शुरुआती के लिए रणनीतियाँ

विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप

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श्रीलंका के सबसे बड़े ऋणदाता के रूप में उभरा भारत, इतने करोड़ की दी मदद

नई दिल्ली। भारत (India) साल 2022 के पहले चार महीनों में श्रीलंका (Sri Lanka) के सबसे बड़े ऋणदाता (largest lender) के रूप में उभरा है। भारत ने श्रीलंका को इन चार महीनों में 37.69 करोड़ डॉलर का ऋण दिया। वहीं चीन (China) ने केवल 6.790 करोड़ डॉलर का कर्ज श्रीलंका को दिया है। द्वीप राष्ट्र श्रीलंका (island nation sri lanka) अपने सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। विदेशी मुद्रा (foreign currency) की कमी के चलते 2.विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप 2 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका की हालत खराब है। भोजन, दवा और पेट्रोल डीजल की भारी कमी से जनजीवन अस्त व्यस्त है।

पिछले महीने, श्रीलंका विदेशी कर्ज चुकाने से चूक गया था और इसकी मुद्रास्फीति (inflation) में लगभग 50% की वृद्धि हुई है। आर्थिक स्थिति बिगड़ने से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ जिसके कारण राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

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2022 के पहले चार महीनों यानी 30 अप्रैल तक दिए गए पैसों के अनुसार, भारत ऋणदाताओं की सूची में सबसे ऊपर है। एशियाई विकास बैंक (ADB) इस अवधि में 35.96 करोड़ डॉलर के साथ दूसरा सबसे बड़ा ऋणदाता था। इसके बाद विश्व बैंक है जिसने श्रीलंका को 6.73 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया है। चीन द्वारा दिए गए कर्ज को अखबार ने “मामूली” बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब श्रीलंका ने इस साल की शुरुआत में विदेशी मुद्रा की भारी कमी का सामना करना शुरू किया तो भारत इसके बचाव में आया था। 2022 के पहले चार महीनों में, श्रीलंका को 96.81 करोड़ डॉलर का विदेशी ऋण मिला है जिसमें 0.7 मिलियन डॉलर का अनुदान भी शामिल है।

2022 की शुरुआत से श्रीलंका के लिए भारत की विदेशी सहायता का पूरा पैकेज शामिल है। भारत ने इस दौरान श्रीलंका को ईंधन, भोजन और दवाओं की आपातकालीन खरीद के लिए ऋण दिया, एशियाई समाशोधन संघ के भुगतान को आगे बढ़वाया और एक करेंसी स्वैप भी है। भारत ने श्रीलंका के साथ 3.8 बिलियन डॉलर की करेंसी स्वैप की थी। रिपोर्ट में कहा गया है, “जब श्रीलंका साल की शुरुआत से ही डॉलर की कमी से जूझ रहा था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘पड़ोस पहले नीति’ के तहत भारत उसका सबसे बड़ा मददगार बनकर आगे आया। श्रीलंका को अन्य सभी द्विपक्षीय भागीदारों ने डॉलर की कमी से बाहर निकलने के लिए कर्ज नहीं दिया तो भारत आगे आया।”

रिपोर्ट में कहा गया है, “व्यापक उम्मीदों के बावजूद, चीन ने श्रीलंका के बचाव में आने की अनिच्छा दिखाई।” चीन ने इस्तेमाल के लिए श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के साथ अपनी 1.5 बिलियन डॉलर के बराबर युआन की स्वैप लाइन को भी अनलॉक नहीं किया है। यानी श्रीलंका चीन के साथ मुद्रा स्वैप नहीं कर पाया। चीन हाल तक श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय फंडिंग पार्टनर था।

विदेशी मुद्रा भंडार में बंपर उछाल, 412 अरब डॉलर के करीब पहुंचा, इतना है आरक्षित स्वर्ण भंडार

Foreign exchange विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप reserves:देश का विदेशी मुद्रा भंडार 29 मार्च को समाप्त सप्ताह में 5.237 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 412 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 13 अप्रैल, 2018 को 426.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था.(रॉयटर्स)

भारतीय रिजर्व बैंक का डॉलर-रुपया विनिमय कार्यक्रम पिछले सप्ताह सफलतापूर्वक पूरा होने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 29 मार्च को समाप्त सप्ताह में 5.237 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 412 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है. इससे पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 1.029 अरब डॉलर बढ़कर 406.667 अरब डॉलर हो गया था. रिज़र्व बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में, विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा मानी जाने वाली विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 5.248 अरब डॉलर बढ़कर 384.053 अरब डॉलर हो गईं.

डॉलर में बताई गई विदेशी मुद्रा आस्तियां में मुद्राभंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्राओं की मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को भी शामिल किया गया है. वित्तीय प्रणाली में नकदी (तरलता बढ़ाने) लाने के प्रयास के तहत रिजर्वबैंक ने 26 मार्च को डॉलर-रुपया अदला बदली नीलामी आयोजित कर पांच अरब डॉलर प्राप्त किये. इस नीलामी में उसे करीब 16 अरब डॉलर के लिए बोली प्राप्त हुई.

इस पहल के लिए मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए केन्द्रीय बैंक ने 23 अप्रैल को एक बार फिर तीन वर्ष की अवधि के लिए पांच अरब डॉलर की ‘स्वैप’ नीलामी आयोजित करने की घोषणा की है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार इससे पहले 13 अप्रैल, 2018 को समाप्त सप्ताह में 426.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था. लेकिन इसके बाद से इसमें काफी गिरावट आई.

ज़ी बिज़नेस वीडियो यहां देखें:

केन्द्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में देश का आरक्षित स्वर्ण भंडार 23.408 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा. सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास सुरक्षित (विशेष) विशेष निकासी अधिकार 36 लाख डॉलर घटकर 1.456 अरब डॉलर रह गया. केन्द्रीय बैंक ने कहा कि आईएमएफ में देश का आरक्षित भंडार भी 74 लाख डॉलर घटकर 2.986 अरब डॉलर रह गया.

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

ऐसे ही नॉलेज बढ़ाने वाले एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप

एक वित्तीय साधन दो या दो से अधिक पार्टियों या कुछ मौद्रिक मूल्य वाले व्यक्तियों के बीच एक अनुबंध को संदर्भित करता है। पार्टियों की जरूरतों के अनुसार उन्हें गठित, व्यवस्थित, व्यापार या संशोधित किया जा सकता है। बुनियादी शब्दों में, एक वित्तीय साधन एक परिसंपत्ति को संदर्भित करता है जो धारण करता हैराजधानी और पर भी ट्रेड किया जा सकता हैमंडी.

Financial Instruments

चेक,बांड, स्टॉक, विकल्प अनुबंध और शेयर वित्तीय साधनों के प्राथमिक उदाहरण हैं।

वित्तीय साधनों के प्रकार

दो सबसे सामान्य प्रकार के वित्तीय साधन इस प्रकार हैं:

1. नकद लिखत

नकद साधन वित्तीय उत्पादों को संदर्भित करते हैं जिनके मूल्य वर्तमान बाजार स्थितियों से तुरंत प्रभावित होते हैं। दो प्रकार के नकद साधन हैं:

प्रतिभूति: एक सुरक्षा किसी भी स्टॉक एक्सचेंज पर कारोबार किए जा रहे मौद्रिक-मूल्यवान वित्तीय साधन को संदर्भित करता है। सुरक्षा किसी भी निगम के एक हिस्से के स्वामित्व को भी इंगित करती है जिसे खरीदा या बेचा जाने पर स्टॉक एक्सचेंज में सार्वजनिक रूप से कारोबार किया जाता है।

ऋण और जमा: इन्हें नकद लिखतों के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि ये संविदात्मक व्यवस्था के अधीन वित्तीय संपदा को दर्शाते हैं।

2. व्युत्पन्न उपकरण

व्युत्पन्न उपकरण वित्तीय उत्पादों को संदर्भित करते हैं जिनके मूल्य निर्भर करते हैंआधारभूत कमोडिटीज, मुद्राएं, स्टॉक, बॉन्ड और स्टॉक इंडेक्स सहित संपत्ति। सिंथेटिक समझौते, वायदा, आगे, विकल्प और स्वैप पांच सबसे लगातार डेरिवेटिव उपकरण हैं। यह और अधिक गहराई में और नीचे आच्छादित है।

विदेशी मुद्रा के लिए सुरक्षित या सिंथेटिक समझौता: यह एक समझौते को संदर्भित करता है जो ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) बाजार में एक निर्दिष्ट समय अवधि के लिए एक विशिष्ट विनिमय दर सुनिश्चित करता है।

आगे: यह दो पक्षों के बीच एक अनुबंध को संदर्भित करता है जिसमें अनुकूलन योग्य डेरिवेटिव शामिल होते हैं और अनुबंध के अंत में एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर एक एक्सचेंज शामिल होता है।

भविष्य: यह एक व्युत्पन्न लेनदेन को संदर्भित करता है जो आपको भविष्य की तारीख में एक पूर्व निर्धारित विनिमय दर पर डेरिवेटिव व्यापार करने की अनुमति देता है।

विकल्प: यह दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है जिसमें विक्रेता खरीदार को एक निश्चित समय अवधि के लिए पूर्व निर्धारित मूल्य पर एक विशेष संख्या में डेरिवेटिव खरीदने या बेचने का अधिकार प्रदान करता है।

ब्याज दर पलटें: यह दो पक्षों के बीच एक व्युत्पन्न व्यवस्था को संदर्भित करता है जिसमें प्रत्येक पार्टी विभिन्न मुद्राओं में अपने ऋणों पर विभिन्न ब्याज दरों का भुगतान करने का वादा करती है।

विदेशी मुद्रा लिखत

विदेशी मुद्रा उपकरण किसी भी विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप विदेशी मुद्रा बाजार में कारोबार किए जाने वाले वित्तीय साधनों को संदर्भित करते हैं। इसमें मुख्य रूप से डेरिवेटिव और मुद्रा समझौते शामिल हैं। मौद्रिक अनुबंधों के संदर्भ में, उन्हें निम्नानुसार तीन प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

एक मुद्रा व्यवस्था जिसमें वास्तविक मुद्रा विनिमय समझौते की मूल तिथि के बाद दूसरे कार्य दिवस के तुरंत बाद होता है। मुद्रा विनिमय "मौके पर" किया जाता है, इसलिए शब्द "स्पॉट" (सीमित समय सीमा)।

एकमुश्त आगे

एक मौद्रिक सौदा जिसमें वास्तविक मुद्रा विनिमय "समय से पहले" और सहमत-समय सीमा से पहले होता है। यह उन स्थितियों में फायदेमंद होता है जहां मुद्रा दरों में अक्सर उतार-चढ़ाव होता है।

मुद्राओं की अदला बदली

एक मुद्रा स्वैप एक ही समय में विविध मूल्य अवधि के साथ मुद्राओं की खरीद और बिक्री की गतिविधियां है।

वित्तीय साधन संपत्ति वर्ग

वित्तीय साधनों को दो परिसंपत्ति समूहों और ऊपर सूचीबद्ध वित्तीय साधनों के प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। ऋण-आधारित वित्तीय साधन और इक्विटी-आधारित वित्तीय साधन वित्तीय साधनों के दो परिसंपत्ति वर्ग हैं।

1. ऋण आधारित वित्तीय साधन

ऋण-आधारित वित्तीय साधन ऐसी तकनीकें हैं जिन्हें एक कंपनी अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए नियोजित कर सकती है। बांड, बंधक, डिबेंचर,क्रेडिट कार्ड, और ऋण रेखाएं इसके कुछ उदाहरण हैं। वे कारोबारी माहौल का एक अनिवार्य पहलू हैं क्योंकि वे व्यवसायों को पूंजी बढ़ाकर मुनाफे में सुधार करने की अनुमति देते हैं।

2. इक्विटी आधारित वित्तीय लिखत

इक्विटी-आधारित वित्तीय साधन ऐसी संरचनाएं हैं जो किसी व्यवसाय के कानूनी स्वामित्व के रूप में कार्य करती हैं। सामान्य स्टॉक, पसंदीदा शेयर, परिवर्तनीय डिबेंचर और हस्तांतरणीय सदस्यता अधिकार सभी उदाहरण हैं। वे ऋण-आधारित वित्तपोषण की तुलना में फर्मों को लंबे समय तक पूंजी बनाने में मदद करते हैं, लेकिन उन्हें मालिक को किसी भी ऋण को चुकाने की आवश्यकता नहीं होने का लाभ होता है। एक कंपनी जो एक इक्विटी-आधारित वित्तीय साधन का मालिक है, वह या तो इसमें अधिक निवेश कर सकती है या जब भी उपयुक्त हो इसे बेच सकती है।

विदेशी मुद्रा भंडार में बंपर उछाल, 412 अरब डॉलर के करीब पहुंचा, इतना है आरक्षित स्वर्ण भंडार

Foreign exchange reserves:देश का विदेशी मुद्रा भंडार 29 मार्च को समाप्त सप्ताह में 5.237 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 412 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 13 अप्रैल, 2018 को 426.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था.(रॉयटर्स)

भारतीय रिजर्व बैंक का डॉलर-रुपया विनिमय कार्यक्रम पिछले सप्ताह सफलतापूर्वक पूरा होने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 29 मार्च को समाप्त सप्ताह में 5.237 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 412 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है. इससे पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 1.029 अरब डॉलर बढ़कर 406.667 अरब डॉलर हो गया था. रिज़र्व बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में, विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा मानी जाने वाली विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां 5.248 अरब डॉलर बढ़कर 384.053 अरब डॉलर हो गईं.

डॉलर में बताई गई विदेशी मुद्रा आस्तियां में मुद्राभंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्राओं की मूल्यवृद्धि विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को भी शामिल किया गया है. वित्तीय प्रणाली में नकदी (तरलता बढ़ाने) लाने के प्रयास के तहत रिजर्वबैंक ने 26 मार्च को डॉलर-रुपया अदला बदली नीलामी आयोजित कर पांच अरब डॉलर प्राप्त किये. इस नीलामी में उसे करीब 16 अरब डॉलर के लिए बोली प्राप्त हुई.

इस पहल के लिए मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए केन्द्रीय बैंक ने 23 अप्रैल को एक बार फिर तीन वर्ष की अवधि के लिए पांच अरब डॉलर की ‘स्वैप’ नीलामी आयोजित करने की घोषणा की है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार इससे पहले 13 अप्रैल, 2018 को समाप्त सप्ताह में 426.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था. लेकिन इसके बाद से इसमें काफी गिरावट आई.

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केन्द्रीय बैंक ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में देश का आरक्षित स्वर्ण भंडार 23.408 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा. सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास सुरक्षित (विशेष) विशेष निकासी अधिकार विदेशी मुद्रा मुद्रा स्वैप 36 लाख डॉलर घटकर 1.456 अरब डॉलर रह गया. केन्द्रीय बैंक ने कहा कि आईएमएफ में देश का आरक्षित भंडार भी 74 लाख डॉलर घटकर 2.986 अरब डॉलर रह गया.

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