शुरुआती के लिए रणनीतियाँ

खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

भारतीय बैंकों में कितने प्रकार के खाते खोले जाते हैं?

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता, मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl

बैंक खातों के प्रकार निम्न हैं:-

1. बचत खाता

2. चालू खाता

3. सावधि जमा खाता

4. आवर्ती जमा खाता

5. नो-फ़्रिल अकाउंट या बुनियादी बचत खाता

आइये अब इन खातों के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानते हैं कि कौन सा खाता किन लोगों के द्वारा खुलवाया जाता है l

1. बचत बैंक खाता (Savings Bank Account)

इस प्रकार का खाता किसी भी सरकारी या निजी बैंक में न्यूनतम रुपये जमा करके खुलाया जा सकता हैl यह न्यूनतम जमा राशि हर बैंक में अलग अलग होती है लेकिन ज्यादातर सरकारी बैंकों में यह राशि 1000 रुपये होती हैl इस प्रकार के खाते में धन किसी भी समय जमा किया या निकाला जा सकता है। इस प्रकार के खातों से रुपये निकालने के लिए खाता धारक बैंक में निकासी फॉर्म (withdrawal from), चेक जारी करके या एटीएम कार्ड का उपयोग करके निकाल सकता हैl

हाल ही में बैंकों में भीड़ को रोकने के लिए कुछ बैंकों जैसे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, एक्सिस बैंक आदि ने इस प्रकार के खाते से पैसा निकालने के नये नियम बना दिए हैंl बचत खाता में जमा राशि पर बैंकों द्वारा ब्याज भी दिया जाता है हालांकि यह ब्याज दर हर बैंक में अलग अलग होती है और समय-समय पर बदलती भी रहती हैl बैंक के नियमों के अनुसार खाता धारक द्वारा बचत खाते में एक न्यूनतम शेष राशि (minimum balance) को बनाए रखा जाना चाहिए। बैंक इस प्रकार के खातों में जमा पर ब्याज प्रतिदिन की शेष राशि पर देता है l

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2. चालू जमा खाता (Current Deposit Account)

बड़े व्यवसायी, कंपनियों और संस्थान जैसे स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों को अपने बैंक खातों के माध्यम से भुगतान करना पड़ता है चूंकि बचत खाते के माध्यम से आप अनगिनत जमा या निकासी नही कर सकते इसलिए ऐसे बड़े खाता धारकों के लिए चालू जमा खाता खुलवाना अनिवार्य होता है, क्योंकि इस प्रकार के लोगों को दिन में कई बार पैसे की जरुरत पड़ती है इसलिए ये लोग इस प्रकार के खाते को खुलवाना पसंद करते हैंl चालू जमा खाता पर बैंक, खाता धारक को उसकी जमा राशि पर ब्याज नही देता है बल्कि प्रत्येक साल खाता धारक ही बैंक को एक निश्चित राशि का भुगतान बैंक को करता हैl ग्राहकों की सुविधा के लिए बैंक खाता धारकों को उनकी जमा राशि से अधिक की निकासी की सुविधा भी देता है इसको ओवरड्राफ्ट सुविधा (overdraft facility) के रूप में जाना जाता है।

3. सावधि जमा खाता या मियादी जमा खाता (Fixed Deposit Account or Term Deposit Account)

जिन लोगों के पास प्रचुर मात्रा में धन होता है लेकिन वे लोग शेयर बाजार के रिस्क को झेलना नही चाहते हैं और यदि ऐसे लोग लम्बी अवधि के लिए धन बचाना चाहते हैं तो वे सावधि जमा खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है खाता या मियादी जमा खाता खुलवा लेते हैं l अब आप यहाँ पर यह सोच सकते हैं कि लोग बचत खाता में भी तो पैसे जमा करा सकते हैं फिर सावधि जमा खाता क्यों खुलवाते हैं ? इसका कारण यह है कि बचत खाता पर बैंक बहुत ही कम ब्याज देता है जैसे 3% से 5% वार्षिक परन्तु सावधि जमा खाता में 8% से 10% का ब्याज मिलता है l सावधि जमा खाता की विशेषता यह होती है कि इसमें धन एक निश्चित समय के लिए जमा हो जाता है जैसे 1 साल से लेकर 10 साल तकl यदि कोई खाता धारक किसी खास जरुरत के समय अपने इस सावधि जमा खाता में जमा राशि को निकालना चाहता है तो बैंक उस पर कुछ पेनाल्टी लगाकर उसका शेष धन वापस कर देता है l

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4. आवर्ती जमा खाता (Recurring Deposit खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है Account)

इस प्रकार का खाता उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो नियमित रूप से बचत कर सकते हैं और एक निश्चित समय में जमा राशि पर उचित रिटर्न अर्जित करने की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार का खाता खोलते समय एक व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिए (जैसे 1 साल या 5 साल तक) महीने में एक बार एक निश्चित राशि जमा करनी पड़ती है। इसमें जमाकर्ता को अवधि पूरी होने के बाद पूरी जमा राशि पर ब्याज सहित मूल राशि लौटा दी जाती हैl जमाकर्ता अपने खाते को परिपक्वता से ही खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है पहले बंद कर सकता है और जिस अवधि तक के लिए धन जमा था, पर ब्याज का भुगतान कर दिया जाता हैl इस प्रकार के खातों में जमा राशि पर ब्याज की दर बचत जमा से अधिक, लेकिन सावधि जमा की दर से कम होती है।

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5. बुनियादी बचत खाता (Basic Saving Accounts ): इन खातों को '' नो फ्रिल खाता 'भी कहा जाता था l इस प्रकार के खातों की शुरुआत रिज़र्व बैंक ने 2005 में समाज के वंचित और गरीब लोगों को बैंकिंग सुविधा देने के लिए शुरू की थी l इस प्रकार के खातों को बिना रुपये जमा किये (zero balance) खुलवाया जाता था और खाता धारक को न्यूनतम बैलेंस बनाये रखने की बाध्यता से भी छूट दी गयी थीl सन 2012 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'नो फ्रिल खातों' को बुनियादी बचत खातों (BSBDA-Basic Savings Bank Deposit Account) में बदलने के निर्देश दिए थेl BSBDA दिशानिर्देश "भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, और जिन विदेशी बैंकों की शाखाएं भारत में हैं सभी पर लागू होते हैंl इन बुनियादी बचत खातों धारकों पर खाता के ना चलाने पर या बैंक किसी भी तरह का शुल्क नही लगा सकता हैl बुनियादी बचत खाता धारकों को एक माह में अधिकतम चार निकासी की अनुमति दी जाएगी, जिसमें एटीएम के माध्यम से हुई निकासी भी शामिल है।

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इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत में बैंकिंग व्यवस्था को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है ताकि समाज के सभी वर्गों अमीर, गरीब, मध्यवर्ग और संस्थानों आदि के हितों की रक्षा की जा सके l

खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है

पुलिस वेतन पैकेज (पीएसपी)

पुलिस वेतन पैकेज (पीएसपी)

केंद्रीय पुलिस संगठनों (केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और रेलवे सुरक्षा बलके खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है अलावाअन्य), नागरिक पुलिस, सशस्त्र पुलिस और सभी राज्यों के रिजर्व पुलिस, केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस बल (केंद्र सरकार के नियंत्रण में), राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) -(राज्य पुलिस बल का हिस्सा) पुलिस पैकेज (पीएसपी) के तहत वेतन खातों का लाभ उठा सकते हैं ।

कर्मियों के पदनाम/ निवल मासिक आय के अनुसार पैकेज वेरिएंट

  • सिल्वरः 10,000 से 25,000 रुपये
  • गोल्डः 25,001 से 50,000 रुपये
  • डायमंडः 50,001 रुपये से 1,00,000 रुपये और एसपी और उच्च रैंक के अधिकारियों को।
  • प्लैटिनम: 1,00,000 रुपये से ऊपर और डीआईजी और उच्च रैंक के अधिकारी।
  • सिल्वरः आशुलिपिक, लिपिकीय स्टाफ, सहायक ग्रेड-2, ड्राईवर, हवलदार, आरक्षक, चपरासी, सिपाही, अर्दली, फॉलोवर
  • गोल्डः रजिस्ट्रार (लेखा अधिकारी), एमटीआई, एमटीओ, सहायक क्वार्टर मास्टर, कार्यालय अधीक्षक, सहायक अधीक्षक
  • डायमंडः कनिष्ठ स्टाफ अधिकारी, जिला कमांडेंट
  • प्लैटिनमः डीजी, आईजी, सहायक कमांडेंट जनरल, वरिष्ठ स्टाफ अधिकारी
  • शून्य अधिशेष खाता तथा किसी भी बैंक के एटीएम पर निःशुल्क असीमित लेनदेन। एसबीआई क्रेडिट कार्ड के साथ जोड़ कर भी उपलब्ध।
  • 20 लाख रु. तक का निःशुल्क वैयक्तिक दुर्घटना बीमा (मृत्यु) कवर।
  • 30 लाख रु. तक का निःशुल्क वायु दुर्घटना बीमा (मृत्यु) कवर
  • आकर्षक दरों पर वैयक्तिक ऋण, आवास ऋण, कार ऋण तथा शिक्षा ऋण प्राप्त करें तथा प्रक्रिया शुल्क में 50% छूट।
  • लॉकर प्रभार में 25% तक की छूट। सृजित करने के लिए ऑटो-स्वीप का लाभ उठाएँ तथा अधिक ब्याज प्राप्त करें।
  • शुरू में (ऑन-बोर्डिंग के समय) ही डीमैट तथा ऑनलाइन ट्रेडिंग खाता खुलवाएँ।
  • निःशुल्क ड्राफ्ट, मल्टी सिटी चैक, एसएमएस अलर्ट जारी करना । निःशुल्क ऑनलाइन एनईएफटी/आरटीजीएस।
  • दो माह के निवल वेतन के बराबर की राशि का ओवरड्राफ्ट (वर्तमान में केवल चयनित ग्राहकों के लिए ही उपलब्ध)
  • हमारे लॉयल्टी कार्यक्रम एसबीआई रिवार्ड्ज के जरिए विभिन्न लेनदेनों पर प्वाइंट पाएँ। तथा योनो बाई एसबीआई पर विभिन्न प्रकार के नियमित ऑफर।

Note 1: वेतन पैकेज के लाभ बैंक की प्रणाली के संबंधित पैकेज एवं प्रकार के बचत बैंक खाते के वर्गीकरण के अधीन होंगे। भारतीय स्टेट बैंक खातों के जरिए वेतन प्राप्त करने वाले सभी ग्राहकों को बचत बैंक खाते को संबंधित वेतन पैकेज/प्रकार में बदलने के लिए वेतन एवं रोजगार प्रमाण के साथ अपनी होम शाखा में आवेदन करना होगा (Conversion Forms)।

Note 2: यदि लगातार 3 महीनों से अधिक महीनों के लिए खाते में मासिक वेतन जमा नहीं किया जाता है, तो वेतन पैकेज के अंतर्गत दी जानी वाली विशेष सुविधाएं रोक ली जाएंगी और उसे हमारी मानक प्रभार संरचना के अंतर्गत सामान्य बचत खाता माना जाएगा। सामान्य बचत खातों पर लागू सभी प्रभार लगाए जाएंगे।

चेक कितने प्रकार के होते है? | Types of Cheque in Hindi

चेक क्या है? (What is Cheque in Hindi)

हम सब ने चेक को कभी ना कभी देखा है। वैसे तो चेक एक कागज है परंतु उसकी कीमत लाखों की हो सकती है। बैंक के द्वारा खाताधारक को चेक दिया जाता है। चेक भुगतान के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके जरिए डायरेक्ट पैसे ना दे कर भुगतान किया जा सकता है।

चेक में कुछ माहिती देनी पड़ती है जैसे कि आप जिसे पैसे देना चाहते हो उसका नाम लिखना होता है। साथ ही साथ आपको उस व्यक्ति को कितने पैसे देने हैं वह भी लिखना होता है। चेक देने की तारीख और आखिर में आपके हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। चेक हासिल करने वाला व्यक्ति चेक को बैंक में ले जाकर जमा कराता है और अपने अकाउंट में डाल देता है। इसके बाद जितनी रकम आपने उसे दी होगी इतनी रकम उसके अकाउंट में ट्रांसफर हो जाएगी।

सरल शब्दों में कहे तो चेक, बिना केस का भुगतान है जैसे इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर।

चेको का स्थान के आधार पर वर्गीकरण (Categorization of Cheque by Location)

स्थानीय चेक (Local cheque)

यदि आपको आपके ही शहर में चेक को क्लियर करवाना हो तो उसे स्थानीय चेक कहते हैं। यानी कि city a का चेक city a मैं ही क्लियर हो तो उसे स्थानीय चेक कहते हैं। दूसरे शब्दों में बताइए तो अगर आपको कोई इस प्रकार का चेक देता है तो आप इसे लेकर शहर के संबंधित ब्रांच में ही चेक को क्लियर करवा सकते हो। अगर आप शहर के बाहर ले जाकर उसे क्लियर करवाओगे तो उसका अलग से पैसा लगेगा।

आउटस्टेशन चेक

अगर आप स्थानीय चेक को शहर के बदले बाहर ले जाकर क्लियर करवाते हो तो उसे आउटस्टेशन Cheque कहते हैं जिसके लिए बैंक आपसे निश्चित किए गए पैसे लेगी।

एट पार चेक

इस प्रकार के चेक के जरिए आप पूरे देश में संबंधित बैंक की शाखा हो से चेक क्लियर करवा सकते हो।

चेकों का मूल्य के आधार पर वर्गीकरण (Classification of cheques by value)

साधारण मूल्य वाले चेक

यदि आप किसी को एक लाख से कम मूल्य वाला चेक देते हो तो उसे नॉरमल वैल्यू चेक कहा जाता है।

ऊंचे मूल्य वाले चेक

यदि आप किसी को एक लाख से ज्यादा रकम वाला चेक देते हो तो उसे हाई वैल्यू चेक कहा जाता है।

उपहार चेक

यदि आप कोई त्योहार के मौके पर अपने प्रिय जनों को उपहार के स्वरुप में चेक गिफ्ट में देते हो तो उसे उपहार चेक कहते हैं। इस प्रकार के चेक की मूल्य राशि ₹100 से लेकर ₹10000 तक की होती है।

चेक मुख्य तीन प्रकार के होते हैं :

खुला चेक (Open Cheque)

इस प्रकार के चेक बैंक में प्रस्तुत कर काउंटर पर ही नकद पैसे प्राप्त किए जा सकते हैं। खुले चेक के क्लियर होने के लिए आपको इंतजार नहीं करना पड़ता। यह गिव एंड टेक मेथड पर कार्य करता है। जिसके जरिए चेक धारण करने वाला व्यक्ति काउंटर में जाकर चेक दिखाकर पैसे ले सकता है या फिर अपने अकाउंट में ट्रांसफर करवा सकता है। यदि वह चाहे तो Cheque के पीछे हस्ताक्षर करके किसी अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकता है।

बेयरर चेक (bearer Cheque)

इस प्रकार के चेक में खाताधारी का कोई भी प्रतिनिधि बैंक में जाकर चेक क्लियर करवा सकता है। प्रतिनिधि को बैंक में चेक देते समय चेक के पीछे हस्ताक्षर करने की जरूरत नहीं होती। इस प्रकार के चेक में रिस्क होता है, क्योंकि अगर आप चेक कहीं पर भूल जाते हो और कोई दूसरा उसे लेकर बैंक में जाता है तो वह भी चेक को भुना सकता है।

क्रॉस्ड चेक (Crossed Cheque)

इस प्रकार के चेक मे किसी विशेष व्यक्ति या संस्था के नाम का उल्लेख किया जाता है। और ऊपर की तरफ बायी ओर दो समांतर लाइने करने में आती है। इस प्रकार के चेक में नकद निकासी नहीं हो सकती। साथ ही साथ Cheque में लिखी गई राशि केवल संबंधित नामित व्यक्ति क्या संस्था के खाते में चली जाती है।

आदेश चेक (Order Cheque)

यदि आप चेक मे bearer शब्द को निकाल कर उसके स्थान पर order लिख देते हो तो उसे आदेश चेक कहते हैं। इस चेक के जरिए आप अपने अकाउंट में पैसे को ट्रांसफर करवा सकते हैं। या फिर चेक के पीछे अपने हस्ताक्षर करके किसी अन्य व्यक्ति के खाते में इसे डलवा सकते हो।

जरुर पढ़ें : लोन के प्रकार

चेक का गारंटी भुगतान के आधार पर वर्गीकरण (Classification of cheques on the basis of guaranteed payment)

सेल्फ चेक : यदि खाताधारक बैंक में प्रत्यक्ष भुगतान के लिए स्वयं जाकर Cheque को प्रस्तुत करता है और भुगतान पाने वाले व्यक्ति के स्थान पर सेल्फ लिखता है तो उसे सेल्फ चेक कहते हैं।

आगे की तारीख वाला चेक : यह एक ऐसा चेक है जिसमे क्रॉस कीया हुआ बेयरर चेक होता है जिसमें आगे की तिथि डाली जाती है। इसका मतलब यह होता है कि इस चेक का भुगतान अंकित तिथि या फिर उसके बाद ही हो सकता है।

पीछे की तारीख वाला चेक : इस प्रकार के चेक मे बैंक में प्रस्तुत करने के पहले की तिथि होती है। इसे अंतिम तारीख से 3 महीने के पूरा होने तक भुनाया जा सकता है।

काल बाधीत चेक : सभी प्रकार के चेक में अंकित तिथि के 3 महीने के अंदर अंदर भुनाने का नियम होता है। अगर कोई कारणवश तिथि पार हो जाती है तो काल बाधीत चेक कहलाता है। इस Cheque को फिर स्वीकार नहीं किया जाता।

Types of Cheque FAQs

1. चेक किसे कहते हैं चेक कितने प्रकार के होते हैं?

Ans : चेक बैंक द्वारा अकाउंट होल्डर को दिए जाने वाला वह भूग्यान का साधन है जिससे ग्राहक किसी अगले व्यक्ति को अपने ही अकाउंट से डायरेक्ट केस न देखकर भुगतान कर सकता है। चेक मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं। 1 खुला चेक खुला चेक। खुला चेक वह चेक है जिसको बैंक में प्रस्तुत कर बैक काउंटर पर ही नगद प्राप्त कर सकते हैं।

2. अधिकतम राशि का चेक कितना होता है?

Ans : अधिकतम राशि का चेक 2 लाख तक होता है।

3. चेक में कितने पक्षकार होते हैं?

Ans : चेक में तीन पक्षकार होते हैं।

4. चेक की वैधता कितने दिन की होती है?

Ans : चेक की वैधता तीन महीने की होती है।

Last Final Word

दोस्तों यह थी चेक के बारे में जानकारी। हम उम्मीद करते हैं हमारी जानकारी से आपको फायदा रहा होगा। अगर आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए।

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वर्गीकरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, लक्षण और उद्देश्य | वर्गीकरण की विशेषताएँ व विधियाँ क्या हैं?

अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्य के लिए जब भी समंकों का संकलन यानि कि आँकड़ों का एकत्रिकरण करते हैं। तो शुरुआत में उन्हें उन एकत्रित आँकड़ों को आसानी से समझने योग्य बनाने के लिए व्यवस्थित करने की अत्यंत आवश्यकता होती है। जिसे व्यवस्थितिकरण अथवा वर्गीकरण कहते हैं।

Classification meaning in hindi

आँकड़ों के वर्गीकरण से तात्पर्य, उन सभी प्रक्रियाओं से होता है जिनकी सहायता से एकत्रित किये गए आँकड़ों को सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया जाता है ताकि खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है उन्हें सरलता से समझने योग्य बनाया जाये। इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं को ख़ासी मशक्क़त करनी पड़ती है। तभी आँकड़ों का वर्गीकरण संभव हो पाता है।

वर्गीकरण की आवश्यकता क्यों होती है? आइये इसे सरल शब्दों में समझते हैं। खोज अथवा अनुसंधान हेतु जब कोई अनुसंधानकर्ता द्वारा समंक यानि कि आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। तो ये आँकड़े शुरू में इतने अव्यवस्थित और विशाल मात्रा में होते हैं कि उन्हें सरलता से समझना अथवा किसी निष्कर्ष पर पहुँचना लगभग असंभव सा लगने लगता है। इसीलिये यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि इन सम्पूर्ण आँकड़ों को सरल व एक निश्चित रूप दे दिया जाए ताकि ये आँकड़े किसी भी व्यक्ति के समझने और निष्कर्ष निकालने लायक बन जायें।

वर्गीकरण क्या है इन हिंदी | Classification in hindi

समंकों को एकसमान विशेषताओं के आधार पर, अलग-अलग सजातीय वर्गों में बाँटने की प्रक्रिया को वर्गीकरण (Classification) कहते हैं। चूँकि एकत्रित समंक शुरुआत में अत्यंत जटिल एवं बेतरतीबी से भरे होते हैं। जिनका विश्लेषण या निर्वचन के लिए प्रयोग में लाना तब तक असंभव होता है जब तक उन्हें उनके सजातीय गुणों के आधार पर विशिष्ट वर्गों में बाँट नहीं दिया जाता।

आज हम इस लेख में वर्गीकरण का अर्थ, वर्गीकरण की परिभाषा, वर्गीकरण के प्रकार के साथ-साथ आँकड़ों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है? विस्तार से जानेंगे।

वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एकत्रित समंको को उनकी विभिन्न विशेषताएंओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उपवर्गों में क्रमबद्ध किया जाता हैं। एकत्रित समंकों को विशेष समूहों अथवा वर्गो में इस तरह विभक्त किया जाता है कि इससे इकाईयों की विविधता के बीच में पाए जाने वाले गुणों की एकता व्यक्त होती है।

दूसरे शब्दों में- " संकलित समंकों को उनके गुणों, स्वभावों व प्रकृति समानता के खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को समंकों का वर्गीकरण (Classification of Data) कहते हैं। "

वर्गीकरण की परिभाषाएं (Definition of data in hindi)

आइये हम वर्गीकरण से संबंधित कुछ परिभाषाओं (Vargikaran ki paribhasha) का अध्ययन करते हैं। जिनसे यह स्पष्ट हो जाएगा कि वर्गीकरण के लक्षण व महत्व क्या है?

एल. आर. कार्नर के अनुसार- "वर्गीकरण वस्तुओं को समूह अथवा वर्गों में उसकी समानता और सजातीयता के आधार पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। जिससे व्यक्तिगत इकाइयों की विविधता में एकता व्यक्त की जा सकती है।"

स्पूर एवं स्मिथ के अनुसार- "संबंधित तथ्यों को व्यवस्थित करके, विभिन्न वर्गों में प्रस्तुत करने की क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है।"

होरेक्स सेक्राइस्ट के अनुसार- "वर्गीकरण समंकों को उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर क्रम या समूहों में क्रमबद्ध तथा संबंधित विभिन्न भागों में अलग-अलग करने की प्रक्रिया है।"

शुक्ल और सहाय के अनुसार, "समंकों के अव्यवस्थित विशाल ढेर को, वर्गीकरण के द्वारा एक व्यवस्थित रूप दिया जाता है ताकि भविष्य का कार्य सरल हो सके।"

ग्रेगरी एवं वार्ड के अनुसार- "वर्गीकरण संकलित किये गए समूह के अंतर्गत अलग-अलग पदों को संबंधित करने की प्रक्रिया है।"

वर्गीकरण के लक्षण | Main features of classification in hindi

समंकों के वर्गीकरण के निम्नलिखित लक्षण या आँकड़ों के वर्गीकरण की मुख्य विशेषताएँ (Vargikaran ki visheshtayen) निम्न हैं-

2. वर्गीकरण आँकड़ों की समानता, सादृश्यता या उनके गुणों के आधार पर होता है।
3. यह पदों की विभिन्नता के बीच में भी उनकी 85 को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है।
4. वर्गीकरण समूह की इकाइयों को भिन्न-भिन्त्र वर्गो में विभाजित करने की एक युक्ति है।
5. वर्गीकरण अथवा समंकों का विभाजन वास्तविक अथवा काल्पनिक दोनों रूप में हो सकता है।

वर्गीकरण के उद्देश्य (Objects of Classification in hindi)

1. वर्गीकरण का उद्देश्य जटिल व बिखरे हुए तथ्यों को सरल व संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जाना होता है।
2. समान गुण रखने वाले तथ्यों को एक वर्ग में रखा जाता है। जिससे तथ्यों में पायी जाने वाली समानता व असमानता स्पष्ट हो जाती है। जैसे- साक्षर-निरक्षर, पुरुष-स्त्री आदि।

आदर्श वर्गीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Ideal Classification in hindi)

किसी भी आदर्श वर्गीकरण में होने वाली विशेषताएँ (Adarsh vargikaran ki visheshtaen) निम्नलिखित होनी चाहिए। जिससे यह पता लगाया जा सके कि एकत्रित समंकों को विशेष सजातीयता के आधार पर विभक्त किया गया है। आइये हम वर्गीकरण की विशेषताएं जानते हैं-

1. उद्देश्य की अनिरुपता- वर्गीकरण का रूप, अनुसन्धान के रूप में और उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए। वर्गीकरण का आधार, वर्गों के गुण, उनकी संख्या आदि को इस तरह निर्धारित करना चाहिए ताकि उस अनुसंधान विशेष के उद्देश्य की पूर्ति हो।

2. स्पष्ट रूप- वर्गीकरण की योजना कुछ इस प्रकार होनी चाहिए कि वह भ्रामक, जटिल न होकर स्पष्ट व सरल हो। किस पद को किस वर्ग में रखा जाए? इस बात के लिए कोई संदेह न हो।

3. सजातीयता- वर्गीकरण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक वर्ग विशेष में रखे जाने वाले पदों के गुण एक समान ही हों। यानि कि भिन्न-भिन्न वर्गों के गुण एक दूसरे से भिन्न हों।

4. स्थिरता- एक आदर्श वर्गीकरण में यह विशेषता होनी चाहिए कि उसमें स्थिरता का गुण हो। इनमें प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न आधारों व गुणों की परिभाषा स्थायी रखी जानी चाहिए। इन्हें परिवर्तित नहीं करना चाहिए। अन्यथा वर्गीकृत सूचनाओं के तुलात्मक अध्ययन में कठिनाई होती है।

5. लोचशीलता- आदर्श वर्गीकरण लोचशील होना चाहिए। ताकि भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार ढाला जा सके। यानि कि आवश्यकतानुसार नए वर्गों को जोड़ा जा सके। साथ ही अनावश्यक वर्गों को हटाया जा सके।

6. व्यापकता- एक आदर्श वर्गीकरण में व्यापकता का गुण तो होना ही चाहिए। अर्थात किसी भी मद के लिए कोई न कोई ऐसा वर्ग अवश्य होना चाहिए जिसमें वह मद आसानी से सम्मिलित कर लिया जाये।

7. उचित आकार- आदर्श वर्गीकरण में प्रत्येक वर्ग एक निश्चित आकार में होना चाहिए। वर्ग न ज़्यादा छोटा न ज़्यादा बड़ा होना चाहिए। यानि कि ऐसा होना चाहिए कि इसे समझना आसान हो।

अंकेक्षण के प्रकार एवं वर्गीकरण (TYPES AND CLASSIFICATION OF AUDIT)

अंकेक्षण एक विधिवत् मूल्यांकन एवं परीक्षण प्रक्रिया है । जिसके द्वारा किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है । और अंकेक्षण कार्य के सम्बन्ध में अपनी राय प्रतिवेदन के रूप में सम्बन्धित पक्ष को प्रेषित की जाती है। तथा अंकेक्षण के खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है सम्बन्ध में उपर्युक्त कथन, अंकेक्षण के प्रकारों का वर्णन को बताता है।

अंकेक्षण को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है।

(1) व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार
(2) व्यावहारिक दृष्टिकोण से

व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार-
वैधानिक अंकेक्षण
निजी अंकेक्षण
सरकारी अंकेक्षण
आन्तरिक अंकेक्षण

व्यावहारिक दृष्टिकोण से अंकेक्षण –

चालू अंकेक्षण
वार्षिक अंकेक्षण
आंतरिम अंकेक्षण
लागत अंकेक्षण
प्रबंधकीय अंकेक्षण
कर अंकेक्षण
सामाजिकअंकेक्षण
पर्यावरणअंकेक्षण
रोकण अंकेक्षण
निपुणता अंकेक्षण
चिठ्हे का अंकेक्षण
संगामी अंकेक्षण
पूर्ण अंकेक्षण
आंशिक अंकेक्षण

वैधानिक अंकेक्षण (Statutory Audit)-

उन संस्थाओं में जिनमें किसी विधान के अनुसार सारा कार्य किया जाता है। अंकेक्षण भी उसी प्रकार उस विधान के अन्तर्गत अनिवार्य कर दिया गया है। जो भिन्न-भिन्न अधिनियमों के आधार पर चलने वाली संस्थाओं के लिए विधान के अनुसार अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। इसे वैधानिक अंकेक्षण कहते हैं। ऐसे अंकेक्षण के निम्न उदाहरण हो सकते हैं।

कम्पनियों का अंकेक्षण (Audit of Companies) –

भारत में सन् 1913 से ही भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत सीमित दायित्व वाली कम्पनियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य कर दिया गया है। कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार अंकेक्षण से सम्बन्धित कुछ परिवर्तन भी किये गये हैं। प्रत्येक कम्पनी के लिए यह निर्धारित कर दिया गया है कि वह अपने हिसाब-किताब का वार्षिक अंकेक्षण कराने के लिए एक निश्चित योग्यता रखने वाला अंकेक्षक को नियुक्त करे। कम्पनियों के अंकेक्षण की रिपोर्ट अंकेक्षक द्वारा अंशधारियों को दी जाती है जिसमें वे वित्तीय लेखों की शुद्धता एवं सत्यता को प्रमाणित करते हैं।

प्रन्यासों का अंकेक्षण (Audit of Trust)—

जायदातर प्रन्यास (trusts) जो कि नाबालिगों, विधवाओं तथा असहाय व्यक्तियों के लिए बनाये जाते हैं। और जो इन प्रन्यासों के हिसाब-किताब न तो अच्छी तरह समझ सकते हैं। और न उसकी आलोचना और छानबीन ही कर सकते हैं।ऐसे कुछ प्रन्यास जो अपना हिसाब-किताब नहीं रखते और यदि रखते भी हैं तो वे गलतियों तथा छल-कपट से पूर्ण होते हैं। इस प्रकार प्रन्यासी अपने कोषों का दुरुपयोग भी किया करते हैं। अतः भारत में कुछ राज्यों ने सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम (Public Trusts Act) बना दिया है ।

अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण (Audit of other Organisations) –

सरकार ने कुछ ऐसे अधिनियम भी बनाये हैं जिनके अनुसार कम्पनी तथा प्रन्यास के अतिरिक्त अन्य सार्वजनिक संस्थाएं चलती हैं। जैसे बिजली तथा गैस कम्पनियां अपने-अपने अधिनियमों के आधार पर कार्य करती हैं। इन अधिनियमों के अन्तर्गत इन संस्थाओं के लिए हिसाब-किताब का अंकेक्षण अनिवार्य किया गया है।

सार्वजनिक संस्थाओं का एक दूसरा वर्ग भी है जो अपने-अपने विधि विधान के अनुसार अंकेक्षण कार्य करवाता है।

निजी अंकेक्षण (Private Audit)

जिन संस्थाओं के हिसाब-किताब के अंकेक्षण के लिए किसी प्रकार का वैधानिक बन्धन नहीं होता है। ऐसे अंकेक्षण निजी अंकेक्षण कहलाता है। ये संस्थाएं अपनी इच्छानुसार अंकेक्षण करवाती हैं । और अंकेक्षण का क्षेत्र भी निश्चित करती हैं।

इनके तीन वर्ग हो सकते हैं ।

एकाकी व्यापार का अंकेक्षण (Audit of account of sole trader) –

एकाकी व्यापारी के हिसाब-किताब का अंकेक्षण स्वयं उसकी इच्छा पर निर्भर करता है उसमे कितने खातों का कब और कितना अंकेक्षण किया जाए यह स्वयं निश्चित करता है। इसमे अंकेक्षक का कार्य, उसके अधिकार तथा दायित्व आदि सभी बातें एकाकी व्यापारी तथा अंकेक्षक के बीच होने वाले समझौते के अनुसार ही निश्चित की जाती हैं। अंकेक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह शर्त प्रारम्भ में तय कर लिया जाता है। और लिखित रूप में सारे आदेश खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है प्राप्त करने के पश्चात् ही अपना कार्य सुरू किया जाता है।

साझेदारी फर्मों का अंकेक्षण साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी फर्म का अंकेक्षण होना अनिवार्य नहीं होता है। पर सभी साझेदारों के साथ फर्म के लिए यह लाभदायकहोगा कि फर्म का अंकेक्षण होना आवश्यक है। साझेदारी अनुबन्ध में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि साझेदारी के खातों का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाये । जिससे साझेदारों तथा अंकेक्षक के मध्य अंकेक्षण का अनुबन्ध होना चाहिए जो कार्य की शर्तों व दायित्वों के अनुसार किया जाता है। यदि कोई और समझौता न हो तो खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है खातों का वर्गीकरण कितने प्रकार का होता है साझेदारी अधिनियम का पालन करना चाहिए।

प्राइवेट व्यक्तियों के हिसाब–किताब का अंकेक्षण (Audit of accounts of private individuals)-

इसमे उन व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण होता है जिनकी आमदनी जादा होती है तथा साथ ही साथ उनके व्यय भी पर्याप्त होते हैं। इन व्यक्तियों के खातों का अंकेक्षण होने से हिसाब-किताब रखने वाले कर्मचारियों पर नैतिक दबाव होता है। और साथ ही आयकर आदि के लिए भी अंकेक्षित खातों से अधिक सहायता मिलती है। जो व्यक्ति अपने एजेण्टों के सहारे काम करता है उसके लिए भी अंकेक्षण लाभदायक होता है।

रोकड़ अंकेक्षण (Cash Audit)-

इस प्रकार के ऑडिट मे जब कोई संस्था किसी निश्चित अवधि के लिए रोकड़ के लेन-देनों की जाँच करने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति करती है तो इसे रोकड़ अंकेक्षण के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत आवश्यक प्रमाणों की सहायता से अंकेक्षक के द्वारा आय-व्यय के नकदी लेन-देनों का ही अंकेक्षण किया जाता है। यह रोकड़ बही तक ही सीमित होता है।

सरकारी अंकेक्षण (Government Audit)-

सरकारी विभागों के हिसाब-किताब की जाँच करना सरकारी अंकेक्षण के अंतर्गत आता है। इस कार्य के लिये जिन अंकेक्षकों की नियुक्ति की जाती है। उनके अधिकार एवं कर्त्तव्य सरकारी नियमों के अनुसार ही होते हैं। केन्द्रीय सरकार के विभागों के वित्तीय खातों के अंकेक्षण के लिये अलग -अलग विभाग होता है। जिसका सबसे बड़ा अधिकारी कम्पट्रोलर एण्ड आडीटर जनरल कहलाता है।

अन्तरिम या मध्य अंकेक्षण (Interim Audit)-

वित्तीय वर्ष के बीच में किसी विशेष उद्देश्य से लेखा-पुस्तकों का किया जाने वाला अंकेक्षण अन्तरिम अथवा मध्य अंकेक्षण कहलाता है।

चिट्ठा अंकेक्षण (Balance Sheet Audit)-

इस अंकेक्षण से आशय चिट्ठे की विभिन्न मदों के अंकेक्षण से है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि चिट्टे के सम्पत्ति एवं दायित्व दोनों पक्षों की विभिन्न मदों का अंकेक्षण ही चिट्ठा अंकेक्षण कहलाता है।

प्रमाण अंकेक्षण (Standard Audit)

प्रमाण अंकेक्षण का आशय उस अंकेक्षण से है । जिसके अंतर्गत कुछ विशेष मदों की पूर्ण जाँच की जाती है। तथा शेष मदों की जाँच सरसरी निगाह (Test Checking) से की जाती है ।

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