क्या मैं इंट्राडे में 1 शेयर खरीद सकता हूं

इंट्राडे और डिलिवरी के बीच अंतर
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निवेश के किसी भी छात्र के लिए , सबसे बड़ी बाधा कई वर्ग-बोली को समझना है जो एक स्टॉकब्रोकर लापरवाही से आपको गिरा देगा। यदि आप एक ही स्थिति में हैं , तो आप सही जगह पर आए हैं। निवेश के निर्णयों में आपकी मदद करने के अलावा , हम आपको एक अनुभवी निवेशक के रूप में बढ़ने में मदद करने के लिए अलग-अलग स्टॉक मार्किट की शर्तों के बारे में भी शिक्षित करते हैं।
यदि आपने हाल ही में स्टॉक मार्किट में कदम रखा है , तो आप पहले से ही इस सवाल पर आ गए होंगे कि क्या आप इंट्राडे ट्रेडिंग पसंद करते हैं या स्टॉक्स की डिलीवरी चाहते हैं। यह आर्टिकल आपको इंट्राडे बनाम डिलीवरी ट्रेडिंग के विषय को समझने में मदद करेगा और उनके बीच क्या अंतर होते हैं।
सही निवेश विकल्प बनाने के लिए एक नए निवेशक के लिए इंट्रा डे और डिलीवरी के बीच अंतर को समझना जरूरी होता है।
तो , स्टॉक मार्किट में ट्रेड करने के दो तरीके होते हैं। इनमें से एक इंट्राडे ट्रेडिंग है। इसका मतलब है कि आप उसी दिन स्टॉक खरीद / बेच सकते हैं , यानी , स्टॉक एक्सचेंज द्वारा निर्दिष्ट व्यापारिक घंटों के दौरान खरीद / बेच सकते हैं। इस तरह , आप शेयर खरीदते हैं जब कीमत कम होती है और जब उनकी कीमतें अधिक होती हैं तो बेचते हैं। आप मूल्य की गति से लाभ पाने वाले बने रहे हों। यह इंट्राडे ट्रेडिंग होती है।
फिर , वह कौन सी डिलीवरी है जिसके बारे में आप सुनते रहते हैं ? इसका मतलब होता है , आप शेयर खरीदते हैं और उन्हें रात भर रखते हैं और उनकी डिलीवरी लेते हैं , फिर शेयर आपके डीमैट अकाउंट में दिखाई देते हैं। आप जब चाहें इन्हें बेच सकते हैं। जब आप डिलीवरी ट्रेडिंग करते हैं , तो आप किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जाने की संभावना रखते हैं जो केवल ट्रेडिंग के बजाय निवेश के अवसरों में अधिक रुचि रखते हैं। एक निवेशक के रूप में , आप अधिक लंबी अवधि के लिए सोचते हैं।
इंट्राडे और डिलीवरी ट्रेडिंग के बीच एक स्पष्ट अंतर होता है। अन्य इंट्राडे बनाम डिलीवरी ट्रेडिंग पहलू आवश्यक पूंजी में निहित होते है। इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए , आपकी जरूरत की पूंजी कम होती है क्योंकि आप मार्जिन में भुगतान कर सकते हैं। मूल्य गति के आधार पर बड़े लाभ के लिए इस छोटे भुगतान का उपयोग किया जा सकता है। आपके पास एक मार्जिन भी उपलब्ध होता है ताकि आप ऐसे लेनदेन को अंजाम दे सकें जिनका मूल्य आपकी पूंजी से कई गुना अधिक हो।
फिर , डिलीवरी ट्रेडिंग के मामले में क्या होता है ? स्टॉक की डिलीवरी लेने के लिए आपको कितना फंड चाहिए ? आपको याद रखना चाहिए कि डिलीवरी ट्रेडिंग के मामले में , आपको पूर्ण भुगतान करने की जरूरत होगी। इसलिए , आपको अपने बजट और अपने लक्ष्यों के आधार पर अच्छी योजना बनानी होगी और निवेश करना होगा। डिलीवरी बनाम इंट्राडे ट्रेडिंग के बीच यह एक और महत्वपूर्ण अंतर होते है जिसके बारे में आपको जागरूक रहना चाहिए।
हालांकि , ये दोनों के बीच परिभाषा के साधारण अंतर होते हैं। इंट्राडे और डिलीवरी ट्रेडिंग में जोखिम के अलग-अलग डिग्री शामिल होती हैं।
दोनों में जोखिम होते हैं। जब इंट्राडे की बात आती है , तो जोखिम एक दिन का मामला होता है। डिलीवरी ट्रेडिंग में , आपके पदों को लंबे समय तक रखा जाता है , इसलिए जोखिम हमेशा बना रहता है। हालांकि , यह कहना नहीं है कि इंट्राडे ट्रेडिंग तनाव – मुक्त या जोखिम – मुक्त है। वास्तव में , इंट्राडे ट्रेडिंग जोखिम भरा लग सकता है क्योंकि आपके द्वारा किया गया कोई भी लाभ या हानि उस दिन केवल सुरक्षा के प्रदर्शन पर आधारित होता है। डिलीवरी ट्रेडिंग में , भले ही एक दिन सुरक्षा ठीक नहीं हो रही हो , आप बोनस या लाभांश के माध्यम से लाभ प्राप्त करने के लिए खड़े होते हैं।
इंट्राडे ट्रेडिंग आपको एक दिन के दौरान मूल्य लाभ का लाभ उठाने देती है। लेकिन यह मांग करता है कि आप सही प्रविष्टि और सावधानी से बाहर निकलने की योजना के लिए सतर्क रहें। आपको दिन के दौरान मूल्य गतियों पर मिनट – टू – मिनट ध्यान देने की जरूरत है , ट्रेडिंग चार्ट और अनुसंधान कंपनियों का बारीकी से उपयोग करें। आपको उच्च तरलता वाले शेयरों , अस्थिरता और अन्य कारकों के बारे में सीखना होगा जो आपको इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए स्टॉक को फ़िल्टर करने में मदद करते हैं।
जब डिलीवरी ट्रेडिंग की बात आती है , तो आप थोड़ा अधिक आराम कर सकते हैं क्योंकि आपकी प्रतिभूतियों को बेचने के लिए आवश्यक समय की कोई सीमा नहीं है। ट्रेडिंग शुरू करने से पहले आपको एक और इंट्राडे बनाम डिलीवरी पहलू पर विचार करना चाहिए।
एक और पहलू जो दोनों को अलग करता है वह है कम बिक्री। इंट्राडे ट्रेडिंग का एक फायदा यह है कि आप उन शेयरों को बेच सकते हैं जिन्हें आप खुद नहीं बेचते हैं। आप ब्रोकर से स्टॉक उधार लेते हैं , इसे बाजार में बेचते हैं , और दिन के लिए ट्रेडिंग खत्म होने से पहले कम कीमत के लिए इसे बाजार से वापस खरीदने की उम्मीद करते हैं। इस तरह , आप तब भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं , जब किसी सुरक्षा की कीमत गिर क्या मैं इंट्राडे में 1 शेयर खरीद सकता हूं रही हो। हालांकि , इसमें जोखिम शामिल होते हैं , और इसे लेने के लिए आपको डे ट्रोडिंग में कुछ अनुभव की जरूरत हो सकती है।
डिलिवरी बनाम इंट्राडे व्यापार इक्विटी बाजार में सबसे अधिक चर्चा विषयों में से एक होते है। सरल शब्दों में , यदि आप शेयर ट्रेडिंग से एक त्वरित लाभ की खोज कर रहे हैं , तो इंट्राडे डे चुनने का सही विकल्प होता है। लेकिन एक निवेशक के रूप में , आपको दीर्घकालिक निवेश पर ध्यान देना चाहिए। आप एक निवेशक के रूप में अपने लक्ष्यों के आधार पर दोनों विकल्पों का चयन कर सकते हैं या किसी एक पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
Share Bazaar: क्या एक ही शेयर को आप बार-बार खरीद-बेच सकते हैं?
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इंट्रा-डे का ट्रेडिंग का उदाहरण
मान लीजिए, आज आपने किसी कंपनी का 20 रुपये की कीमत वाला शेयर खरीदा। इन शेयरों की संख्या 100 थी। इसके लिए आपने 2010 (2000+10) शेयर की कुल कीमत और कमीशन मिलाकर 2010 रुपये चुकाए। कुछ घंटे बाद इस शेयर की कीमत 20.50 हो गई। आपने मुनाफा देखकर अपने सभी 100 शेयर बेच दिए। आपको इस पर 2040 (2050-10) रुपये मिले।
इस तरह आपने कुछ घंटे का रिस्क लेकर 30 रुपये का शुद्ध लाभ कमाया, जबकि आपके ब्रोकर को इससे 20 रुपये कमीशन मिला। इस तरह एक बार इंट्रा डे ट्रेडिंग की प्रक्रिया पूरी हो गई। अगर आप चाहें तो उसी कंपनी के शेयर की उसी दिन फिर इसी तरह से खरीद-बिक्री कर सकते हैं। बस, शेयर बाजार बंद न हुए हों। इसी तरह एक ही दिन में नहीं बल्कि सप्ताह में महीने में आप चाहे, जितनी भी बार ट्रेडिंग कर सकते हैं।
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क्लियरिंग और सेटलमेंट की प्रक्रिया
वैसे तो क्लियरिंग और सेटलमेंट बहुत ही सैधान्तिक विषय है लेकिन इसके पीछे की प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है। एक ट्रेडर या निवेशक के तौर पर आपको ये चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती कि आपका सौदा कैसे क्लियर या सेटल हो रहा है, क्योंकि एक अच्छा इंटरमीडियरी यानी मध्यस्थ ये काम कर रहा होता है और आपको ये पता भी नहीं चलता।
लेकिन अगर आप इसको नहीं समझेंगे तो आपकी जानकारी अधूरी रहेगी इसलिए हम विषय को समझने की कोशिश करेंगे कि शेयर खरीदने से लेकर आपके डीमैट अकाउंट (DEMAT account) में आने तक क्या होता है।
10.2 क्या होता है जब आप शेयर खरीदते हैं?
दिवस 1/ पहला दिन- सौदे का दिन (T Day), सोमवार
मान लीजिए आपने 23 जून 2014 (सोमवार) को रिलायंस इंडस्ट्रीज के 100 शेयर 1000 रुपये के भाव पर खरीदे। आपके सौदे की कुल कीमत हुई 1 लाख रुपये (100*1000)। जिस दिन आप ये सौदा करते हैं उसे ट्रेड डे या टी डे (T Day) कहते हैं।
दिन के अंत होने तक आपका ब्रोकर एक लाख रुपये और जो भी फीस होगी, वो आपसे ले लेगा। मान लीजिए आपने ये सौदा ज़ेरोधा पर किया, तो आपको निम्नलिखित फीस या चार्जेज देनी होगी:
क्रमांक | कितने तरह के चार्जेज | कितना चार्ज | रकम |
---|---|---|---|
1 | ब्रोकरेज | 0.03% या 20 रुपये- इनमें से जो भी इंट्राडे ट्रेड के लिए कम हो | 0 |
2 | सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन चार्ज | टर्नओवर का 0.1% | 100/- |
3 | ट्रांजैक्शन चार्ज | टर्नओवर का 0.00325% | 3.25/- |
4 | GST | ब्रोकरेज का 18% + ट्रांजैक्शन चार्ज | 0.585/- |
5 | SEBI चार्ज | 10 रुपये प्रति एक करोड़ के ट्रांजैक्शन पर | 0.1/- |
कुल | 103.93/- |
तो एक लाख रुपये के साथ 103.93 रुपये की फीस आपको देनी पड़ेगी, यानी कुल 100,103.93 रुपये की रकम आपके ट्रेडिंग अकाउंट से निकल जाएगी। याद रखिए कि पैसे निकल गए हैं लेकिन शेयर अभी आपके डीमैट अकाउंट (DEMAT account) में नहीं आए हैं।
उसी दिन ब्रोकर आपके लिए एक कॉन्ट्रैक्ट नोट (Contract Note) तैयार करता है और उसकी कॉपी आपको भेज देता है। ये नोट एक तरह का बिल है, जो आपके सौदौं की पूरी जानकारी देता है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और भविष्य में काम आता है। कॉन्ट्रैक्ट नोट में आमतौर पर उस दिन हुए सभी सौदे अपने ट्रेड रेफरेंस नंबर (Trade Reference Number) के साथ दिए गए होते हैं। साथ ही आपसे ली गई सभी फीस की जानकारी उसमें होती है।
दिवस 2/दूसरा दिन- ट्रेड डे + 1 (T+ Day), मंगलवार
जिस दिन आपने सौदा किया उसका अगला दिन टी+1 डे (T+1 Day) कहलाता है। T+1 day को आप अपने शेयर बेच क्या मैं इंट्राडे में 1 शेयर खरीद सकता हूं सकते हैं, जो आपने पिछले दिन खरीदे हैं। इस तरह के सौदे को BTST-Buy Today, Sell Tomorrow या ATST- Acquire Today, Sell Tomorrow कहते हैं। याद रखिए कि शेयर अभी भी आपके डीमैट अकाउंट में नहीं आए हैं। इसका मतलब आप ऐसे शेयर बेच रहे हैं, जो अभी तक आपके हुए नहीं है। इसमें एक रिस्क है। वैसे हर BTST सौदे में रिस्क नहीं होता, लेकिन अगर आप बी ग्रुप के शेयर या ऐसे शेयर जिनकी खरीद-बिक्री बहुत कम होती है, उनका सौदा कर रहे हैं, तो आप मुसीबत में फंस भी सकते हैं। अभी इस पूरे मसले को यहीं छोड़ देते हैं।
अगर आप बाज़ार में नए हैं, तो आपके लिए बेहतर यही होगा कि आप BTST से दूर रहें क्योंकि आप उसके रिस्क को पूरे तरह से नहीं जानते।
इसके अलावा आपके नजरिए से T+1 day का कोई खास महत्व नहीं है, हालांकि शेयर खरीदने के लिए दिए गए पैसे और सारी फीस सही जगह पहुंच रही होती है।
दिवस 3/तीसरा दिन- ट्रेड डे + 2 (T+2 Day), बुधवार
तीसरे दिन यानी T+2 day को दिन में करीब 11 बजे जिस आदमी ने आपको शेयर बेचे हैं उसके अकाउंट से शेयर निकल कर आपके ब्रोकर के अकाउंट में आ जाते हैं, और ब्रोकर यही शेयर शाम तक आपके अकाउंट में भेज देता है। इसी तरह जो पैसे आपके अकाउंट से निकले थे, वो उस इंसान के अकाउंट में पहुंच जाता है जिसने शेयर आपको बेचे।
अब शेयर आपके डीमैट अकाउंट में दिखेंगे। आपके पास अब रिलायंस के 100 शेयर होंगे।
इस तरह T Day को खरीदे गए शेयर आपके अकाउंट में T+2 Day को आएंगे और T+3 Day को उनका सौदा फिर से कर पाएंगे।
10.3 आप जब शेयर बेचते हैं, तब क्या होता है?
जिस दिन आप शेयर बेचते हैं, वो ट्रेड डे (Trade Day ) कहते हैं, और इसे T Day लिखा जाता है। शेयर बेचते ही उतने शेयर आपके डीमैट अकाउंट में ब्लॉक हो जाते हैं। T+2 Day के पहले ये शेयर एक्सचेंज को दे दिए जाते हैं और T+2 Day को उन शेयरों की बिक्री से मिलने वाले पैसे, फीस और चार्जेज कट कर, आपके अकाउंट में आ जाते हैं।
सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
कैश मार्केट में मार्जिन से जुड़े ने नियम 1 सितंबर से लागू हो गए हैं. सेबी ने इसे कुछ समय टालने की अपील ठुकरा दी है
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में क्या मैं इंट्राडे में 1 शेयर खरीद सकता हूं होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.
फिर, 1 सितंबर से क्या बदलने जा रहा है?
पहले हम यह समझते हैं कि शेयरों की डिलीवरी किस तरह होती है. अभी बाजार में डिलीवरी के लिए टी+2 (ट्रेडिंग प्लस दो दिन) मॉडल का पालन होता है. इसका मतलब है कि अगर आप सोमवार को शेयर खरीदते या बेचते हैं तो यह बुधवार को डेबिट या क्रेडिट होगा. इसी तरह शेयर का पैसा भी बुधवार को आपके अकाउंट में आएगा या उससे जाएगा. इस मॉडल में ब्रोकर्स क्लाइंट के अकाउंट में पैसा नहीं होने पर भी शेयर खरीदने की इजाजत देते हैं. यह इस शर्त पर किया जाता है कि आप पैसा टी+1 या टी+2 दिन में चुका देंगे.
अब सेबी ने जो नया नियम बनाया है, उसमें ब्रोकर को सौदे की कुल वैल्यू का 20 फीसदी क्लाइंट से अपफ्रंट लेना होगा. इसका मतलब यह है कि सौदे के वक्त क्लाइंट (रिटेल निवेशक) को 20 फीसदी रकम चुकाना होगा. उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में कम से कम 20,000 रुपये होने चाहिए. बाकी पैसा वह टी+1 या टी+2 दिन में या ब्रोकर के निर्देश के मुताबिक चुका सकता है. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
शेयर बेचने के लिए मेरे ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन क्यों होना चाहिए?
सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया है. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा.
ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
यह नियम कुछ ज्यादा सख्त लगता है, क्या इसका कोई दूसरा तरीका नहीं है?
इसका दूसरा तरीका है. सेबी ने बगैर मार्जिन शेयर बेचने की इजाजत दी है. लेकिन, इसमें शर्त यह है कि ब्रोकर के पास ऐसा सिस्टम होना चाहिए, जिसमें शेयर बेचने के दिन वह शेयरों को क्लाइंट के अकाउंट से अपने अकाउंट में ट्रांस्फर कर लें. लेकिन, इसमें कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें हैं.
इस नियम का बाजार पर क्या असर पड़ेगा?
विश्लेषकों और इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि नए नियमों से ट्रेडिंग वॉल्यूम घटेगा. लेकिन, कुछ लोगों का मानना है कि पिछले 25 साल में जब भी नए नियम लागू किए गए, बाजार ने उसके हिसाब से खुद को ढाल लिया. नए नियम बाजार में जोखिम घटाने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए लागू किए जाते हैं.
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