा।’ आपको सोचना नहीं होगा कि आप क्या चाहते हैं, जो चाहिए आपको उसकी तलाश भी नहीं करनी होगी। अगर आप इस इन्टेलिजेन्स तक पहुंच गए तो आप जिस चीज को भी जानने की कामना करेंगे, वह आपकी हो जाएगी। आपको बस अपना ध्यान सही दिशा में केंद्रित करना होगा और सब कुछ आपके पास होगा, क्योंकि चित्त का आयाम मौजूद है। हर इंसान किसी न किसी समय इत्तेफाक से इस आयाम तक शायद पहुंच पाया हो – यह क्षण अचानक उस इंसान की जिंदगी को एक जादुई अहसास से भर देता है। अब सवाल सिर्फ यह है कि सचेतन तरीके से वहां कैसे पहुंचा जाए और वहां कैसे कायम रहा जाए।

मन के ये आयाम पूरी तरह से मस्तिष्क में स्थित नहीं होते, ये पूरे सिस्टम में होते हैं। तो ये आठ तरह की स्मृतियां, बुद्धि के ये पांच आयाम और अहंकार यानी पहचान के दो आयाम व चित्त कुल मिलाकर मन के सोलह हिस्से होते हैं। चित्त चूंकि असीमित होता है, इसलिए यह सिर्फ एक ही होता है।

डिपॉजिटरी को परिभाषित करना

depository

डिपॉजिटरी मालिकों को आवश्यक भौतिक संपत्ति रखने के जोखिम को खत्म करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान उपभोक्ताओं को एक समय में मांग पर प्रतिभूतियों को जमा करने का अवसर प्रदान करते हैं यामांग पर जमा खाते और जब भी आवश्यकता हो उन्हें वापस ले लें।

सावधि जमा उस खाते को संदर्भित करता है जिस पर ब्याज होता है और जिसकी परिपक्वता तिथि होती है, जैसेजमा का प्रमाण पत्र (सीडी)। दूसरी ओर, मांग जमा खाते में तब तक धनराशि होती है जब तक आप उन्हें वापस नहीं लेना चाहते, जैसे बचत या खातों की जांच करना।

शेयर बाजार में डिपॉजिटरी

प्रतिभूतियों के रूप में भी जमा किया जा सकता है, जैसेबांड या स्टॉक। इन संपत्तियों को जमा करते समय, संस्था इलेक्ट्रॉनिक रूप से सुरक्षा रखती है, और इसे बुक-एंट्री फॉर्म भी कहा जाता है। यह भौतिक प्रमाणपत्रों की तरह कागज़ या डीमटेरियलाइज़्ड प्रारूप में भी हो सकता है।

निक्षेपागार की आवश्यकता

वे आम जनता के लिए कई उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। ग्राहक वित्तीय संस्थान को पैसा दे सकते हैं, यह विश्वास करते अभौतिक खाता हुए कि वह धन धारण करेगा और आवश्यकता पड़ने पर ग्राहक को वापस दे देगा।

डिपॉजिटरी ग्राहकों का पैसा स्वीकार करते हैं और एक निश्चित अवधि के लिए जमा पर ब्याज का भुगतान करते हैं। एक डिपॉजिटरी उच्च सुरक्षा सुनिश्चित करता है औरलिक्विडिटी मेंमंडी और जमा किए गए धन का उपयोग दूसरों को उधार देने, प्रतिभूतियों में निवेश करने और निधियों के लिए स्थानांतरण प्रणाली की पेशकश करने के लिए सुरक्षित रखने के लिए करता है। हालांकि, अनुरोध पर, डिपॉजिटरी को जमा राशि को ठीक उसी स्थिति में वापस करना होगा जैसा कि जमा किया गया है।

डिपॉजिटरी सेवाएं

  • निवेशकों के बीच की खाई को पाटना orशेयरधारकों और सार्वजनिक कंपनियां:

एक डिपॉजिटरी वित्तीय प्रतिभूतियों और शेयरधारकों या निवेशकों को जारी करने वाली सार्वजनिक फर्मों के बीच संबंध के अभौतिक खाता रूप में कार्य करता है। डिपॉजिटरी से जुड़े एजेंट प्रतिभूतियां जारी करते हैं, और इन एजेंटों को कहा जाता हैनिक्षेपागार सहभागी. उन्हें डिपॉजिटरी से निवेशकों को सिक्योरिटीज ट्रांसफर करनी होगी। कोई भी संस्था,बैंक, या ब्रोकरेज एक डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट हो सकता है।

  • वित्तीय प्रतिभूतियों के भौतिक स्वरूप के स्वामित्व से जुड़े जोखिमों को समाप्त करना:

एक डिपॉजिटरी निवेशकों और व्यापारियों को प्रतिभूतियों के अभौतिक रूप को धारण करने की अनुमति देता है और इस प्रकार, वित्तीय प्रतिभूतियों के भौतिक रूप को धारण करने से जुड़े जोखिमों को समाप्त करता है। खरीदारों और विक्रेताओं को यह जांचने की आवश्यकता नहीं है कि क्या प्रतिभूतियां बिना किसी चोरी या हानि के सफलतापूर्वक स्थानांतरित हो गई हैं। डिपॉजिटरी सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रतिभूतियों को रखने और स्थानांतरित करने की अनुमति देकर ऐसे जोखिमों को कम करता है।

  • इच्छुक पार्टियों को ऋण या गिरवी रखने की अनुमति:

डिपॉजिटरी ग्राहकों की प्रतिभूतियां रखते हैं और जब चाहें उन्हें वापस कर देते हैं। ग्राहक को जमा पर ब्याज मिलता है। इसके विपरीत, डिपॉजिटरी अन्य जरूरतमंद लोगों या व्यवसायों को ऋण या बंधक के रूप में समान जमा उधार देकर अधिक ब्याज अर्जित करते हैं।

कागजी कार्रवाई को कम करना और सुरक्षा हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेज करना: एक व्यापार के दौरान, एक डिपॉजिटरी प्रतिभूतियों के स्वामित्व को एक से स्थानांतरित करता हैइन्वेस्टर अन्य के लिए। यह व्यापार को अंतिम रूप देने के लिए जटिल कागजी कार्रवाई को कम करने में मदद करता है और प्रतिभूतियों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को गति देता है।

डिपॉजिटरी के प्रकार

यहां डिपॉजिटरी संस्थानों की तीन महत्वपूर्ण श्रेणियां हैं:

1. वाणिज्यिक बैंक

ये मुख्य रूप से लाभकारी संगठन हैं और निजी निवेशकों के स्वामित्व में हैं। वे पेशकश करते हैं aश्रेणी सेवाओं की, बैंकों के आकार के अनुसार अलग-अलग। छोटे बैंक सीमित सेवाएं प्रदान करते हैं, जिनमें उपभोक्ता बैंकिंग, छोटे ऋण, गिरवी, लघु-व्यवसाय बैंकिंग आदि शामिल हैं। छोटे बैंकों के लिए, बाजार सीमा भी सीमित है। इसके विपरीत, बड़े और वैश्विक बैंक विदेशी मुद्रा, निवेश बैंकिंग और धन प्रबंधन सहित अधिक सेवाएं प्रदान करते हैं। कभी-कभी, वे अन्य प्रमुख संगठनों और बैंकों के लिए भी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। बड़े बैंकों द्वारा दी जाने वाली सेवाएं अन्य सभी डिपॉजिटरी की तुलना में अधिक विविध हैं।

2. क्रेडिट यूनियन

ये कुछ समूहों के सदस्यों के स्वामित्व वाली वित्तीय सहकारी समितियाँ हैं। इन डिपॉजिटरी द्वारा अर्जित लाभ या तो उनके सदस्यों द्वारा लाभांश के रूप में प्राप्त किया जाता है या संगठन में पुनर्निवेश किया जाता है। क्रेडिट यूनियन के सदस्य संस्थागत खातों के मालिक हैं; इस अभौतिक खाता प्रकार, जमाकर्ता भी आंशिक मालिक बन जाते हैं और लाभांश प्राप्त करने के पात्र होते हैं। चूंकि क्रेडिट यूनियन गैर-लाभकारी संस्थाएं हैं, इसलिए उन्हें किसी भी राज्य कर का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए, इस मामले में कम ब्याज परिवर्तन होता है, और वे जमा पर उच्च दरों का भुगतान करते हैं।

3. बचत संस्थान

ऋण संस्थानों और स्थानीय समुदायों की सेवा करने वाले बैंक बचत संस्थान हैं। निवासी वे हैं जो बैंक में पैसा जमा करते हैं जिसे बाद में गिरवी के रूप में वापस पेश किया जाता है,क्रेडिट कार्ड, उपभोक्ता ऋण, और छोटे व्यवसायों के लिए अन्य ऋण। जमाकर्ताओं को संगठन के स्वामित्व शेयर प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए इन्हें वित्तीय सहकारी समितियों या निगमों के रूप में स्थापित किया जा सकता है।

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