व्यापारिक विदेशी मुद्रा

दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर

दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर
पहली बार 81 के भी पार हुआ रुपया

चार साल की सबसे बड़ी उछाल, 1 दिन में रुपया 100 पैसे मजबूत

डॉलर के मुकाबले रुपये में शुक्रवार को बढ़ोतरी हुई और देसी मुद्रा ने चार साल की सबसे बड़ी एकदिवसीय उछाल दर्ज की क्योंकि अमेरिका में उम्मीद से कमजोर महंगाई के आंकड़े ने संभावना बढ़ा दी है कि फेडरल रिजर्व नीतिगत सख्ती में धीमी रफ्तार अपनाएगा।

शुक्रवार को रुपया 80.81 पर बंद हुआ, जो एक दिन पहले के मुकाबले 100 पैसे मजबूत है। शुक्रवार को रुपये में 18 दिसंबर, 2018 के बाद की सबसे बड़ी एकदिवसीय बढ़ोतरी दर्ज हुई। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से यह जानकारी मिली। रुपये का शुक्रवार का बंद स्तर 21 सितंबर, 2022 के बाद भी सबसे मजबूत स्तर है। साल 2022 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में 8 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।

गुरुवार को भारत में कारोबार समाप्त होने के बाद जारी आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका में उपभोक्ता कीमत पर आधारित महंगाई अक्टूबर में नौ महीने के ​ ​​निचले स्तर 7.7 फीसदी रह गई, जो बाजार के 8 फीसदी के अनुमान से कम है।

दुनिया की नंबर 1 सबसे मजबूत करेंसी- कुवैती दीनार (KWD)

कुवैती दीनार (KWD) देश की आधिकारिक मुद्रा है। दीनार नाम रोमन दीनार से आया है। कुवैती दीनार को 1000 फिल्स में विभाजित किया गया है, एक सिक्का जो कई अरब देशों में इस्तेमाल किया जाता है। कुवैती दीनार को व्यापक रूप से दुनिया की सबसे शक्तिशाली मुद्रा माना जाता है। कुवैती दीनार को संक्षेप में KWD भी कहते हैं। मध्य पूर्व में तेल से संबंधित लेनदेन दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। कुवैती दीनार मई 2021 तक सबसे मजबूत सर्कुलेटिंग करेंसी है। जिसमें 1 कुवैती दीनार 3.32 अमेरिकी डॉलर के बराबर है। यानी एक कुवैती दीनार 246 रुपए के बराबर है। कुवैती दिनार (KWD) को 1961 में खाड़ी रुपए के बदले में पेश किया गया था। खाड़ी का रुपया भारतीय रुपए से जुड़ी करेंसी थी। 1959 में भारत सरकार द्वारा जारी गल्फ रुपया, मुख्य रूप से फारस की खाड़ी क्षेत्र में भारत के बाहर उपयोग के लिए अभिप्रेत था। खाड़ी का रुपया, भारतीय रुपए की तरह, ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग (GBP) से आंका गया था।

दुनिया की नंबर 3 सबसे मजबूत करेंसी- ओमन रियाल

ओमान रियाल ओमान की नेशनल करेंसी है, जो अरब प्रायद्वीप पर स्थित है, और यह वर्तमान में दुनिया की सबसे मूल्यवान करेंसी में तीसरे स्थान पर है। 1940 से पहले ओमान की स्थानीय मुद्रा भारतीय रुपया थी, जिसे जल्दी से एक अधिक शक्तिशाली मुद्रा से बदल दिया गया था। ओमान की अर्थव्यवस्था ज्यादातर उसके तेल भंडार पर आधारित है, जो अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। ओमानी रियाल अमेरिकी डॉलर से बंधा हुआ है।

जॉर्डन की आधिकारिक मुद्रा जॉर्डनियन दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर दिनार (JOD) है। यह जॉर्डन नदी पर स्थित एक अरबी देश है। जॉर्डन की सरकार स्थिर विनिमय दरों को बनाए रखती है, जो मुद्रा के उच्च मूल्य के पीछे मुख्य कारणों में से एक है। जॉर्डन, अपने पड़ोसियों के विपरीत, तेल निर्यात पर अत्यधिक निर्भर नहीं है, जॉर्डन दिनार, जिसे 1949 में फिलिस्तीनी पाउंड को बदलने के लिए पेश किया गया था, पिछले दो दशकों से अमेरिकी डॉलर से बंधा हुआ है।

दुनिया की नंबर 5वीं सबसे मजबूत करेंसी- ब्रिटिश पाउंड

स्टर्लिंग यूनाइटेड किंगडम की नेशन करेंसी है। ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग, दुनिया की सबसे मूल्यवान मुद्राओं में 5वें स्थान पर है। पाउंड स्टर्लिंग को अक्सर दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा माना जाता है। फिर भी, यह मजबूती के मामले में 4 अरबी करेंसी से पीछे है। यूनाइटेड किंगडम द्वारा यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के फैसले का पाउंड के मूल्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके बावजूद, यह प्रचलन में दुनिया की सबसे पुरानी मुद्रा है और सबसे अधिक विनिमय में से एक है। केबल या जीबीपी/यूएसडी एफएक्स बाजार में तीसरी सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्रा जोड़ी है।

Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।

डॉलर की मजबूती के आगे फीके पड़े बड़े देशों के विदेशी मुद्रा भंडार, अमेरिका और जापान के मुकाबले कहां है भारत

Foreign Reserve डॉलर की मजबूती के कारण पिछले कुछ महीनों में यूरो ब्रिटिश पाउंड और येन की कीमत में तेजी के गिरावट हुई है जिससे दुनिया के बड़े केंद्रीय बैंकों का विदेशी मुद्रा भंडार बड़ी मात्रा में दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर गिरा है।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। डॉलर के लगातार मजबूत रहने के कारण वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। भारत ही नहीं, यूरोप के बड़े देशों के विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे गिरे हैं। इसके पीछे का कारण इन देशों की ओर से अपनी मुद्रा को सहारा देने के लिए डॉलर को बड़ी संख्या में खर्च करना है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की शुरुआत से अब तक दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में 1 ट्रिलियन डॉलर की कमी आ चुकी है और यह घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर रह गया है। ब्लूमबर्ग की ओर से 2003 से आंकड़े एकत्रित किए जाने के बाद से अब तक की यह सबसे बड़ी गिरावट है।

डॉलर दो साल की ऊंचाई पर

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेड की ओर से ब्याज दर लगातार तीसरी बार 0.75 प्रतिशत बढ़ाने के एलान के बाद से डॉलर पूरी दुनिया की मुद्राओं के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। डॉलर, यूरो और येन जैसी मजबूती मुद्राओं के सामने 20 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।

IRCTC Indian Railway Train Cancelled Today Full list in Hindi

विदेशी मुद्रा भंडार कमी का कारण

डॉलर की मजबूती के कारण दुनिया के विभिन्न देशों के पास विदेशी मुद्रा भंडारों में मौजूद अन्य विदेशी मुद्राओं जैसे यूरो और पाउंड की कीमत में तेजी से गिरावट हुई हैं। इसके कारण दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडारों का मूल्यांकन गिरा है। वहीं, दुनिया के सभी देशों के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का एक अन्य बड़ा कारण डॉलर के सामने अपने देश की मुद्रा के अवमूल्यन में कमी लाने के लिए बड़ी मात्रा में डॉलर को बेचना है।

Banks Auto Debit Facility features and benefits (Jagran File Photo)

उदाहरण के लिए, भारत का विदेश मुद्रा भंडार इस साल की शुरुआत से अब तक 96 बिलियन डॉलर गिरकर 538 बिलियन डॉलर पहुंच गया है। इसमें 67 प्रतिशत गिरावट दुनिया की अन्य मुद्राओं में कमी के कारण है, जबकि बाकी की गिरावट भारतीय रुपये में गिरावट रोकने के लिए डॉलर खर्च करने के कारण हुई है। इस साल की शुरुआत से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में 10 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।

हर रोज बन रहा है गिरने का रिकॉर्ड, कहां तक गिरेगा रुपया और क्या होगा असर?

रुपये ने बनाया गिरने का रिकॉर्ड (Photo: Reuters)

सुभाष कुमार सुमन

  • नई दिल्ली,
  • 23 सितंबर 2022,
  • (अपडेटेड 23 सितंबर 2022, 11:07 AM IST)

अमेरिका में ब्याज दरें लगातार बढ़ (US Rate Hike) रही हैं. इस सप्ताह अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व ने लगातार तीसरी बार ब्याज दर में 0.75 फीसदी की भारी-भरकम बढ़ोतरी की. दरें बढ़ने की रफ्तार में सुस्ती नहीं आने का संकेत मिलने से दुनिया भर की करेंसीज डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर रही हैं. फेडरल रिजर्व का संकेत मिलने के बाद इन्वेस्टर्स दुनिया भर के बाजरों से पैसे निकाल रहे हैं और सुरक्षा के लिहाज से अमेरिकी डॉलर में अपना इन्वेस्टमेंट झोंक रहे हैं. इस कारण भारतीय मुद्रा 'रुपया (INR)' समेत तमाम अन्य करेंसीज के लिए ये सबसे खराब दौर चल रहा है. रुपये की बात करें तो इसकी वैल्यू (Indian Rupee Value) दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर पिछले कुछ समय के दौरान बड़ी तेजी से कम हुई है. रुपया लगातार एक के बाद एक नए निचले स्तर (Rupee All Time Low) पर पहुंचता जा रहा है. आज शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में ही रुपये ने गिरने का नया रिकॉर्ड बना दिया और नए सर्वकालिक निचले स्तर तक गिर गया.

सम्बंधित ख़बरें

2047 से पहले रुपया बनेगा Global Currency, सरकार ने शुरू की तैयारी
खाते से फर्जी तरीके से उड़े 91 लाख, बैंक से वापस नहीं मिला एक भी रुपया!
रुपया..बेरोजगार..राहुल गांधी ने कहा- देश के 'राजा' से हैं 10 सवाल
'रुपया नहीं लेती हूं, काम नहीं हुआ तो सिर फोड़ दूंगी',बोलीं पूर्व मंत्री
Rupee की दहाड़, डॉलर के मुकाबले 49 पैसे की लगाई छलांग, शेयर बाजार में भी बहार

सम्बंधित ख़बरें

इस तरह गिरी रुपये की वैल्यू

आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अब तक रुपया 7 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है. रुपये की वैल्यू अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कम होती गई है. अभी प्रमुख मुद्राओं के बास्केट में डॉलर के लगातार मजबूत होने से भी रुपये की स्थिति कमजोर हुई है. करीब दो दशक बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यूरो की वैल्यू कम हुई है, जबकि यूरो (Euro) लगातार अमेरिकी डॉलर से ऊपर रहता आया है. भारतीय रुपये की बात करें तो दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर दिसंबर 2014 से अब तक यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 25 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है. रुपया साल भर पहले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 74.54 के स्तर पर था.

इन कारणों से बढ़ रहा डॉलर का भाव

दरअसल बदलते हालात ने पूरी दुनिया के ऊपर मंदी का जोखिम खड़ा कर दिया है. अमेरिका में महंगाई (US Inflation) 41 सालों के उच्च स्तर पर है. इसे काबू करने के लिए फेडरल रिजर्व (Federal Reserve Rate Hike) तेजी से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. हालांकि इसके बाद भी महंगाई काबू में नहीं आ रही है. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का फायदा अमेरिकी डॉलर को मिल रहा है. अमेरिका आधिकारिक रूप से मंदी की चपेट में आ चुका है और ब्रिटेन समेत कई अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाएं गिरने के मुहाने पर हैं. मंदी (Recession) के डर से विदेशी निवेशक उभरते बाजारों से पैसे निकाल रहे हैं और सुरक्षित इन्वेस्टमेंट के तौर पर डॉलर खरीद रहे हैं. इस परिघटना ने अमेरिकी डॉलर को अप्रत्याशित तरीके से मजबूत किया है. इसी कारण कई दशक बाद पहली बार अमेरिकी डॉलर की वैल्यू यूरो (Euro) से भी ज्यादा हो गई है, जबकि यूरो अमेरिकी डॉलर से महंगी करेंसी हुआ करती थी. अभी अमेरिकी डॉलर करीब दो दशक के सबसे मजबूत स्तर पर पहुंच चुका है.

यह भी पढ़ें

हालांकि लिवाली के दबाव में यह 82.32 रुपये प्रति डॉलर के निचले स्तर तक लुढ़क गया. अंत में पिछले दिवस के 82.35 रुपये प्रति डॉलर की तुलना में 43 पैसे मजबूत होकर 81.92 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया. विश्लेषकों के अनुसार, चीन के कोविड प्रतिबंध को पूरी तरह से समाप्त करने से इंकार करने की वजह से दुनिया की प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में गिरावट आई है, जिससे रुपये को समर्थन मिला है. इसके साथ ही घरेलू शेयर बाजार में लगातार दूसरे दिन भी तेजी रहने से रुपये को बल मिला है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

रेटिंग: 4.72
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 550
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *