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अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष
विदेश व्यापार का अर्थ-

अंतर्राष्ट्रीय संस्थान/संगठन

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 189 सदस्य देशों वाला एक संगठन है जिनमें से प्रत्येक देश का इसके वित्तीय महत्त्व के अनुपात में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकारी बोर्ड में प्रतिनिधित्व हैं। इस प्रकार वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो देश अधिक शक्तिशाली है उस देश के पास अधिक मताधिकार है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ, महत्व/लाभ, हानियां

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ (antarrashtriya vyapar ka arth)

antarrashtriya vyapar arth mahatva labha haniya;एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों या प्रदेशों के बीच होने वाला व्यापार "घरेलू" "आंतरिक व्यापार" कहलाता भै। इसके विपरीत, दो या अधिक देशो के बीच होने वाला व्यापार "अंतर्राष्ट्रीय व्यापार" या विदेशी व्यापार कहलाता है।

अन्य शब्दों मे," जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय दो भिन्न देशो के मध्य जल, थल तथा वायु मार्गों द्वारा होता है तो उसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते है। जैसे-- अगर भारत, इंग्लैंड के साथ व्यापार करे वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होगा।

फ्रेडरिक लिस्ट के अनुसार," घरेलू व्यापार हम लोगो के बीच होता है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हमारे और उनके बीच होता है।"

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व/लाभ

1. श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के लाभ

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक श्रम विभाजन के कारण कुल विश्व उत्पादन अधिकतम किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक देश उन्ही वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिसमे उसे अधिकतम योग्यता एवं कुशलता प्राप्त होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की अनुकूलतम दशाएं प्राप्त हो जाती है और उत्पादन अधिकतम होता है।

2. साधनों का पूर्ण उपयोग

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे एक देश मे सिर्फ उन्ही उद्योग-धंधो की स्थापना की जाती है, जिनके लिए जरूरी साधन देश मे उपलब्ध होते है। इससे देश मे उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग होने लगता है एवं राष्ट्रीय आय मे वृद्धि होती है।

3. उत्पादन कुशलता मे वृद्धि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र स्पष्ट से बढ़कर संपूर्ण विश्व हो जाता है। विश्वव्यापी प्रतियोगिता मे सिर्फ वे ही उद्योग जीवित रहते है जिनके उत्पादन की किस्म उच्च तथा कीमत कम होती है। अतः हर देश अपने उद्योग-धंधो को जीवित रखने तथा उनका विस्तार करने हेतु कुशलतम उत्पादन को अपनाता है। इससे देश की उत्पादन तकनीक मे सुधार होता है।

4. संकटकाल मे सहायता

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कोई भी देश आर्थिक संकट का आसानी से सामना कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश मे अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो वह देश, विदेशों से खाद्यान्न आयात करके अकाल का सामना कर सकता है।

5. रोगजार तथा आय मे वृद्धि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे वस्तुओं का उत्पादन सिर्फ घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ही नहीं होता है वरन् विदेशों मे बेचने हेतु भी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। इससे राष्ट्रीय उत्पादन मे वृद्धि के कारण लोगो की आय बढ़ जाती है। ज्यादा उत्पादन के लिए ज्यादा मजदूरों की जरूरत होती है फलस्वरूप रोजगार स्तर मे भी वृद्धि हो जाती है।

6. एकाधिकारों पर रोक

विदेशी व्यापार के कारण देश मे एकाधिकारी व्यवसाय पनप नही सकते, क्योंकि उन्हे सदैव विदेशी प्रतियोगिता का खतरा बना रहता है। इसी प्रकार, विदेशी व्यापार के फलस्वरूप एकाधिकार की प्रवृत्ति को ठेस पहुंचती है।

7. उपभोक्ताओं को लाभ

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उपभोक्ताओं को चार लाभ प्राप्त है। प्रथम, उन्हे उपभोग के लिए अच्छी तथा सस्ती वस्तुएं मिलती है। द्वितीय, चयन का क्षेत्र बढ़ जाने से सार्वभौमिकता मे वृद्धि होती है अर्थात् वे अपनी मनचाही वस्तुओं का उपयोग कर सकते है।

8. मूल्यों मे समता

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण सभी राष्ट्रो मे वस्तुओं के मूल्यों मे समानता होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका कारण यह है कि कम मूल्य वाले देश से ज्यादा मूल्य वाले देश मे वस्तुओं का निर्यात होने लगेगा जिससे प्रथम प्रकार के देशो मे मूल्यों मे वृद्धि और द्वितीय प्रकार के देशों मे मूल्यों मे कमी होने लगेगी। अंततः सभी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष देशों मे मूल्य एक समान हो जाएंगे।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार देश के औद्योगिक विकास मे भी सहायक होता है। उद्योगों के विकास हेतु जो साधन देश मे उपलब्ध नही है, उनका विदेशों से आयात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए इंग्लैंड अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विदेशों से आयात करता है। इसी तरह भारत मे उत्पादन तकनीक का आयात करके औद्योगिक विकास किया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रमुख हानियां

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रमुख हानियां इस प्रकार है--

1. विदेशों पर निर्भरता

विदेशी व्यापार के कारण एक देश की अर्थव्यवस्था दूसरे देश पर कुछ वस्तुओं के लिए निर्भर हो जाती है। परन्तु यह निर्भरता अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष सदैव ही अच्छी नही होती, विशेषकर युद्ध के समय तो इस प्रकार की निर्भरता अत्यन्त हानिकारक सिद्ध हो सकती है।

2. कच्चे माल की समाप्ति

विदेशी व्यापार द्वारा देश के ऐसे बहुत से साधन समाप्त हो जाते है, जिनका प्रतिस्थापन संभव नही होता है। अनेक कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ इसी प्रकार समाप्त होते जा रहे है। यदि उन वस्तुओं का उपयोग देश के भीतर ही औद्योगिक वस्तुओं को तैयार करने मे किया जाए तो एक ओर तो इनके उपयोग मे बचत की जा सकती है और इनका अधिक लाभपूर्ण उपयोग हो सकता है।

3. विदेशी प्रतियोगिता से हानि

विदेशी व्यापार के कारण औद्योगिक इकाइयों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करनी पड़ती है, किन्तु विशेष रूप से अल्पविकसित देश इनके सामने टिक नहीं सकते है और उनका ह्रास होने लगता है। 19 वीं सदी मे विदेशी प्रतियोगिता के कारण भारतीय लगु और कुटरी उद्योगों को भारी आघात लगा।

4. अंतर्राष्ट्रीय द्वेष

विदेशी व्यापार ने प्रारंभ मे तो अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना और सहयोग को बढ़ाया, किन्तु वर्तमान समय मे यह अंतर्राष्ट्रीय द्वेष और युद्ध का आधार बना हुआ है। इसी ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया और अनेक राष्ट्रो को दास बनाया।

5. देश का एकांगी विकास

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे प्रत्येक देश केवल उन्ही वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिनमें उसे तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार, देश मे सभी उद्योग-धन्धों का विकास न होकर, केवल कुछ ही उद्योग धन्धों का विकास संभव होता है। इस प्रकार के एकांगी विकास से देश के कई साधन बेकार ही पड़े रहते है।

6. राशिपातन का भय

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से कभी-कभी विकसित देशों द्वारा पिछड़ें हुए देशो मे वस्तुओं का राशिपातन किया जाता है, अर्थात् विकसित देश पिछड़े हुए देशो मे अपने माल को बहुत ही कम मूल्यों पर बेचना शुरू करते है। कभी-कभी तो वे अपने माल को उत्पादन लागत से भी कम मूल्यों पर बेचना शुरू कर देते है। स्पष्ट है कि इस प्रकार के राशिपातन से देशी उद्योगों पर बड़ा घातक प्रभाव पड़ता है और शीघ्र ही वे ठप्प हो जाते है। जब एक बार देशी उद्योग-धंधे समाप्त हो जाते है तो विदेशी उद्योगपतियों द्वारा पुनः अपने माल का मूल्य बढ़ा दिया जाता है।

7. हानिकारक वस्तुओं के उपभोग की आदत

विदेशी व्यापार के कारण एक देश मे ऐसी वस्तुओं का आयात किया जा सकता है जो हानिकारक होती है। चीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष मे अफीम के आयात के फलस्वरूप वहां के लोग अफीमची हो गए।

8. कृषि प्रधान देशों को हानि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कृषि प्रधान देशों को औद्योगिक देशों की तुलना मे हानि उठानी पड़ती है। इसका कारण यह है कि कृषि प्रधान देश उन वस्तुओं का निर्यात करता है जिनका उत्पादन घटती हुई लागत के नियम के अंतर्गत होता है।

व्यापार के प्रकार

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति फर्म संगठन या संगठन राज्य देश की सीमा के भीतर वस्तुओ का आदान प्रदान करते हैं तो उसे आंतरिक व्यापार कहते हैं। जैसे जूट पश्चिम बंगाल मे कपास महाराष्ट्र और गुजरात में गन्ना संकेद्रित हैं। अत: अन्य राज्यों की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये दूसरे उत्पादक राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।

2. अंतराष्ट्रीय व्यापार-

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, व्यापार का ही एक स्वरूप है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ है राष्ट्रों के बीच वस्तुओं तथा सेवाओं का खरीद और बिक्री से है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एक ऐसा तरीका है अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष जोकि वस्तुओं, सेवाओं तथा संसाधनों के माध्यम से कई देशों को आपस में जोडता है। बाजार का आकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से बढ़ता है।

विदेशी व्यापार किसे कहते हैं इसका क्या महत्व है ?

मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं। कुछ आवश्यकता की वस्तुए तो देश में ही प्राप्त हो जाती है तथा कुछ वस्तुओं को विदेशों से मंगवाना पड़ता है। भोगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रत्येक देश सभी प्रकार की वस्तुए स्वयं पैदा नहीं कर सकता है। किसी देश में एक वस्तु की कमी है तो दूसरे देश में किसी दूसरी वस्तु की। इस कमी को दूर करने के लिए विदेशी व्यापार का जन्म हुआ है।


दो देशों के मध्य होने वाले वस्तुओं के परस्पर विनिमय या आदान’-प्रदान को विदेशी व्यापार कहते हैं। जो देश माल भजेता है उसे निर्यातक एवं जो देश माल मंगाता है उसे आयातक कहते हैं एवं उन दोनों के बीच होने वाल े आयात-निर्यात को विदेशी व्यापार कहते हैं।

विदेश व्यापार का अर्थ-

प्रो. बेस्टेबिल- ‘सामाजिक विज्ञान की दृष्टि कोण से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न समुदाओं के बीच होने वाला व्यापार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष है अर्थात् यह उन विभिन्न सामाजिक संगठनों के बीच होने वाला व्यापार है, जिन्हें समाजशास्त्र अपने अन्वेषण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष का क्षेत्र मानता है।’

फेडरिक लिस्ट- ‘आंतरिक व्यापार हमारे बीच है तथा विदेशी व्यापार हमारे और उनकें ;दूसरे देशों के बीचद्धबीच होता है।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि देश की सीमाओं के भीतर होने वाला व्यापार अंतरसेवीय या राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है तथा देश की सीमाओं के विभिन्न देशों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष होने व्यापार अंतर्राष्ट्रीय/विदेशी व्यापार कहलाता है। विदेशी व्यापार एक देश दूसरे देश के साथ लाभ के सिद्धांतों पर आधारित होता हैं।

विदेश व्यापार का अर्थ-

विदेश व्यापार का अर्थ-

2-विदेशी व्यापार की दिशा

आजादी के पूर्व भारत के विदेशी व्यापार की दिशा तुलनात्मक लागत लाभ स्थितियों के द्वारा निर्धारित न होकर ब्रिटेन और भारत के बीच औपनिवेशिक संबंधों द्वारा निर्धारित थी। दूसरे शब्दों में, भारत किन देशों से आयात करेगा और कहां पर अपना माल बेचेगा, यह ब्रिटिश शासक अपने देश के हित में तय करते थे।

यही कारण है कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत का अधिकांश व्यापार ब्रिटेन, उसके उपनिवेशों और मित्र राष्ट्रों के साथ था। यही प्रवृत्ति आजादी के बाद कुछ वर्षों में भी देखने को मिलती है क्योंकि तब तक भारत की अन्य देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित करने में कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई थी।

उदाहरणार्थ, 1950-51 में भारत की निर्यात आय में इंग्लैंड और अमेरिका का हिस्सा 42 प्रतिशत था। उसी वर्ष भारत के आयात व्यय में उनका हिस्सा 39.1 प्रतिशत था।

अन्य पूंजीवादी देशों जैसे फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, जापान इत्यादि और समाजवादी देशों जैसे सोवियत संघ, रोमानिया, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया इत्यादि के साथ बेहद थोड़ा व्यापार था।

जैसे-जैसे इन देशों के साथ राजनैतिक संबंधों का विकास हुआ वैसे-वैसे आर्थिक संबंध भी मजबूत होने लगे। इस प्रकार बहुत से देशों के साथ व्यापारिक संबंधों के विकास करने के अवसर खुलने लगे। अब स्थिति काफी अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के दोष बदलचुकी है और 6 दशक के आयोजन के बाद व्यापारिक संबंध काफी बदल चुके हैं।

विदेश व्यापार का अर्थ-

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