ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं?

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बैंक vs एनबीएफसी: आपके लिए बेहतर कौन है?
किसी व्यक्ति को अगर ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? पैसों की जरूरत है और उसे कहीं से लोन मिलता है तो उस व्यक्ति की पहली प्राथमिकता होती है किसी भी तरह से लोन का पैसा मिले। व्यक्ति यह नहीं देखता कि उसे बैंक से लोन मिल रहा है या एनबीएफसी से लोन मिल रहा है।
आम आदमी ऐसे ही बहुत सी चीजों में अंतर नहीं जान पाता है। जबकि कभी – कभी कई संस्थाओं में पर्याप्त अंतर होता है। एक ऐसा ही अंतर है बैंक और एनबीएफसी के बीच। बहुत कम लोग जानते हैं की बैंक और एनबीएफसी में अंतर होता है।
हमारे आसपास ही बहुत से ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जिनमें बहुत से अंतर हैं लेकिन लोगों को इस अंतर के बारे में बहुत कम जानकारी होती है। एक ऐसा ही उदाहरण हमारे सामने ICICI बैंक और मंहिंद्रा फाइनेंस का है।
ICICI बैंक और मंहिंद्रा फाइनेंस दोनों में ही पैसा जमा होता है और दोनों से ही लोन मिलता है। ऐसे में बहुत से लोग कहेंगे कि दोनों तो एक ही जैसे हुए दोनों में अंतर क्या हुआ? लेकिन दोनों में पर्याप्त अंतर है।
आईसीआईसीआई बैंक जहां पूरी तरह से बैंक है वही महिंद्रा फाइनेंस एक एनबीएफसी है। बैंक और एनबीएफसी के बीच का अंतर समझने में हमें तब और अधिक क्लैरिटी हो जाती है जब हम दोनों की परिभाषा देखते हैं।
Table of Contents
बैंक किसे कहते हैं?
1949 में भारतीय बैंकिंग कंपनी कानून बनाया गया। इस कानून में बैंक की परिभाषा इस तरह से दी गई है, “लोन देना और विनियोग के लिए समान्य जनता से पैसा जमा करना तथा चेकों, ड्राफ्टों तथा लिखित निवेदन के जरिये पैसा माँगने पर उस राशि का भुगतान करना बैंकिंग बिजनेस कहलाता है और इस बिजनेस को करनेवाली संस्था बैंक कहलाती है।“
बैंक को अगर हमें और अधिक आसान भाषा में समझाना है तो हम उस बिजनेस को बैंक कहते हैं जहां पर पैसे जमा होता है। जमा पैसों पर ब्याज मिलता हो, ग्राहक द्वारा जमा किये गये पैसों के लिए चेक, ड्राफ्ट और लिखित रुप से पर्ची से पैसा मांगने पर पैसा मिलना, ग्राहक को ब्याज पर पैसा उधार देने का काम करने वाली संस्था को बैंक कहा जाता है।
इसे हम इस तरह भी कहते हैं कि बैंक (Bank) उस वित्तीय संस्था को कहते हैं जो जनता से धनराशि जमा करने तथा जनता को लोन देने का काम करत है। लोग अपनी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने के हेतु इन संस्थाओं में जमा करते और आवश्यकतानुसार समय समय पर निकालते रहते हैं।
बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को कारोबारियों एवं उद्यमियों को बिजनेस लोन देकर ब्याज कमाते हैं। आर्थिक आयोजन के वर्तमान युग में कृषि, उद्योग एवं व्यापार के विकास के लिए बैंक एवं बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है।
एनबीएफसी किसे कहते हैं ?
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी यानी नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी पूरा नाम है एनबीएफसी का। यह एक फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन है। इस फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का कार्य बैंकों की तरह ही होता है। यह फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन लोगों लोगों का पैसा जमा करते हैं, लोगों को लोन प्रदान करते हैं।
ऐसा नहीं है की जिन वित्तीय संस्थाओं में पैसा जमा होता है और पैसा निकाला जाता है सिर्फ वही एनबीएफसी हैं। इसके अतिरिक्त बीमा, चिटफंड, निधि, मर्चेंट बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग और इन्वेस्टमेंट का बिजनेस करने वाली कंपनियां भी एनबीएफसी होती हैं।
1963 में एनबीएफसी का नियम बना
नॉन – बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? 1963 से पहले भी चल रही थी लेकिन यह अपने आप में स्वतंत्र थी यानी इन संस्थाओं पर सरकार का किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं था। 1960 के दशक में कुछ ऐसा हुआ की कुछ एनबीएफसी कंपनियों में पैसा जमा करने वाले लोगों का जमा पैसा डूब गया।
जब इस मुद्दे को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के सम्मुख उठाया गया तो आरबीआई ने 1963 से एनबीएफसी पर नजर रखना और उनके लिए नियम बनाना शुरू कर दिया।
तब से भारतीय रिजर्ब बैंक उन सभी एनबीएफसी पर नजर रखना शुरु कर दिया है जो बैंक जैसी गतिविधियां करती हैं। सभी एनबीएफसी कंपनियों का अब नियमन भारतीय रिजर्व बैंक करता है।
जो एनबीएफसी इंश्योरेंस इंश्योरेंस यानी बीमा क्षेत्र में में काम करती हैं। उन सभी एनबीएफसी का नियमन इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (आइआरडीए) करता है।
जो एनबीएफसी वेंचर कैपिटल फंड, मचेर्ंट बैंकिंग कंपनी, स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी या म्यूच्युअल फंड के रूप में काम करती हैं, वे सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) के दायरे में आती हैं।
इसी तरह पेंशन फंड पीएफआरडीए के अधीन आते हैं। दूसरी ओर निधि कंपनियां कंपनी मामलों के मंत्रलय के जबकि चिटफंड कंपनियां राज्य सरकारों अधीन आती हैं। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का नियमन नेशनल हाउसिंग बैंक करता है।
यहां पर आपको जानकारी के लिए बता दें कि केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘ प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ’ एक एनबीएफसी के मध्यम से ही चल रही है। मुद्रा स्कीम को चलाने वाली एनबीएफसी का नाम माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा) है।
एनबीएफसी और बैंक में अंतर क्या है ?
- बैंक चेक जारी कर सकता है। एनबीएफसी कंपनी से कोई चेक जारी नहीं हो सकता है।
- बैंक में डिमांड डिपोजिट एक्सेप्ट किया जाता है। एनबीएफसी में किसी तरह का कोई डिमांड डिपोजिट एक्सेप्ट नहीं होता है।
इस तरह हम देखते हैं तो बैंक और एनबीएफसी में पर्याप्त अंतर होता है।
आपके लिए ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? बैंक और एनबीएफसी में से बेहतर कौन है ?
अगर आप कारोबारी हैं और बिजनेस लोन लेना चाहते हैं तो आपके लिए एनबीएफसी बेहतरीन विकल्प है। चूंकि अधिकतर एनबीएफसी बिना कुछ गिरवी रखें बिजनेस लोन प्रदान करते हैं और एनबीएफसी टेक संचालित होने के चलते बिजनेस लोन का प्रोसेस भी तेजी से कम्पलीट होता है।
नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी ‘ZipLoan’ एक ऐसी कंपनी है जिससे कारोबारियों को 5 लाख तक का बिजनेस लोन सिर्फ 3 दिन* बिना कुछ गिरवी रखे मिलता है। ZipLoan से प्राप्त बिजनेस लोन 6 महीने बाद प्री पेमेंट चार्जेस फ्री है।
इस तरह देखें तो कारोबारियों के लिए 5 लाख तक का बिजनेस सिर्फ 3 दिन* में उपलब्ध होना एक शानदार बात है, ऊपर से बिना कुछ गिरवी रखे और 6 महीने बाद प्री पेमेंट फ्री और 9 ईएमआई सही से जमा होने के बाद कारोबारी टॉप अप लोन के लिए पात्र भी हो जाते हैं।
वही अगर पैसा जमा करने और अधिक ब्याज पाने के लिए पैसों के विषय में जानना चाहते ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? हैं तो इसके लिए बैंक हमेशा से बेहतर विकल्प साबित हुआ है। अभी भी बैंक बेहतर है।
1 जुलाई से बदल रहे हैं पैसे से जुड़े कई नियम, आपकी जेब पर पड़ेगा सीधा असर, जानें क्या होने वाला है बदलाव
Rules To Change From 1st July: महीने की हर पहली तारीख को कई नियम बदल जाते हैं। इनमें से कई महत्वपूर्ण नियम आपकी जेब पर भी सीधा असर डालेंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एटीएम, चेक से सम्बंधित कई नियमों में.
Rules To Change From ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? 1st July: महीने की हर पहली तारीख को कई नियम बदल जाते हैं। इनमें से कई महत्वपूर्ण नियम आपकी जेब पर भी सीधा असर डालेंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एटीएम, चेक से सम्बंधित कई नियमों में बदलाव करने जा रहा है। जुलाई शुरू होने में अभी एक सप्ताह का समय है, आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से नियम अगले महीने की पहली तारीख को बदल रहे हैं जो सीधे आपको प्रभावित करेंगे।
एक जुलाई से बदला जाएगा इस बैंक का IFSC
सिंडिकेट बैंक का IFSC एक 1 July 2021 से डिसेबल कर दिया जाएगा। Syndicate Bank ने ग्राहकों से कहा है कि उनके ब्रांच का IFSC 30 जून के बाद बदल जाएगा। बता दें सिंडिकेट बैंक का मर्जर कैनरा बैंक में हुआ है। कैनरा बैंक ने कहा है कि SYNB से स्टार्ट होने वाले सभी IFSC कोड एक जुलाई से काम नहीं करेंगे।
एलपीजी सिलेंडर की कीमतें
हर एक महीने की पहली तारीख को तेल कंपनियां गैस सिलेंडर का भाव तय करती हैं। ऐसे में देखना होगा कि क्या इस बार एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में कोई इजाफा होता है या नहीं।
1 जुलाई से दोगुना देना होगा TDS
इनकम टैक्स रिटर्न ना फाइल करने वालों पर आयकर विभाग काफी सख्त हो गया है। अगर आपने अभी तक इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल नहीं किया है तो जल्दी कर लें, नहीं तो एक जुलाई से दोगुना टीडीएस कटेगा। इसी वजह से आयकर विभाग ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की तारीख 31 जुलाई से बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया है।
बदल रहे हैं एसबीआई के नियम भी
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के ग्राहकों के लिए 1 जुलाई 2021 से कई नियम बदलने वाला है। नए नियम के लागू होने के बाद एटीएम से कैश विद्ड्रॉल (ATM Cash Withdrawal) और चेकबुक (Cheque Book) का इस्तेमाल आपकी जेब पर भारी पड़ेगा। नए चार्जेस बेसिक ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं? सेविंग अकाउंट डिपोजिट (BSBD) अकाउंड होल्डर्स के लिए लागू होंगे।
1- एसबीआई BSBD अकाउंट होल्डर्स को एक फाइनेंशियर ईयर में 10 चेक की कॉपी मिलती है। अब 10 चेक वाली चेकबुक पर चार्जेंस देने होंगे। 10 चेक के पत्तों के लिए बैंक 40 रुपये और जीएसटी चार्ज करेगा।
2- 25 चेक लीव के लिए बैंक 75 रुपये और जीएसटी चार्ज करेगा।
3- इमरजेंसी चेक बुक पर 10 पत्तों के लिए 50 रुपये और जीएसटी लगेगा। वहीं वरिष्ठ नागरिकों को चेक बुक पर नए सेवा शुल्क से छूट दी जाएगी।
4- एसबीआई BSBD खाताधारकों को चार फ्री कैश विड्रॉल ट्रांजैक्शन की सुविधा देता है। फ्री लिमिट खत्म होने के बाद बैंक ग्राहकों से चार्ज वसूलता है। ब्रांच या एटीएम से कैश निकलने के लिए बैंक 15 रुपए प्लस GST वसूलता है।
1 जुलाई से बदल रहे हैं पैसे से जुड़े कई नियम, आपकी जेब पर पड़ेगा सीधा असर, जानें क्या होने वाला है बदलाव
Rules To Change From 1st July: महीने की हर पहली तारीख को कई नियम बदल जाते हैं। इनमें से कई महत्वपूर्ण नियम आपकी जेब पर भी सीधा असर डालेंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एटीएम, चेक से सम्बंधित कई नियमों में.
Rules To Change From 1st July: महीने की हर पहली तारीख को कई नियम बदल जाते हैं। इनमें से कई महत्वपूर्ण नियम आपकी जेब पर भी सीधा असर डालेंगे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एटीएम, चेक से सम्बंधित कई नियमों में बदलाव करने जा रहा है। जुलाई शुरू होने में अभी एक सप्ताह का समय है, आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से नियम अगले महीने की पहली तारीख को बदल रहे हैं जो सीधे आपको प्रभावित करेंगे।
एक जुलाई से बदला जाएगा इस बैंक का IFSC
सिंडिकेट बैंक का IFSC एक 1 July 2021 से डिसेबल कर दिया जाएगा। Syndicate Bank ने ग्राहकों से कहा है कि उनके ब्रांच का IFSC 30 जून के बाद बदल जाएगा। बता दें सिंडिकेट बैंक का मर्जर कैनरा बैंक में हुआ है। कैनरा बैंक ने कहा है कि SYNB से स्टार्ट होने वाले सभी IFSC कोड एक जुलाई से काम नहीं करेंगे।
एलपीजी सिलेंडर की कीमतें
हर एक महीने की पहली तारीख को तेल कंपनियां गैस सिलेंडर का भाव तय करती हैं। ऐसे में देखना होगा कि क्या इस बार एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में कोई इजाफा होता है या नहीं।
1 जुलाई से दोगुना देना होगा TDS
इनकम टैक्स रिटर्न ना फाइल करने वालों पर आयकर विभाग काफी सख्त हो गया है। अगर आपने अभी तक इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल नहीं किया है तो जल्दी कर लें, नहीं तो एक जुलाई से दोगुना टीडीएस कटेगा। इसी वजह से आयकर विभाग ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की तारीख 31 जुलाई से बढ़ाकर 30 सितंबर कर दिया है।
बदल रहे हैं एसबीआई के नियम भी
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के ग्राहकों के लिए 1 जुलाई 2021 से कई नियम बदलने वाला है। नए नियम के लागू होने के बाद एटीएम से कैश विद्ड्रॉल (ATM Cash Withdrawal) और चेकबुक (Cheque Book) का इस्तेमाल आपकी जेब पर भारी पड़ेगा। नए चार्जेस बेसिक सेविंग अकाउंट डिपोजिट (BSBD) अकाउंड होल्डर्स के लिए लागू होंगे।
1- एसबीआई BSBD अकाउंट होल्डर्स को एक फाइनेंशियर ईयर में 10 चेक की कॉपी मिलती है। अब 10 चेक वाली चेकबुक पर चार्जेंस देने होंगे। 10 चेक के पत्तों के लिए बैंक 40 रुपये और जीएसटी चार्ज करेगा।
2- 25 चेक लीव के लिए बैंक 75 रुपये और जीएसटी चार्ज करेगा।
3- इमरजेंसी चेक बुक पर 10 पत्तों के लिए 50 रुपये और जीएसटी लगेगा। वहीं वरिष्ठ नागरिकों को चेक बुक पर नए सेवा शुल्क से छूट दी जाएगी।
4- एसबीआई BSBD खाताधारकों को चार फ्री कैश विड्रॉल ट्रांजैक्शन की सुविधा देता है। फ्री लिमिट खत्म होने के बाद बैंक ग्राहकों से चार्ज वसूलता है। ब्रांच या एटीएम से कैश निकलने के लिए बैंक 15 रुपए प्लस GST वसूलता है।
फिजिकल फॉर्म में पड़े शेयर को डीमैट में कैसे करें तब्दील, ये है पूरी प्रक्रिया
Demat Account: SEBI ने अप्रैल 2019 से फिजिकल फॉर्म में पड़े शेयरों के ट्रांसफर पर रोक लगा दी थी. यानी, अगर आपके पास फिजिकल फॉर्म में शेयर पड़े हैं तो आप उसे किसी को ट्रांसफर या बेच नहीं सकते.
- Khushboo Tiwari
- Publish Date - May 27, 2021 / 07:33 PM IST
एक महत्वपूर्ण IPO अगले हफ्ते पेश किया जाना है. पारस डिफेंस एंड स्पेस टेक्नॉलजीज 171 करोड़ रुपये के IPO के साथ बाजार में कदम रखने की तैयारी में है
Shares in Demat Form: बरसों पहले शेयर बाजार में परिवार के किसी सदस्य ने निवेश किया लेकिन वक्त की धूल में फिजिकल फॉर्म में पड़े ये शेयर आपकी बड़ी कमाई करा सकते हैं. मसलन, अगर किसी ऐसी कंपनी के शेयर हैं जिनमें आज से 15-20 साल पहले उस समय की वैल्यू पर निवेश किया तो सोचिए आज के समय में उसकी वैल्यू क्या होगी.
उदाहरण के तौर पर, साल 2005 की शुरुआत में रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर का भाव 100-110 रुपये के करीब था, जबकि अब शेयर की 52-हफ्तों की ऊंचाई 2,368 रुपये रही है.
मार्केट रेगुलेटर SEBI ने अप्रैल 2019 से फिजिकल फॉर्म में पड़े शेयरों के ट्रांसफर पर रोक लगा दी थी. यानी, अगर आपके पास फिजिकल फॉर्म में शेयर पड़े हैं तो आप उसे किसी को ट्रांसफर या बेच नहीं सकते. हालांकि, SEBI की ओर से फिजिकल शेयर होल्ड करने पर पाबंदी नहीं है. लेकिन होल्ड करने से आपको कितना फायदा है ये आप खुद तय कर सकते हैं.
बेचने या फिजिकल फॉर्म में पड़े इन शेयरों से मुनाफा पाने के लिए आपको इन्हें डिमटीरियलाइज (Demat Form) कराना होगा. इसके लिए डीमैट खाता होना अनिवार्य है.ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं?
SEBI ने ये बदलाव फ्रॉड और मैन्युपुलेशन से जड़े रिस्क कम करने के लिए किया था. इसके अलावा, डीमैट में होने से निवेशकों को इनमें ट्रांजैक्शन करना ना सिर्फ ज्यादा आसान होगा बल्कि ज्यादा सुरक्षित भी रहेगा.
क्या है ट्रांसफर की प्रक्रिया?
अगर आपके पास डीमैट खाता नहीं है तो सबसे पहले आपको डीमैट खाता (Demat Account) खुलवाना पड़ेगा. ये शेयरों में खरीदारी या बिक्री जैसे किसी भी ट्रांजैक्शन के लिए अनिवार्य है. डीमैट खाता खुलवाने के लिए आप किसी भी ब्रोकर (डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट) की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन खाता खुलवा सकते हैं. आपको नो यॉर कस्टमर (KYC) के लिए जरूरी कागजात स्कैन कर अपलोड करने होंगे. चार्ज वगैराह की जानकारी गौर से बढ़ें और तभी सब्मिट करें. कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपकी ऐप्लीकेशन प्रोसेस की जाएगी, अप्रूवल के बाद आपको यूजर आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा जिससे आप लॉग-इन कर सकते हैं.
फिजिकल फॉर्म में पड़े शेयर को डीमैट में तब्दील कराने के लिए आपको इस डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के पास डीमैटिरियलाइजेशन रिक्वेस्ट फॉर्म (DRF) भरकर देना होगा. इस फॉर्म के साथ फिजिकल शेयर सर्टिफिकेट भी देने होंगे. आप अपन पास इनकी फोटोकॉपी रख सकते हैं. अगर अलग-अलग कंपनियों के शेयर फिजिकल फॉर्म में पड़े हैं तो अलग-अलग DRF भरने होंगे.
इसके आगे प्रक्रिया को बढ़ाना डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट की जिम्मेदारी होती है. एक ब्रोकिंग कंपनी के CEO ने बताया कि प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपको जानकारी दे दी जाएगी. इस प्रक्रिया में 15 दिन से एक महीने का समय लग सकता है.ब्रोकिंग चार्जेस क्या होते हैं?
फिजिकल फॉर्म में है डीलिस्ट हुई कंपनी के शेयर?
एक ब्रोकिंग कंपनी के CEO ने हमसे चर्चा में कहा, “अगर आपके पास किसी ऐसी कंपनी के शेयर फिजिकल फॉर्म में पड़े हैं जो अब डीलिस्ट हो चुके हैं उनको भी डीमैटिरियलाइज (Demat Form) कराने की प्रक्रिया यही है लेकिन ऐसा करने से पहले निवेशक बारीकियां समझ लें. इन शेयरों में ट्रेडिंग नहीं हो सकती, इसलिए बिना किसी ट्रांजैक्शन के भी आपको डीमैट खाते के चार्जेस देने पड़ सकते हैं. जब तक ये शेयर डेड स्टॉक नहीं हो जाता आपको डीमैट खाते पर चार्जेस देने पड़ेंगे.”
वे कहते हैं कि आज के रेगुलेटरी माहौल में अच्छी कंपनियां डीलिस्ट नहीं होती. इसलिए अगर आपके पास ऐसी किसी डीलिस्ट हुई कंपनी के फिजिकल शेयर पड़े हैं तो उन्हें डीमैट में तब्दील कराने का कष्ट ना करें, उसे घाटा मान लें.