समर्थन मूल्य का विकल्प

मंडियों का ओडिशा विकल्प
देश के कई हिस्सों में किसान तीन नए कृषि कानूनों का जमकर विरोध कर रहे हैं और उनकी आम शिकायत यह है कि जैसे-जैसे इन कानूनों पर अमल होना शुरू होगा, वैसे ही धीरे-धीरे मंडियां खत्म हो जाएंगी जिसका सीधा असर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आधारित फसल खरीद प्रणाली पर पड़ेगा।
लेकिन इस बात के पर्याप्त उदाहरण हैं कि पिछले कुछ वर्षों में जिन राज्यों के पास कोई बेहतर फसल खरीद प्रणाली नहीं थी वे पिछले कुछ सालों में अपनी खरीद को बढ़ावा देने में कैसे कामयाब रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक मजबूत मंडी प्रणाली एक बेहतर खरीद प्रक्रिया की आधारशिला है जैसा कि पंजाब और हरियाणा ने कई सालों में इस बात को दिखाया है। लेकिन वहां अन्य विकल्प भी हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों ने यह दिखाया है कि मंडियों के नेटवर्क के अपने फायदे हैं और यह हमेशा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही बेहतर खरीद के लिए जरूरी नहीं है।
विकेंद्रीकृत प्रणाली में राज्य सरकारें, धान या चावल और गेहूं की सीधी खरीद करती हैं और खाद्य सुरक्षा अधिनियम और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न का भंडार तैयार करने के साथ ही उसका वितरण भी करती है। राज्य द्वारा इस खरीद पर किए गए खर्च को केंद्र पूरा करता है।
यह खाद्यान्न की गुणवत्ता पर भी नजर रखता है और प्रबंध की समीक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि खरीद कार्य सुचारु रूप से किया जा रहा है। अशोक विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर मेखला कृष्णमूर्ति ने 2012 में 'इकनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली' पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र में कहा था कि मंडियों के समर्थन मूल्य का विकल्प जरिये राज्य एजेंसियों और विपणन समितियों के माध्यम से खरीद करके वर्षों से गेहूं और धान खरीद क्षेत्र में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में उभरे। इससे एक ओर किसानों के लिए ऊंची दरें सुनिश्चित हुईं और दूसरी ओर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की कीमतें कम हो गईं।
ओडिशा इस बात की मिसाल है कि पारंपरिक मंडियों, बिचौलियों और कमीशन एजेंटों के जटिल चक्र पर निर्भर रहे बिना खरीद में निरंतर वृद्धि को एक केंद्रीकृत आधार पर कैसे कायम रखा जा सकता है। खरीद के लिए प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) और अन्य को कमीशन का भुगतान किया जाता है । कई विशेषज्ञों का कहना है कि ओडिशा की धान खरीद स्वचालन प्रणाली (पीपीएएस) एक ऐसा मॉडल है जो यह दर्शाता है कि बिचौलियों के हस्तक्षेप के बिना विकेंद्रीकृत खरीद को पारदर्शी तरीके से कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है। महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के नेटवर्क के साथ-साथ 314 ब्लॉकों में फैले लगभग 2,606 पैक्स राज्य में थोक स्तर पर धान खरीद करते हैं। करीब 680 मार्केट यार्ड या संग्रह केंद्र भी इसमें शामिल हैं।
आंकड़े दर्शाते हैं कि 2019-20 खरीफ और रबी के मौसम में राज्य एजेंसियों द्वारा खरीदे गए धान में स्वयं सहायता समूहों की हिस्सेदारी करीब 3 प्रतिशत तक है और पैक्स ने बाकी खरीद की सुविधा प्रदान की। इस प्रक्रिया की अहम बात यह है कि किसान पंजीकरण की एक स्वचालित प्रणाली है जिसका जमीन के रिकॉर्ड से मिलान किया जाता है और फिर क्षेत्र की औसत उपज के साथ गुणा किया जाता है ताकि अधिशेष धान की मात्रा का उचित अंदाजा मिल सके जिसे हरेक किसान राज्य एजेंसी को बेच सकता है। इस बिक्री प्रक्रिया का निरीक्षण राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों द्वारा निर्धारित समय पर किया जाता है जो यह भी सुनिश्चित करते हैं कि मिल मालिक उनकी मौजूदगी में ही धान लें।
पहले पैक्स किसानों को एमएसपी भुगतान करने के लिए सहकारी बैंकों से ऋण लेते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह सुनिश्चित किया गया है कि किसानों को अपना भुगतान पाने के लिए सहकारी समितियों पर निर्भर न होना समर्थन मूल्य का विकल्प पड़े। जैसे ही मिल मालिक धान लेते हैं भुगतान प्रक्रिया एक केंद्रीकृत डेटा-बेस में शुरू हो जाती है समर्थन मूल्य का विकल्प और एमएसपी एक निश्चित अवधि के भीतर किसान के बैंक खाते में जमा हो जाता है। इस प्रणाली को संचालित करने वाली एजेंसी सीएसएम टेक्नोलॉजीज में सहायक उपाध्यक्ष (सॉल्यूशंस) प्रद्युत दास ने कहा, 'यह विकेंद्रीकृत खरीद लेकिन केंद्रीकृत भुगतान विधि की प्रक्रिया है।'
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में साझा फसल उगाने वाले और जिन लोगों ने किसी और को अपनी जमीन की देखभाल के लिए अधिकृत किया है वे इसी तंत्र के जरिये अपना धान बेच सकते हैं। साझा फसल उगाने वालों के मामले में उन्हें जमीन के मालिक से 'एक सहमति पत्र' की आवश्यकता होती है ताकि किसी व्यक्ति को नामांकित किया जाए और इसके लिए नामांकन पत्र की जरूरत होती है।
दास ने कहा कि जब 2012-13 में यह प्रणाली शुरू की गई थी तब लगभग 70,000 किसानों ने पंजीकरण कराया था और अब यह संख्या अब बढ़कर 14.7 लाख से अधिक हो गई है।
दास ने कहा, 'जिन लोगों ने पंजीकरण कराया है और जिन लोगों ने वास्तव में अपना धान बेचा है, उनका प्रतिशत वर्षों से बढ़ रहा है क्योंकि किसान इस प्रणाली को अहम समझते हैं और इसकी पारदर्शिता की सराहना करते हैं। साल 2005-06 में ओडिशा ने लगभग 32 लाख टन धान की खरीद की और यह 2018-19 तक बढ़कर 65 लाख टन हो गया। लेकिन हर प्रणाली की अपनी समर्थन मूल्य का विकल्प खामियां हैं।'
पीपीएएस पिछले कुछ वर्षों में आलोचना के घेरे में आया है। पश्चिमी ओडिशा के कई किसानों ने इस बात को लेकर आलोचना की है कि फसल निर्धारण की केंद्रीकृत प्रणाली के कारण उत्पादन में वृद्धि पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है जिससे उनके पास बिना बिके धान का एक बड़ा भंडार समर्थन मूल्य का विकल्प बचा रह जाता है। ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सुरेंद्र्रनाथ पशुपालक ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में ओडिशा में अच्छी बारिश के कारण धान का अच्छा उत्पादन हुआ है जिससे सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में औसत उपज के बीच का अंतर कम हुआ है। लेकिन खरीद केलिए औसत उपज तय नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि मार्केटिंग करने लायक अतिरिक्त फसल का आकलन करने के लिए औसत उपज निर्धारण बदलने की जरूरत है।'
किसान नेता सरोज मोहंती का मानना है कि ओडिशा के खरीद मॉडल की तुलना पंजाब और हरियाणा से नहीं की जा सकती क्योंकि राज्य में कभी भी मजबूत मंडी तंत्र नहीं था। मोहंती ने कहा, 'ओडिशा में, मंडियों में उचित बुनियादी ढांचा नहीं है और बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। उनकी संख्या भी कम है। इसके अलावा, पैक्स बाजार यार्ड से खरीद करते हैं लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें कोई कर और आढ़तिया नहीं है।'
रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री का जताया आभार
चंडीगढ़- हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज नई दिल्ली में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में दलहन व तिलहन की 6 रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 105 रूपए से लेकर 500 रूपए प्रति क्विंटल बढ़ोतरी करने के निर्णय के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया है।केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह निर्णय किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की वचनबद्धता की दिशा में एक और कदम है। फसलों की बुआई आरंभ होने से ठीक पहले लिए गए निर्णय से किसानों के पास विकल्प होगा कि उन्हें अपने खेत में कौन सी फसल की बुआई करनी है और किस फसल समर्थन मूल्य का विकल्प को बोने से अधिक फायदा हो सकेगा।
105 रूपए से 500 रूपए तक बढ़ा न्यूनतम समर्थन मूल्य,प्रति क्विंटल गेंहू के मूल्य में 110 रूपए तथा सरसों के मूल्य में 400 रूपए होगी बढ़ोतरी – मुख्यमंत्री ने कहा कि गेंहू, सरसों, चना व जौं हरियाणा की प्रमुख रबी फसलों में से हैं। उन्होंने कहा कि गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2125 रूपए, सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5450 रूपए, चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5250 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5335 रूपए तथा जौं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1635 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1735 रूपए प्रति क्विंटल किया गया है। इसी प्रकार मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5500 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 6000 रूपए प्रति क्विंटल व कुसुम का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5441 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5650 रूपए प्रति क्विंटल किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार पिछले कई वर्षों से रबी व खरीफ की दोनों फसलों का बुआई सीज़न आरंभ होने से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के बाद किसानों के पास ये विकल्प होगा कि उन्हें किस फसल की बुआई करने से अधिक मुनाफा हो सकता है।
सरसों व चना खरीदेगा राजफैड
सवाईमाधोपुर ञ्च पत्रिका. बढ़ती कृषि लागत और खुले बाजार में वाजिब दाम नहीं मिलने से परेशान किसानों को राहत देने के लिए सरकार ने चना, सरसों और गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर करने की घोषणा की है। इसमें चना व सरसों का एमएसपी घोषित करने के पश्चात ऑनलाइन खरीदारी की कवायद भी शुरू हो गई है। किसानों को इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीयन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन कराने के बाद ओटीपी की सहायता से किसानों का लॉग इन आईडी व पासवर्ड बन जाएंगे।
जिले में आठ जगहों पर राजफैड की ओर से सरसों व चने की फसल समर्थन मूल्य पर खरीदी जाएगी। वहीं एफसीआई गेहूं फसल का समर्थन मूल्य खरीदेगी। इसमें किसान को अपनी उपज लिखने के साथ एक कॉलम में समय और दिनांक अंकित करनी होगी। किसान अपनी इच्छानुसार दिन और समय डालेगा, उसे उसी दिन व उपज लेकर निश्चित केन्द्र पहुंचना होगा। तय समय में किसान नहीं पहुंचा तो उसे दोबारा पंजीयन की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
राजफैड को किया अधिकृत : इसके लिए राजफैड को अधिकृत किया गया है। खरीद की प्रक्रिया एक अप्रेल से शुरू होगी। इसके लिए राजफैड ने प्रदेश में सरसों की खरीद के लिए 178 एवं चने के लिए 127 खरीद केन्द्र बनाए है। उपज बेचने के लिए पंजीकृत करवाना होगा। यह पंजीयन ई-मित्र या खुद के मोबाइल से किया जा सकेगा। जिन किसानों के पास
यह सुविधा नहीं होगी, उन्हें
ऑन द स्पॉट पंजीयन की सुविधा देय होगी।
इन जिलों में होगी खरीद
प्रदेश में समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद जयपुर, सीकर, झुंझूनू, दौसा, टोंक, श्रीगंगानगर, बीकानेर , चूरू, कोटा , बूंदी, झालावाड़, चित्तौडगढ़़, डूंगरपुर, बाड़मेर, हनुमानगढ़, अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, जैसलमेर , जालोर, सिरोही, जोधपुर , पाली, अलवर, करौली, धौलपुर, सवाईमाधोपुर व भरतपुर में होगी। इसी तरह चने के खरीद केन्द्र जयपुर, सीकर, झुंझुनूं, दौसा, टोंक, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, बीकानेर, चूरू, कोटा, बूंदी, झालावाड़, चित्तौडगढ़़, प्रतापगढ़, उदयपुर , डूंगरपुर, राजसमंद, जैसलमेर, जोधपुर, पाली, जालोर, करौली व सवाईमाधोपुर में स्थापित होंगे।
किसानों को मिलेगा विकल्प
किसान समर्थन मूल्य पर उपज बेचने के लिए पोर्टल पर मनचाही तारीख डाल सकेगा। तब तक किसान बाजार भाव के तेज होने का इंतजार करेगा। बाजार भाव समर्थन मूल्य से ज्यादा होगा, तो वह बाजार में उपज बेच देगा। अगर नहीं हुआ तो समर्थन मूल्य का विकल्प खुला रहेगा।
ये है ब्लॉकवार स्थिति
ब्लॉक सरसों चना गेहूं
सवाईमाधोपुर 1 1 -
खण्डार 1 - -
बौंली - 1 -
बामनवास - 1 -
गंगापुरसिटी 1 - -
गंगापुरसिटी(छाण) - - 1
बौंली(भाड़ौती) - - 1
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