व्यापारिक विदेशी मुद्रा

विदेशी मुद्रा की खरीद

विदेशी मुद्रा की खरीद

मुद्रा का दबाव: डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन

दुनिया के अन्य प्रमुख मुद्राओं के साथ रुपया एक फिर से एक नए दबाव का सामना कर रहा है। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में भारी - भरकम 75 आधार अंकों की ताजा वृद्धि और अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा अपना ध्यान पूरी तरह से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर केंद्रित रखने के स्पष्ट संदेश के मद्देनजर डॉलर में मजबूती जारी है। सप्ताह के अंत में एक नए रिकॉर्ड स्तर पर लुढ़क कर बंद होने से पहले, भारतीय मुद्रा शुक्रवार को दिन – भर के व्यापार (इंट्राडे ट्रेड) के दौरान पहली बार डॉलर के मुकाबले 81 अंक के पार जाकर कमजोर हुई। अस्थिरता को कम करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से रुपये में गिरावट की रफ्तार को नरम किया गया। लेकिन 16 सितंबर से 12 महीनों में इस तरह के हस्तक्षेपों का कुल नतीजा यह हुआ कि भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार के आपातकालीन कोष में लगभग 94 बिलियन डॉलर की कमी आई और यह कोष अब घटकर 545.65 बिलियन डॉलर का रह गया है। डॉलर के मुकाबले अकेले रुपये में ही गिरावट नहीं होने का तथ्य अपने कारोबार के सुचारू संचालन के लिए कच्चे माल या सेवाओं के आयात पर निर्भर रहने वाली भारतीय कंपनियों के लिए थोड़ा सा भी सुकून भरा नहीं हो सकता है। ये कंपनियां एक ऐसे समय में बढ़ती लागत की समस्या से जूझ रहीं हैं, जब महामारी के बाद की स्थिति में घरेलू मांग का एक टिकाऊ स्तर पर पहुंचना अभी भी बाकी है। आयात का बढ़ता खर्च भी पहले से ही लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति से घिरी अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति के दबाव में और इजाफा करेगा विदेशी मुद्रा की खरीद तथा चढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के मौद्रिक नीति निर्माताओं के प्रयासों को और अधिक जटिल बनाएगा।

इस साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले के मद्देनजर आई लगभग तमाम गिरावटों के साथ 2022 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में आठ फीसदी के अवमूल्यन ने कच्चे तेल की खरीद पर भारतीय खर्च में काफी हद तक हुई कमी और उसके युद्ध-पूर्व स्तरों के करीब पहुंच

जाने से मिले फायदों को बेजान कर दिया है। अगस्त में और इस महीने के अधिकांश वक्त तक स्थानीय परिसंपत्तियों की खरीद फिर से शुरू करने के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भी पिछले दो सत्रों के दौरान एक बार फिर से भारतीय शेयरों और देनदारियों के शुद्ध विक्रेता बन गए हैं। नतीजतन, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कुल निवेश के तीन लगातार वर्षों के बाद 2022 में अब तक कुल 20.6 बिलियन डॉलर मूल्य की भारतीय इक्विटी और देनदारियों से अपना हाथ खींच लिया है। और, फेडरल रिजर्व द्वारा कम से कम 125 आधार अंकों की और अधिक विदेशी मुद्रा की खरीद मौद्रिक सख्ती के अनुमान से इस वर्ष की अंतिम तिमाही में और अधिक संख्या में विदेशी निवेशकों के बाहर निकल जाने की आशंका है। रुपये की वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) या इसके मूल्य के व्यापार-भारित औसत द्वारा भारतीय मुद्रा के अभी भी अधिमूल्यित होने या इसका मूल्य अधिक आंके जाने के संकेत के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक के दर निर्धारित करने वाले पैनल को अगले सप्ताह विकास की रफ्तार को बाधित किए बिना मूल्य स्थिरता को बहाल करने और रुपया को बहुत तेजी से कमजोर होने से बचाने के लिए जूझने के क्रम में तलवार की धार पर चलना होगा।

विदेशी मुद्रा भंडार: सोना यानी डॉलर पर कम निर्भरता का विकल्प

भारतीय रिजर्व बैंक पिछले चार साल से लगातार सोने की खरीद कर रहा है। इससे स्पष्ट है कि यह अपनी उन सम्पत्तियों में विविधता लाने को लेकर गंभीर हैं, जिनमें देश का विदेशी मुद्रा भंडार रखा जाता है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का सोना खरीदना कोई नई परम्परा नहीं है। आरबीआइ कई सालों से छोटी-छोटी मात्रा में सोना खरीदता आया है। राजस्व वर्ष 2022 सोने की खरीद की मात्रा के लिहाज से कुछ अहम हो जाता है। कारण यह कि इस साल बैंक ने अपने स्वर्ण भंडार में 65.11 टन सोने का इजाफा किया। एक राजस्व वर्ष में यह सोने की अब तक की दूसरी सबसे बड़ी खरीद है। इससे पहले राजस्व वर्ष 2010 में देश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) से 200 टन सोना खरीदा था।

प्रतीकात्मक चित्र

केंद्रीय बैंक द्वारा सोना खरीदने के कुछ खास कारण हैं। एक विदेशी मुद्रा की खरीद बात तय है कि सोना खरीदने का उपक्रम अकेला भारत का केंद्रीय बैंक नहीं कर रहा है बल्कि दुनिया भर के देशों के केंद्रीय बैंक पिछले कई सालों से लगातार अपने स्वर्ण भंडार भर रहे हैं। आइएमएफ के आंकड़े इसकी पुष्टि भी करते हैं। आरबीआइ द्वारा सोना खरीदने के कई कारणों में से एक मुख्य विदेशी मुद्रा की खरीद विदेशी मुद्रा की खरीद कारण यह हो सकता है उन सम्पत्तियों में विविधता लाना, जिनमें देश का विदेशी मुद्रा भंडार रखा जाता है। दरअसल,रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से ही डॉलर से हटकर विदेशी विनिमय सम्पत्तियों को विविधता देने का चलन बढ़ गया है।

इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण यह कि इस युद्ध के बाद रूस पर प्रतिबंध लगने की आशंकाएं बढ़ती गईं। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से संबद्ध देशों ने भी तय किया है कि रूसी केंद्रीय बैंक की क्षमताओं को इतना सीमित कर विदेशी मुद्रा की खरीद दिया जाए कि वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल ही न कर पाए। रूस के केंद्रीय बैंक में विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा अंश डॉलर के रूप में संग्रहित है। इसी के मद्देनजर रूस पर लगे प्रतिबंधों का सीधा असर उसके विदेशी मुद्रा भंडार को इस्तेमाल करने की क्षमता कम होने के रूप में सामने विदेशी मुद्रा की खरीद आया और रूस अपनी मुद्रा रूबल को गिरने से नहीं बचा सका। इसलिए विविधतापूर्ण सम्पत्तियों का भंडार रखना केंद्रीय बैंकों के लिए एक विवेकपूर्ण आदत है।

इसके अलावा विदेशी मुद्रा भंडार में निवेश करते हुए आरबीआइ अपने 'एसएलआर' सिद्धांत का भी पालन करता है। यहां 'एस' का मतलब है सेफ्टी यानी सुरक्षा, 'एल' का मतलब है लिक्विडिटी यानी तरलता और 'आर' से आशय है रिटर्न यानी प्रतिफल। सही ही है, केंद्रीय बैंक की प्राथमिकता है सम्पत्तियों एवं उनकी तरलता की सुरक्षा। और सोना इन दोनों ही मानदंडों पर खरा उतरता है। कारण कि सोना सभी प्रकार की वित्तीय सम्पत्तियों में सर्वाधिक तरल सम्पत्ति माना जाता है।

वर्ष 2008 में आए आर्थिक संकट के बाद अमरीका में बड़े पैमाने पर दिवालियापन देखा गया। डॉलर के प्रभाव पर सवाल उठने लगे। भले ही डॉलर सीमा पार व्यापार और निवेश में मुख्य मुद्रा रहे, लेकिन वैकल्पिक मुद्रा
का विचार कई बार सुझाया जाता रहा है। चीन भी अपनी स्वदेशी मुद्रा के विश्व व्यापार में इस्तेमाल पर समय-समय पर जोर देता रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य अपनी मुद्रा युआन को विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल करवाना रहा है। पिछले चार सालों में विदेशी मुद्रा भंडार में युआन के अंश में अच्छा खासा इजाफा देखा भी गया है। परन्तु अब भी यह डॉलर से काफी कम है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद खास तौर पर एशिया के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का अंश कम करने या यों कहें डॉलर पर निर्भरता कम रखने के प्रयास में जुटे हैं। आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडारों में अलग-अलग विदेशी मुद्रा की खरीद देशों की मुद्रा के अंशों की जानकारी उपलब्ध नहीं करवाता है। जैसा कि ज्ञात है कि आरबीआइ एकमात्र ऐसा केंद्रीय बैंक नहीं है, जो स्वर्ण भंडार एकत्र कर रहा है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़े बताते हैं कि 2021 में ब्राजील, थाइलैंड, जापान सहित कई अन्य देशों ने सोना खरीदा है। थाइलैंड ने अपने स्वर्ण विदेशी मुद्रा की खरीद भंडार में 90 टन सोना और बढ़ा लिया, जो कि उभरते बाजार में ऊंची खरीद मानी जाएगी।

रूस भी पिछले एक दशक से सोना खरीदने में जुटा है। 2021 मेे भारत सोना खरीदने वाला तीसरा सबसे बड़़ा खरीददार देश था। इस वर्ष जनवरी से मार्च के बीच की अवधि में सोना खरीदने वाले देशों की सूची में यह चौथे स्थान पर रहा। इस दौरान सोना बेचने वाले देश रहे -कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, कतर, फिलीपींस और पोलैंड। केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीद के समाचार सुर्खियों में भले ही आ जाएं, लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि इससे बाजार में इस कीमती धातु के दाम और बढ़ जाएंगे। डॉलर में उछाल स्थायी रहने के बाद हाल ही सोने की कीमतों में गिरावट आई। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्रास्फीति के चलते सोने की खरीददारी में रुझान बना रहा। चूंकि भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं बढ़ती जा रही हैं, केंद्रीय बैैक अपने स्वर्ण भंडार बढ़ाना जारी रखेंगे ताकि वित्तीय व आर्थिक स्थिरता सुरक्षित की जा सके। आखिरकार दुनिया भर में सोने को तीसरी सबसे बड़ी संरक्षित सम्पत्ति माना जाता है।

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आप भारत में प्रचालित विभिन्न प्रकार के बैंकों की सूची यहाँ देख सकते हैं। आप एसबीआई एवं सहयोगी बैंक, राष्ट्रीयकृत बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक , विदेशी बैंक, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, बैंक के साथ संबद्ध वित्तीय संस्थानों इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। बैंक के मुख्यालयों की संपर्क विवरणी भी यहाँ उपलब्ध है।

विदेशी मुद्रा दरों को समझना

जब एक निर्यातक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शुरू करने की योजना बनाता है, तो यह समझना अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरों में अंतर कैसे आता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दर (विदेशी मुद्रा दर) दुनिया भर में होने वाली विभिन्न घटनाओं से प्रभावित है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा विनिमय दरें प्रकृति में बेहद अप्रत्याशित हैं और तेजी से बदलती रहती हैं।

विनिमय दर जिस पर दो देशों के बीच एक मुद्रा का विनिमय दूसरे देश में किया जा सकता है, विदेशी विनिमय दर के रूप में जाना जाता है। विदेशी विनिमय दर को एफएक्स दर या विदेशी मुद्रा दर के रूप में भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिका और भारत के बीच मुद्रा की विनिमय दर 1 USD = 62.3849 INR है। बाद में हम विदेशी विनिमय दरों से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं।

स्पॉट एक्सचेंज रेट

जिस दर पर विदेशी मुद्रा उपलब्ध है उसे स्पॉट एक्सचेंज रेट कहा जाता है। विदेशी मुद्रा का स्पॉट रेट वर्तमान लेनदेन के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन यह पता लगाना भी आवश्यक है कि स्पॉट रेट क्या है।

आगे विनिमय दर

विदेशी मुद्रा की खरीद या बिक्री के लिए एक आगे के अनुबंध में प्रबल होने वाली विनिमय दर को फॉरवर्ड रेट कहा जाता है। यह दर अभी तय की गई है लेकिन विदेशी मुद्रा का वास्तविक लेन-देन भविष्य में होता है।

विनिमय दरों के उद्धरण की विधि

मुद्रा बाजार में नए लोगों के लिए मुख्य भ्रम मुद्राओं के उद्धरण के लिए मानक है। इस खंड में, हम मुद्रा उद्धरणों पर जाएँगे और वे मुद्रा जोड़ी ट्रेडों में कैसे काम करेंगे। विनिमय दर उद्धृत करने की दो विधियाँ हैं:

1. प्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण

2. अप्रत्यक्ष मुद्रा भाव

प्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण: इस पद्धति में, घरेलू मुद्रा की परिवर्तनीय मात्रा के खिलाफ विदेशी मुद्रा की निश्चित इकाइयां उद्धृत की जाती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, कनाडाई डॉलर के लिए एक सीधा उद्धरण $ 0.85 = C $ 1 होगा। अब एक बैंक केवल प्रत्यक्ष आधार पर दरों को उद्धृत कर रहा है।

अप्रत्यक्ष मुद्रा उद्धरण: इस पद्धति में, विदेशी मुद्रा की परिवर्तनीय विदेशी मुद्रा की खरीद इकाइयों के खिलाफ घरेलू मुद्रा की निश्चित इकाइयों को उद्धृत किया जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में कनाडाई डॉलर के लिए एक अप्रत्यक्ष उद्धरण यूएस $ 1 = सी $ 1.17 होगा।

जापानी येन (जेपीएन) के अपवाद के साथ, दशमलव स्थान के बाद अधिकांश मुद्रा विनिमय दरों को चार अंकों में उद्धृत किया जाता है, जिसे दो दशमलव स्थानों के लिए उद्धृत किया जाता है।

एक मुद्रा या तो चल या तय हो सकती है

क्रॉस करेंसी

यदि अमेरिकी मुद्रा को उसके एक घटक के रूप में मुद्रा के बिना दिया जाता है, तो इसे क्रॉस मुद्रा कहा जाता है। सबसे आम क्रॉस करेंसी जोड़े EUR हैं

बोली और पूछो

वित्तीय बाजारों में ट्रेडिंग, जब आप एक मुद्रा जोड़ी का व्यापार कर रहे हैं तो एक बोली मूल्य (खरीदें) और एक पूछ मूल्य (बेचना) है। ये आधार मुद्रा के संबंध में हैं। बोली मूल्य आधार मुद्रा के संबंध में उद्धृत मुद्रा के लिए बाजार कितना भुगतान करेगा। पूछें मूल्य उद्धृत मुद्रा की राशि को संदर्भित करता है जिसे आधार मुद्रा की एक इकाई खरीदने के लिए भुगतान करना पड़ता है। उदाहरण के लिए: USD

फैलता है और पिप्स

स्प्रेड बोली की कीमतों और पूछ मूल्य के बीच का अंतर है। उदाहरण के लिए EUR

फ़ॉरवर्ड या फ़्यूचर्स मार्केट्स में मुद्रा जोड़े

वायदा बाजार में विदेशी मुद्रा को हमेशा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले उद्धृत किया जाता है। अन्य मुद्रा की एक इकाई को खरीदने के लिए कितने अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है जो मूल्य निर्धारण पर प्रभाव डालती है।

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक निम्नानुसार हैं:

उच्च ब्याज दरें

विदेशों में मुद्रा में उच्च ब्याज दर होने से यह अधिक आकर्षक हो जाती है। निवेशक इस मुद्रा को खरीदना पसंद करते हैं क्योंकि वे उस देश में लोगों को पैसा उधार दे सकते हैं और उच्च दरों द्वारा पेश किए गए अतिरिक्त मार्जिन से लाभ कमा सकते हैं। नतीजतन, उच्च दर मांग को बढ़ाती है, जो एक मुद्रा के मूल्य को बढ़ाती है और इसके विपरीत।

मुद्रास्फीति किसी मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करती है। कम मुद्रास्फीति आपको अधिक खरीदने की सुविधा देती है। वास्तव में निवेशक इसे पसंद करते हैं क्योंकि वे उस मुद्रा को खरीदना चाहते हैं जो इसके मूल्य को बढ़ाती है और इसके विपरीत।

अर्थव्यवस्था की ताकत

सरकारी ऋण का स्तर

उच्च सरकारी ऋण, मुद्रा का मूल्य कम करें।

व्यापार की शर्तें

व्यापार की शर्तें एक अनुपात है जो निर्यात कीमतों की तुलना आयात कीमतों से करता है। यदि व्यापार की शर्तों में वृद्धि होती है, तो उस देश की निर्यात वृद्धि की मांग का मतलब है कि इसकी मुद्रा की अधिक मांग है, जिससे इसके मूल्य में वृद्धि होती है और इसके विपरीत।

विनिमय दर के प्रकार

घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है। आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी' विनिमय दर या पार वैल्यू कहा जाता है। हालांकि,सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा 1 प्रतिशत तक होती है।

नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार पर विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है तब तब सरकार इसे खरीद लेती है। और जब यह मजबूत होती है तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है। आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है।

नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्क:

  • सबसे पहले, यह अनिश्चितता की वजह से जोखिम को समाप्त करता है। बाजार में यह स्थिरता, निश्चितता प्रदान करता है ।
  • दूसरा, यह, राष्ट्रों के बीच विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए एक प्रणाली बनाता है, साथ ही निवेश के रूप में यह निश्चित वापसी का आश्वासन देता है।
  • तीसरा, यह विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टा लेन-देन की संभावना को हटाता है।
  • अंत में, यह प्रतिस्पर्धी विनिमय मूल्यह्रास या मुद्राओं के अवमूल्यन की संभावना को कम कर देता है।

B- लचीली विनिमय दर (Flexible Exchange Rate):-

जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है।

लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते है। इस संबंध में तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं I

लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्क:

  1. सबसे पहले, लचीली विनिमय दर के रूप में एक स्वायत्ता मिलती विदेशी मुद्रा की खरीद है घरेलू नीतियों के संबंध में यह अच्छा सौदा है। इसका घरेलू आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत महत्व है।
  2. लचीली विनिमय दर खुद समायोजित होती है और इसलिए सरकार पर इतना दबाव नहीं होता कि विनिमय दर को स्थिर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखा जाए।
  3. लचीली विनिमय दर एक सिद्धांत पर आधारित है, इसके तहत भविष्य में अनुमान का लाभ मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी स्वत: समायोजन की योग्यता है I
  4. लचीली विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की वास्तविक क्रय शक्ति का एक संकेतक के रूप में कार्य करता है।

अंत में, कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्कयह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत।

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