हड़ताल मूल्य

जन एकता जन अधिकार आंदोलन ने किया 8 जनवरी की मजदूर-किसान-छात्र हड़ताल का समर्थन, 30 करोड़ लोग लेंगे हिस्सा
रायपुर, 05 जनवरी 2019. बीस करोड़ मजदूरों, किसानों, खेत मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, दलितों और आदिवासियों की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले वाले 200 से अधिक संगठनों के राष्ट्रीय मंच जन एकता जन अधिकार आंदोलन ने जनविरोधी नवउदारवादी आर्थिक नीतियों और देशविरोधी नागरिकता कानून के खिलाफ आगामी 8 जनवरी को प्रस्तावित देशव्यापी मजदूर-किसान हड़ताल का समर्थन किया है और देशवासियों से इसे सफल बनाने की अपील की है।
इस आंदोलन के साथ जुड़े संगठनों के नेताओं ने आज यहां जारी एक बयान में संघ-संचालित भाजपा सरकार द्वारा बनाये गए नागरिकता कानून को जनविरोधी और संविधानविरोधी करार देते हुए कहा है कि इससे हमारे देश के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी। इसके साथ एनसीआर की जारी प्रक्रिया के जुड़ने से देश के लाखों मेहनतकशों का जीवन संकट में फंस जाएगा। हमारे देश के लोगों के जनतांत्रिक अधिकारों और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के संघर्ष में यह आम हड़ताल एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
नागरिकता कानून के खिलाफ वामपंथी पार्टियों, कई सामाजिक संगठनों और मंचों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलनों का तानाशाहीपूर्ण तरीके से धारा 144 लागू करके, सार्वजनिक परिवहन को बंद करके, इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाकर और पुलिस बर्बरता के जरिये दमन किये जाने की जन अधिकार आंदोलन ने तीखी निंदा करते हुए कहा है कि निकट भविष्य में हमारे नागरिकों के शांतिपूर्ण आंदोलन करने के जनवादी अधिकारों को ही प्रतिबंधित किये जाने की निशानी है। इस सिलसिले में पिछले चार माह से जम्मू-कश्मीर की जनता के अधिकारों पर जारी हमलों को नहीं भूला जाना चाहिए।
जन अधिकार आंदोलन ने कहा है कि भाजपा सरकार जिन जनविरोधी-देशविरोधी कॉर्पोरेटपरस्त आर्थिक नीतियों को लागू कर रही है, उसके दुष्प्रभाव के खिलाफ आम जनता के तमाम तबके सड़कों पर है। यह कदम इसी से आम जनता का ध्यान भटकाने के लिए है।
8 जनवरी की आम हड़ताल (8 January general strike) के जरिये सबको रोजगार, महंगाई रोकने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, न्यूनतम वेतन, सबको पेंशन, रेलवे और प्रतिरक्षा उद्योग सहित सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने, सबको समान शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा, श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव को रोकने, किसानों के लिए लाभकारी समर्थन मूल्य और संविधानविरोधी नागरिकता कानून को वापस लेने की मांग की जा रही है। जन अधिकार आंदोलन ने इन मांगों का समर्थन करते हुए आशा व्यक्त की है कि इस दिन आम जनता के प्रतिरोध का असली चेहरा देखने को मिलेगा। इस आम हड़ताल में 30 करोड़ लोगों की हिस्सेदारी की उम्मीद की जा रही है।
नियमितीकरण की मांगः हड़ताल पर बैठे सहकारी समितियों के कर्मचारी
जिले के सहकारी समितियों के प्रबंधक सहित सभी कर्मचारियों ने नियमितीकरण की मांग को लेकर हड़ताल कर दी है. आंदोलनकारी कर्मचारी जिला पंचायत परिसर में धरने पर बैठे. इन लोगों की मांग है कि शासकीय कर्मचारियों की तरह सहकारी समितियों के कर्मचारियों को भी नियमित करते हुए शासकीय कर्मचारी घोषित किया जाए.
भिंड। जिले की सहकारी समितियों के प्रबंधक सहित सभी कर्मचारियों के हड़ताल पर है. ऐसे में भिंड जिले में खाद्यान्न वितरण का काम तो अटका ही हुआ है, साथ ही समर्थन मूल्य पर गेहूं और सरसों की फसल का पंजीयन कार्य भी प्रभावित हो रहा है. कर्मचारियों ने अपनी मांग को लेकर जिला पंचायत परिसर में बैठकर धरना भी शुरू कर दिया है. इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.
- कई बार किया प्रदर्शन, मिला सिर्फ आश्वासन
प्रदर्शन कर रहे मध्य प्रदेश सहकारिता समिति कर्मचारी महासंघ के जिला अध्यक्ष प्रदीप सिंह परिहार का कहना है कि लंबे समय से सहकारी समितियों के कर्मचारियों की मांग चली आ रही है. लेकिन हमेशा से ही सिर्फ आश्वासन ही दिया जा रहा है. सरकार कहती है कि अपनी हड़ताल बंद कर दो हम आपकी मांगों को पूरा करेंगे, लेकिन आज तक मांगे पूरी नहीं हुई.
धरना दे रहे समिति के कर्मचारियों की प्रमुख मांग है कि सहकारी समितियों के प्रभारी प्रबंधक, सहायक प्रबंधक, विक्रेताओं, लेखपाल, लिपिक कंप्यूटर ऑपरेटर और चौकीदारों को शासकीय कर्मचारी घोषित करते हुए सरकार के अन्य कर्मचारियों की तरह उन्हें भी सुविधाएं दी जाएं. साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सरकार ने जो राशन काटा है. उसका तुरंत आवंटन जारी किया जाए. कर्मचारियों पर मामले दर्ज कराए गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए. इसके अलावा पीडीएस कमीशन का भी भुगतान किया जाए.
भिंड जिले में 168 सहकारी समितियां है. जिन पर 508 शासकीय उचित मूल्य की दुकानें हैं. हड़ताल पर चले जाने की वजह से इन दुकानों पर काम बंद हो गया है. राशन मिलने का संकट खड़ा हो गया है. वहीं वर्तमान में समर्थन मूल्य पर गेहूं और सरसों की खरीदी के लिए भी पंजीयन कार्य चल रहा है. यदि हड़ताल इसी तरह जारी रही तो हितग्राही और किसान दोनों के लिए ही परेशानियां बढ़ जाएगी. क्योंकि समिति प्रबंधकों और उनके कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने की वजह से किसानों को पंजीयन के लिए प्राइवेट दुकानों का रुख करना पड़ रहा है.
आंदोलनकारी कर्मचारियों ने मध्य प्रदेश सरकार हड़ताल मूल्य को चेतावनी दी है कि, यदि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वे जल्द ही कलम बंद हड़ताल पर चले जाएंगे. यह हड़ताल अनिश्चितकालीन होगी.
Two-day nationwide strike: दूसरे दिन भी जारी है श्रमिक संगठनों की हड़ताल, बैंकों और इन सेवाओं पर पड़ा असर
Two-day nationwide strike: श्रमिक संगठन एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि लगभग सभी क्षेत्रों के कर्मचारी एवं कामगार इस हड़ताल का हिस्सा बने हैं और ग्रामीण इलाकों में भी इसे खासा समर्थन मिल रहा है. उन्होंने बताया कि अब अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के कर्मचारी भी इसमें शामिल हो गए हैं.
इस हड़ताल को बैंकिंग कर्मचारी संगठनों का भी अच्छा समर्थन मिल रहा है. (फोटो: पीटीआई)
Two-day nationwide strike: केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में बुलाई गई केंद्रीय श्रमिक संगठनों की देशव्यापी हड़ताल के दूसरे दिन मंगलवार को कुछ हिस्सों में बैंकिंग सेवाएं और सार्वजनिक परिवहन आंशिक रूप से ठप होने से सामान्य जनजीवन पर असर देखा जा रहा है.
श्रमिक संगठन एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने पीटीआई-भाषा से कहा कि लगभग सभी क्षेत्रों के कर्मचारी एवं कामगार इस हड़ताल मूल्य हड़ताल का हिस्सा बने हैं और ग्रामीण इलाकों में भी इसे खासा समर्थन मिल रहा है. उन्होंने बताया कि अब अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के कर्मचारी भी इसमें शामिल हो गए हैं.
हड़ताली कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि का दावा
उन्होंने हड़ताल के पहले दिन 20 करोड़ से अधिक कर्मचारियों की भागीदारी का दावा करते हुए कहा कि दूसरे दिन इस संख्या में और बढ़ोतरी होगी. देश भर के केंद्रीय श्रमिक संगठनों के संयुक्त मोर्चा ने इस देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया हुआ है. यह हड़ताल कर्मचारियों, किसानों एवं आम आदमी के खिलाफ सरकार की कथित गलत नीतियों के विरोध में बुलाई गई है.
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इसके जरिये श्रमिक संगठनों ने श्रम कानूनों को वापस लेने, निजीकरण की किसी भी योजना को खारिज करने, राष्ट्रीय मौद्रीकरण हड़ताल मूल्य पाइपलाइन को बंद करने, मनरेगा के तहत आवंटन बढ़ाने और ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को स्थायी करने की मांग प्रमुखता से रखी है.
बैंकिंग कर्मचारी संगठनों का भी समर्थन
इस हड़ताल को बैंकिंग कर्मचारी संगठनों का भी अच्छा समर्थन मिल रहा है. सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की योजना को ठंडे बस्ते में डालने की मांग कर रहे बैंकिंग कर्मचारी संगठन इसका हिस्सा बन रहे हैं. इससे कई राज्यों में बैंकिंग सेवाओं पर असर देखने को मिला है.
अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सी हड़ताल मूल्य एच वेंकटचलम ने कहा कि हड़ताल के पहले दिन कर्मचारियों के मौजूद नहीं रहने से देश भर में करीब 18,000 करोड़ रुपये मूल्य के 20 लाख चेकों का क्वीयरेंस नहीं हो पाया.
भारतीय बैंक कर्मचारी महासंघ (बीईएफआई) और अखिल भारतीय बैंक अधिकारी संघ (एआईबीओए) भी इस हड़ताल का हिस्सा है.
पश्चिम बंगाल में चाय बागान मजदूरों की हड़ताल
पश्चिम बंगाल हो या असम, चाय बागान के दिहाड़ी मजदूर भूखों मर रहे हैं. भारतीय रेल के बाद चाय-बागान देश की दूसरे नंबर का सबसे ज्यादा श्रम-शक्ति का इस्तेमाल करने वाला उद्योग है, जहां लाखों मजदूरों को गुज़ारे लायक वेतन तक से वंचित किया जा रहा है, जिसका नतीजा है भुखमरी से मौत, और ये भयावह हालत सिर्फ बंद चाय-बागानों तक ही सीमित नहीं है.
चाय बागान मालिकों के लिए घाटे का सौदा है जैसी कोरी बकवास और संरचित न्यूनतम वेतन लागू करने की मजदूरों की मांग तक के खिलाफ मालिकों के लगातार हमलों को धता बताने के लिए, पश्चिम बंगाल में चाय बागान क्षेत्र में कार्यरत 29 ट्रेड यूनियनों ने एक साथ मिलकर 2014 में उत्तरी बंगाल के दोआर इलाके के चालसा में एक मजदूर सम्मेलन के जरिए एक ”संयुक्त फोरम” का गठन किया था.
जोशीले मजदूर एकताबद्ध आंदोलन के चलते ममता सरकार ने यूनियनों को यह आश्वासन दिया कि वो बंगाल के चाय उद्योग के 150 साल के इतिहास में पहली बार न्यूनतम वेतन लागू करेगी और 20 फरवरी 2015 को इस पर एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इसी तरह का विक्षोभ असम के बागानों में भी देखा गया.
पिछले साढ़े तीन सालों में, संयुक्त फोरम ने अपने संयुक्त जन आंदोलनों से बंगाल के साढ़े चार लाख मजदूरों का विश्वास और सम्मान कमाया है. लेकिन न्यूनतम वेतन, पूर्व में उन्हें वेतन के हिस्से के तौर पर मिलने वाले कानूनी राशन की नगद कीमत को लागू करने, स्थाई मजदूरों के लिए रिहायशी भूभाग, बंद पड़े बागानों को खोलने और स्थाई मजदूरों की वर्तमान 58 साल की रिटायरमेंट आयु को बढ़ाकर 60 साल करने जैसी उनकी मांगें राज्य सरकार और बागान मालिकों के बीच पर्दे के पीछे होने वाले सौदों की वजह से बस सपना बनी रह गईं.
राज्य के श्रम निदेशालय ने आखिरकार 6 अगस्त को 172 रु. की राशि को न्यूनतम वेतन के तौर पर प्रस्तावित किया, लेकिन न्यूनतम वेतन की बुनियादी गणनाओं को दरकिनार कर दिया गया. उन्होंने औद्योगिक मजदूरों के मूल्य सूचकांक पर विचार ही नहीं किया, संतुलित खाद्य तालिका के मूल्य, ईंधन और बिजली की नगदी के तौर पर मूल्य जिसका 20 प्रतिशत भार होता है और इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और बुढ़ापे का प्रावधान आदि जिनका भार 25 प्रतिशत होता है नहीं जोड़ा गया, ताकि मालिकों के अतिशय मुनाफे के अनुपात को बनाए रखा जा सके. संयुक्त फोरम की घटक यूनियनों ने श्रम सचिव के सामने अपनी सुविचारित गणनाओं को रखा ताकि बातचीत जारी रखी जा सके. लेकिन श्रम सचिव एकतरफा फैसला करके इस बातचीत से अलग हो गये और त्रिपक्षीय बातचीत को खत्म कर दिया.
संयुक्त फोरम (जिसका ऐक्टू से संबद्ध तराई संग्रामी चाय श्रमिक यूनियन एक घटक है) ने बंगाल के चाय उद्योग में 7-8-9 अगस्त 2018 को तीन दिन की हड़ताल, और पहाड़ और मैदान दोनों के ही चाय बागान के मजदूरों को सिलिगुड़ी में ममता के लघु सचिवालय (उत्तोरकन्या) तक लांग मार्च का आहृान किया.
9 अगस्त को, थोरबू, तिंगलिंग और मिरिक पहाड़ी के आसपास के पांच अन्य बागानों में सैकड़ों चाय बागान मजदूरों ने हड़ताल कर दी और सिलीगुड़ी की तरफ लांग मार्च शुरु किया. जब वे सोनादा बाजार पहुंचे तो वहां स्थानीय ओ.सी. के अंतर्गत भारी पुलिस बल ने उनका रास्ता रोक लिया. मजदूर और ट्रेड यूनियन नेता सड़क पर ही बैठ गए और पुलिस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. बाद में पुलिस प्रशासन ने संयुक्त फोरम के 11 नेताओं पर गैर-जमानती धाराएं थोप दीं.
हड़ताल को बीच में ही रोक देने की कोशिश करते हुये इतने विशाल और अभूतपूर्व मजदूर मार्च को पुलिस और प्रशासन ने बड़ी मशक्कत से 48 विभिन्न जगहों पर रोका. लेकिन निडर और अविचलित हड़ताली आगे बढ़ते रहे. पर्वतीय बागानों में भी निर्मित चाय के डिस्पैच को रोक दिया गया.
इन बातों से गुस्साए राज्य के श्रम मंत्री ने 16 अगस्त को सिर्फ मालिकों और कुछ सत्ताधारी पार्टी की यूनियनों के नेताओं के साथ एक आपातकालीन बैठक बुलाई. इस बैठक में जिसमें कुछ मालिकों के नुमाइंदे थे और कुछ ऐसे यूनियन के नेता थे जो वैसे भी सरकारी बात को ही मानते हैं, श्रम मंत्री ने एकतरफा अंतरिम राहत की घोषणा कर दी, जिसमें सितम्बर के महीने से 10रु. की राशि थी और अक्तूबर 2018 के महीने से 7 रु. की अतिरिक्त राशि मिलने वाली थी, इससे चाय पत्ती चुनने वालों के वेतन में साल के अंत में सिर्फ 176 रु. की थोड़ी सी बढ़ोतरी हुई.
अपनी 18 अगस्त को सिलीगुड़ी में हुई बैठक में संयुक्त फोरम ने हालात का जायजा लिया. नेतृत्व की इस बैठक में राज्य के चाय बागान मजदूरों को सलाम पेश किया गया जिन्होंने भारी संख्या में हड़ताल में हिस्सेदारी की थी, और न्यूनतम वेतन को फौरन निश्चित करने और उसे लागू कराए जाने की मांग की थी. संयुक्त फोरम की घटक यूनियनों ने एकमत से हड़ताली मजदूरों को धमकाने के लिए भारी पुलिस बल लगाने के कदम का जोरदार विरोध किया. उन्होंने जोरबंगला पुलिस द्वारा स्वतः संज्ञान से यूनियन नेताओं के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों की भी भर्त्सना की. उन्होंने एमआईसी, श्रम विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अंतरिम घोषणा का जायजा लिया, और सरकार के न्यूनतम वेतन लागू करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बचने के लिए इस कदम को चुनने का भी विरोध किया. इस तरह किसी अंतरिम घोषणा के करने से जाहिर है बहुत ही अव्यवस्था फैलेगी और राज्य विभिन्न बागानों में वेतन भी भिन्न होगा, जिससे औद्योगिक मुद्दे का कोई कानूनी समाधान नहीं निकलेगा. अगर राज्य सरकार 23 अगस्त को होने वाली न्यूनतम वेतन सलाहकार कमेटी के 11वें दौर की मीटिंग में बंगाल के संघर्षरत मजदूरों के लिए संशोधित न्यूनतम वेतन निश्चित नहीं करती है तो अगस्त के अंतिम हफ्ते में संयुक्त फोरम द्वारा इस आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा.