दलाल कैसे बने?

दलाल स्ट्रीट से पैसा कमाने के लिए ट्रेडर्स इन बातों का जरूर रखें ध्यान
17,450 से 17,300 को प्रमुख सपोर्ट के रूप में देखा जा रहा है और कमजोरी का पहला संकेत तभी देखा जाएगा, जब हम उससे नीचे खिसकेंगे.
- Money9 Hindi
- Updated On - October 4, 2021 / 12:27 PM IST
बीते सप्ताह के दौरान हमने एक सकारात्मक नोट पर शुरुआत की, लेकिन इसमें फॉलोअप बाइंग की कमी थी, क्योंकि यह एक्सपायरी वीक था और जैसा कि हमें 18,000 अंक के मनोवैज्ञानिक लेवल के आसपास रखा गया था. फिर हमने उछाल के बीच में धीरे-धीरे गिरावट देखी और आखिरकार 17,500 के स्तर के आसपास 1.80% की घाटे के साथ खत्म हुआ. इसके परिणामस्वरूप, निफ्टी की अपनी वीकली जीत का सिलसिला खत्म हो गया.
नेगेटिव डाइवरजेंस के साथ गहरे ओवरबॉट टेरेटरी में RSI स्मूथेड ऑसिलेटर की नियुक्ति को देखते हुए हम सितंबर महीने की दूसरी छमाही के दौरान सतर्क थे. बीते सप्ताह के दौरान हम इसकी एक झलक देख चुके हैं लेकिन दलाल कैसे बने? बहुत कुछ नहीं बदला है. हम सतर्क रहते हैं और हमें लगता है कि किसी भी उछाल को 17,800-17,950 के आसपास कड़ी बाधा का सामना करना पड़ सकता है. जबकि दूसरी ओर, 17,450 – 17,300 को प्रमुख समर्थन के रूप में देखा जाता है और कमजोरी का पहला संकेत तभी देखा जाएगा जब हम उसी से नीचे खिसकेंगे. इसके अलावा, हमने भारत VIX में भी इजाफा देखा है जो दर्शाता है कि अस्थिरता हाई स्तर पर रहने की संभावना है.
भले ही बेंचमार्क सप्ताह के दौरान कम फिसल गया, हमने देखा कि व्यापक मार्केट अपनी चर्चा के साथ जारी रहा और इंडेक्स के बाहर कई बेहतर प्रदर्शन के अवसर देखे गए. व्यापारियों को स्टॉक-विशिष्ट ट्रेडों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है, हालांकि उन्हें समय पर लाभ बुक करना चाहिए.
स्टॉक की सलाह
बाटा इंडिया | खरीदें | स्टॉप लॉस- Rs 1,760 | टारगेट प्राइज: Rs 1,978
अप्रैल महीने में 1,260 के स्तर के आसपास बनाए गए स्विंग लो के बाद, स्टॉक की कीमतें लगातार ऊंचे स्तर के गठन के साथ बढ़ी हैं. ऐसे में हर डिप में बिकवाली हो रही थी और बीते हफ्ते में भी ऐसा ही देखने को मिला. एक छोटे से कंसोलिडेशन के बाद डेली चार्ट पर, कीमतों ने एक ‘सिमिट्रिकल ट्राइंगल’ ब्रेकआउट की पुष्टि करते हुए ऊपर की ओर कंसोलिडेशन को तोड़कर अपट्रेंड को फिर से शुरू कर दिया है.
कंसोलिडेशन फेज के दौरान वॉल्यूम एक्टिविटी सूख गई थी, हालांकि तेजी से ब्रेकआउट के साथ हम एक बड़ी वृद्धि देख सकते हैं. इसके अलावा, हम RSI स्मूथेड ऑसिलेटर में 50 स्तरों के औसत के आसपास एक ताजा खरीद क्रॉसओवर भी देख रहे हैं, जो बुल्स के लिए अच्छा संकेत है. उपरोक्त सभी हालातों को देखते हुए, हम इस काउंटर में एक मजबूत बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करते हैं और निकट अवधि में 1,978 रुपए के लक्ष्य के लिए मौजूदा स्तरों पर खरीदारी करने की सलाह देते हैं. स्टॉप लॉस को 1,760 रुपए पर रखा जाना चाहिए.
डॉ. रेड्डी लैब्स | खरीदें | स्टॉप लॉस: Rs 4,780 | टारगेट प्राइज: Rs 5,320
जुलाई महीने के दौरान हमने स्टॉक की कीमतों में भारी गिरावट देखी, हालांकि यह गिरावट हाल ही में 4116 से 5589 के स्तर पर देखी गई. रैली के 78.6% रिट्रेसमेंट के आसपास पकड़ में आ गई. बीते कुछ महीनों में, हमने धीरे-धीरे इजाफा देखा है स्टॉक की कीमतें और डेली चार्ट पर हायर बॉटम का गठन भी. स्टॉक की कीमतें अब लगभग एक बुलिश कप एन हैंडल ब्रेकआउट की पुष्टि करने की कगार पर हैं और मोमेंटम ऑसिलेटर आरएसआई स्मूथेड का प्लेसमेंट प्री-एम्प्टीव खरीद का समर्थन करता है. कीमतें भी 89EMA और 200SMA के ऊपर बंद हुई हैं, यह दिखलाता है कि मीडियम और लॉन्गटर्म नेचर सकारात्मक हो गई है. बीते सप्ताह के दौरान हमने कई फार्मा शेयरों का बेहतर प्रदर्शन देखा और फार्मा इंडेक्स ने तेजी से ‘इनव हेड एन शोल्डर’ ब्रेकआउट को कंफर्म किया है. इन तमाम फैक्ट्स के आधार पर, हमें लगता है कि इस फार्मा हैवीवेट के बेहतर प्रदर्शन की संभावना है और इसलिए हम 5320 रुपए के शॉर्ट टर्म टारगेट के लिए मौजूदा स्तरों पर खरीदारी करने की सलाह देते हैं. स्टॉप लॉस को 4780 रुपए पर रखा जा सकता है.
(लेखक एंजल वन लिमिटेड में टेक्निकल एनालिस्ट हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
Sucheta Dalal Biography – जानिए सुचेता दलाल कौन है?, हर्षद मेहता से भी बड़े स्कैम का कर चुकी है खुलासा
Sucheta Dalal Biography in Hindi – दोस्तों वैसे तो हमारे देश में पत्रकारिता के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक दिग्गज पत्रकार काम कर रहे हैं, लेकिन जब बात आती है business journalism की तो हम सब के दिमाग में जो सबसे पहला नाम सामने आता है, वह है देश की बेहतरीन और जानी-मानी बिज़नेस, फाइनेंशियल और इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स सुचेता दलाल का.
बिज़नेस फील्ड खासकर शेयर मार्किट में इंटरेस्ट रखने वाले लोगों को सुचेता दलाल का नाम को जरूर सुना होगा. दोस्तों सुचेता दलाल वह पत्रकार है, जिसने साल 1992 में हर्षद मेहता के बैंक घोटाले का पर्दाफाश किया था. यह उस समय का आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला किया था. यहीं नहीं इसके अलावा सुचेता दलाल का केतन पारेख स्कैम को उजागर करने में भी बड़ा हाथ था.
इतने बड़े घोटाले और उससे जुड़े हाईप्रोफाइल लोगों की सच्चाई दुनिया के सामने लाने का काम सुचेता दलाल के लिए इतना आसान नहीं था. सुचेता दलाल को कई बार धमकी मिली, लालच दिया गया, डराया गया, दबाव बनाया गया और उन्हें बिना नौकरी के भी रहना पड़ा. लेकिन सुचेता दलाल ने बिना डरे और हिम्मत के साथ सच्चाई को दुनिया के सामने रखा.
आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर सुचेता दलाल कौन है? उन्होंने पत्रकारिता के जगत में कैसे इतना बड़ा नाम हासिल किया? सुचेता दलाल ने कितने घोटाले उजागर किए और इन दिनों सुचेता दलाल क्या कर रही है?
सुचेता दलाल का जीवन परिचय (Sucheta Dalal Biography)
बिज़नेस, फाइनेंशियल और इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स सुचेता दलाल का जन्म साल 1962 में महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ था. सुचेता दलाल ने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई से ही पूरी की है. सुचेता दलाल ने कर्नाटक कॉलेज से स्टेटैस्टिक्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है. इसके बाद सुचेता दलाल ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से LLB और LLM की डिग्री हासिल की है. सुचेता दलाल का बचपन से ही बिजनेस में खासा इंटरेस्ट रहा है.
सुचेता दलाल का करियर (Sucheta Dalal Career)
सुचेता दलाल के पेरेंट्स डॉक्टर्स थे, लेकिन सुचेता दलाल ने अपने इंटरेस्ट को देखते हुए बिज़नेस जर्नलिज़्म के क्षेत्र में काम करने का फैसला किया. वह भी उस समय जब बिज़नेस जर्नलिज़्म को कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती थी. सुचेता दलाल ने सबसे पहले साल 1984 में एक निवेश पत्रिका- फॉर्च्यून इंडिया में काम करना शुरू किया. इसके बाद सुचेता दलाल बिज़नेस स्टैंडर्ड में काम करने लगी. 1990 के दशक की शुरूआत में सुचेता दलाल टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ काम करने लगी. थोड़े दिन काम करने के बाद वह जल्द ही टाइम्स ऑफ इंडिया की वित्तीय संपादक बन गईं.
सुचेता दलाल के जीवन में अहम् मोड़ आया साल 1992 में, जब सुचेता दलाल को पता चला कि बिजनेसमैन हर्षद मेहता 15 दिनों के लिए लोन लेता है और 15 दिन बाद पैसे वापस कर देता है. जब सुचेता दलाल ने इस मामले का खुलासा किया तो मामले की जाँच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाई गई. वहीँ सीबीआई ने भी हर्षद मेहता और उसके भाईयों को गिरफ्तार कर लिया. RBI की एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार साल 1992 में हुआ यह घोटाला 4025 करोड़ का था.
इस खुलासे के बाद सुचेता दलाल का नाम पूरे देश में सुर्ख़ियों में आ गया. साल 1998 तक सुचेता दलाल टाइम्स ऑफ इंडिया दलाल कैसे बने? में काम करती रही. इसके बाद सुचेता दलाल ने साल 1998 में इंडियन एक्सप्रेस को जॉइन कर लिया. साल 2001 का समय सुचेता दलाल के लिए बड़ा कठिन रहा. इसी साल सुचेता दलाल ने केतन पारेख स्कैम का खुलासा किया. साल 2006 में इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में सुचेता दलाल ने बताया था कि हर्षद मेहता स्कैम से भी बड़ा केतन पारेख स्कैम था. जब वह इस पर काम कर रही थी तब उन्हें धमकी भरे कॉल्स और मेल्स मिल रहे थे. हालांकि सुचेता दलाल पर कभी इन धमकियों का असर नहीं हुआ. सुचेता दलाल ने इसके अलावा सीआर भंसाली स्कैम, एनरॉन स्कैम, IDBI स्कैम को उजागर करने में भी बड़ी भूमिका निभाई है.
वर्तमान में सुचेता दलाल (Sucheta Dalal in present)
सुचेता दलाल फिलहाल ‘मनीलाइफ इंडिया’ की मैनेजिंग एडिटर हैं. साथ ही मनीलाइफ फाउंडेशन की ट्रस्टी भी दलाल कैसे बने? है.
सुचेता दलाल को मिले अवार्ड (Sucheta Dalal Award)
- पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए सुचेता दलाल को साल 2006 में भारत सरकार दलाल कैसे बने? ने पद्म श्री से सम्मानित किया था.
- इसके अलावा सुचेता दलाल को मीडिया फाउंडेशन द्वारा स्थापित चमेली देवी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. दलाल कैसे बने?
- सुचेता दलाल को 1992 में हर्षद मेहता प्रकाशन पर काम और संबंधित लेखन के लिए फेमिना की वुमन ऑफ सब्सटेंस डिग्री से सम्मानित किया गया था.
सुचेता दलाल के पति (Sucheta Dalal Husband)
सुचेता दलाल भले ही एक पत्रकार है, लेकिन उन्हें अपने निजी जीवन को मीडिया के सामने लाना पसंद नहीं है. सुचेता दलाल के पति का नाम देबाशिस बसु (Debashis Basu) है. सुचेता दलाल के पति मनीलाइफ पत्रिका के मालिक हैं.
सुचेता दलाल की किताबें (Sucheta Dalal Book)
सुचेता दलाल ने दो बुक भी लिखी हैं, जिनके नाम है – ‘द स्कैम: हू वोन, लॉस्ट, हू गॉट अवे (1993)’ और ‘एडी श्रॉफ: टाइटन ऑफ फाइनेंस एंड फ्री एंटरप्राइज (2000)’.
सुचेता दलाल के विवाद (Sucheta Dalal Controversy)
साल 2015 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने यह कहते हुए मनीस्टाइल पत्रिका पर 100 करोड़ रुपए का मान-हानि केस दायर किया था कि पत्रिका के जरिए उसकी छवि ख़राब की गई है. हालांकि बाद में NSE ने मानहानि का केस वापस ले लिया.
वरुण धवन की पत्नी नताशा दलाल को पैपाराजी ने बुलाया ‘भाभी’, देखिए कैसा आया उनका रिएक्शन
बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन ने रविवार को अपनी गर्लफ़्रेंड और फैशन डिज़ाइनर नताशा दलाल संग सात फेरे ले लिए हैं।
बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन (Varun Dhawan) ने रविवार को अपनी गर्लफ़्रेंड और फैशन डिज़ाइनर नताशा दलाल (Natasha Dalal) संग सात फेरे ले लिए हैं। शादी तो काफी प्राइवेट तरीके से हुई थी, लेकिन जोड़े ने उसके बाद बाहर आकर पैपाराजी के लिए पोज दिए जिसकी तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर जमकर वायरल हो रहे हैं। उनमें से ही एक वीडियो है जिसमें पैपाराजी नताशा को ‘भाभी’ कहकर बुलाते हैं।
पैपाराजी ने नताशा दलाल को बुलाया ‘भाभी’
जब वरुण धवन और नताशा दलाल शादी के बाद पैपाराजी से मिलने बाहर आए, तो उनमें से एक फोटोग्राफर ने उन्हें ‘भाभी’ कह दिया। ये सुनकर नताशा शर्माने लगी। वही, एक्टर भी अपनी दुल्हनिया के साथ ही थे जो उन्हें अच्छे से गाइड कर रहे थे कि कैसे पोज करना है। लेकिन कुछ ही देर बाद, वो थोड़े प्रोटेक्टिव हो गए और पैपाराजी से कहने लगे- ‘आराम से, डर जाएगी बेचारी’। जिसपर एक फोटोग्राफर ने जवाब दिया- ‘अभी को आदत डालना पड़ेगा’।
दलाल कैसे बने?
भारत : फिर कैसे बने गणराज्य?
दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, अमेरिका नहीं भारत है। 600 ईसा पूर्व भारत में सैकड़ों गणराज्य थे।
जहां बिना लिंग और जाति भेद के समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधि खुली चर्चाओं के बाद शासन के नियम और कानून तय करते थे। फिर राजतंत्र की स्थापना हुई और दो हजार से ज्यादा वर्षो तक चली। माना यह जाता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान पश्चिमी विचारों से प्रभावित हो कर समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व का भारत में प्रचार हुआ और उसी से जन्मा हमारा आज का लोकतंत्र। जिसे आज पूरी दुनिया में इसलिए सराहा जाता है क्योंकि इसमें बिना रक्त क्रांतियों के चुनाव के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से सरकारें बदल जाती हैं, जबकि हमारे साथ ही आजाद हुए पड़ोसी देशों में आए दिन सैनिक तख्तापलट होते रहते हैं।
आज पूरी दुनिया मानती है कि शासन का सबसे बढ़िया प्रारूप लोकतंत्र है। दलाल कैसे बने? क्योंकि इसमें किसी के अधिनायकवादी बनने की संभावना नहीं रहती। एक चाय बेचने वाला भी देश का प्रधान मंत्री बन सकता है या एक दलित भारत का राष्ट्रपति दलाल कैसे बने? या मुख्य न्यायाधीश बन सकता है। अपनी इस खूबी के बावजूद भारत के लोकतंत्र की खामियों पर सवाल उठते रहे हैं। सातवें दशक में गुजरात के छात्र आंदोलन और फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संघषर्वाहिनी के माध्यम से पैदा हुए जनआक्रोश की परिणिति पहले आपातकाल की घोषणा और फिर केंद्र में सत्ता पलटने से दलाल कैसे बने? हुई। तब से आज तक अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों और क्षेत्रीय आंदोलनों के कारण प्रांतों और केंद्र में सरकारें चुनावों के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से बदलती रही हैं, लेकिन दलाल कैसे बने? हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता नहीं सुधरी। इसके विपरीत राजनीति में जवाबदेही और पारदर्शिता का तेजी से पतन हुआ है।
आज राजनीति में न तो विचारधारा का कोई महत्त्व बचा है और न ही ईमानदारी का। हर दल में समाज के लिए जीवन खपाने वाले कार्यकर्ता कभी भी अपना उचित स्थान नहीं पाते। उनका जीवन दरी बिछाने और दलाल कैसे बने? नारे लगाने में ही समाप्त हो जाता है। हर दल चुनाव के समय टिकट उसी को देता है जो करोड़ों रुपया खर्च करने को तैयार हो या उसके समर्थन में उसकी जाति का विशाल वोट बैंक हो। फिर चाहे उसका आपराधिक इतिहास रहा हो या उसने बार-बार दल बदले हों, इसका कोई विचार नहीं किया जाता। यही कारण है कि आज भारत में भी लोकतंत्र सही मायने में जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा। हर दल और हर सरकार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अधिनायकवादी प्रवृत्तियां ही देखी जाती हैं। परिणामत: भारत हमेशा एक चुनावी माहौल में उलझा रहता है। चुनाव जीतने के सफल नुस्खों को हरदम हर दल द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। नतीजतन देश में साम्प्रदायिक, जातिगत हिंसा या तनाव और जनसंसाधनों की खुली लूट का तांडव चलता रहता है, जिसके कारण समाज का हर वर्ग हमेशा असुरक्षित और अशांत रहता है। ऐसे में आमजन के सम्पूर्ण विकास की कल्पना करना भी बेमानी है। मूलभूत आवश्यकताओं के लिए आज भी हमारा बहुसंख्यक समाज रात दिन संघषर्रत रहता है।
पिछले कुछ हफ्तों से चल रहे किसान आंदोलन को मोदी जी किसानों का पवित्र आंदोलन बताते हैं और आंदोलनजीवियों पर प्रहार करते हैं। अपनी निष्पक्षता खो चुका मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आंदोलनकारियों को आतंकवादी, खलिस्तानी या नक्सलवादी बताता है। विपक्षी दल सरकार को पूंजीपतियों का दलाल और किसान विरोधी बता रहे हैं। पर सच्चाई क्या है? कौन सा दल है जो पूंजीपतियों का दलाल नहीं है? कौन सा दल है जिसने सत्ता में आकर किसान मजदूरों की आर्थिक प्रगति को अपनी प्राथमिकता माना हो? धनधान्य से भरपूर भारत का मेहनतकश आम आदमी आज अपने दुर्भाग्य के कारण नहीं बल्कि शासनतंत्र में लगातार चले आ रहे भ्रष्टाचार के कारण गरीब है। इन सब समस्याओं के मूल में है संवाद की कमी। आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच जो परिस्थिति आज पैदा हुई है वह भी संवाद की कमी के कारण हुई है। अगर ये कृषि कानून समुचित संवाद के बाद लागू किए जाते तो शायद यह नौबत नहीं आती। आज दिल्ली बॉर्डर से निकल कर किसानों की महापंचायतों का एक क्रम चारों ओर फैलता जा रहा है और ये सिलसिला आसानी से रुकने वाला नहीं लगता। क्योंकि अब इसमें विपक्षी दल भी खुल कर कूद पड़े हैं।
हो सकता है कि इन महापंचायतों के दबावों में सरकार इन कानूनों को वापस ले ले, पर उससे देश के किसान मजदूर और आम आदमी को क्या उसका वाजिब हक मिल पाएगा? ऐसा होना असंभव है। इसलिए लगता है कि अब वो समय आ गया है कि जब दलों की दलदल से बाहर निकल कर लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए, जिसके लिए हमें 600 ईसा पूर्व भारतीय गणराज्यों से प्रेरणा लेनी होगी। जहां संवाद ही लोकतंत्र की सफलता की कुंजी था। सत्तारूढ़ दलों सहित देश के हर दल को इसमें पहल करनी होगी और साथ ही समाज के हर वर्ग के जागरूक लोगों आगे आना होगा। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी महापंचायत हर तीन महीने में हर जिले के स्तर पर आयोजित की जाए, जिनमें स्थानीय, प्रांतीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता के बीच संवाद हो। इन महापंचायतों में कोई भी राजनैतिक दल या संगठन अपना झंडा या बैनर न लगाए, केवल तिरंगा झंडा ही लगाया जाए और न ही कोई नारेबाजी हो।
महापंचायतों का आयोजन एक समन्वय समिति करे, जिसमें चर्चा के लिए तय किए हुए मुद्दे मीडिया के माध्यम से क्षेत्र में पहले ही प्रचारित कर दिए जाएं और उन पर अपनी बात रखने के लिए क्षेत्र के लोगों को खुला निमंत्रण दिया जाए। इन महापंचायतों में उस क्षेत्र के सांसद और विधायकों की केवल श्रोता के रूप में उपस्थिति अनिवार्य हो, वक्ता के रूप में नहीं। क्योंकि विधान सभा और संसद में हर मुद्दे के लिए बहस का समय नहीं मिलता। इस तरह जनता की बात शासन तक पहुंचेगी और फिर धरने, प्रदर्शनों और हड़तालों की सार्थकता क्रमश: घटती जाएगी। अगर ईमानदारी से यह प्रयास किया जाए तो निश्चित रूप से हमारा लोकतंत्र सुदृढ़ होगा और हर भारतवासी लगातार सक्रिय रहकर अपने हक को पाने के लिए सचेत रहेगा। फिर उसकी बात सुनना सरकारों की मजबूरी होगी।