मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है?

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What is Inflation | मुद्रास्फीति का अर्थ | मुद्रा स्फीति के कारण | मुद्रास्फीति के प्रभाव
आर्थिक जीवन में स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक विकास के मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? लिए वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता का होना एक आवश्यक शर्त है। इसके विपरीत वस्तुओं के मूल्यों का लगातार ऊपर चढ़ना लोगों के आर्थिक जीवन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर सकती है।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कीमतों में उतार-चढ़ाव से अनिश्चितता का मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? वातावरण बनता है जो विकास कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है। वर्तमान समय में खुदरा बाजार की वस्तु के मूल्य में दिन पर दिन बढ़ोतरी होती जा रही है। इस प्रकार वर्तमान समय में (मई, 2022 के अनुसार) खुदरा बाजार में (भारत के संदर्भ में) मुद्रास्फीति महंगाई दर 7.79 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह महंगाई ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा एवं शहरी क्षेत्र में मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? कम देखने को मिल रही हैं।
मुद्रास्फीति का अर्थ एवं परिभाषा
मुद्रा प्रसार या मुद्रास्फीति वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिर जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं। आर्थिक दृष्टि से सीमित एवं नियंत्रित मुद्रास्फीति अल्पविकसित अर्थव्यवस्था हेतु लाभदायक होती है, क्योंकि इससे उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है, किंतु एक सीमा से अधिक मुद्रास्फीति हानिकारक है।
प्रोफेसर पीगू के अनुसार, जब आय-सृजन करने वाली क्रियाओं की अपेक्षा मुद्रा आय अधिक तेजी से बढ़ती है, तब मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। मुद्रा-मांग और वास्तविक आपूर्ति के बीच में अंतराल को मुद्रा-अंतराल कहा जाता है। जैसे-जैसे अंतराल बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे कीमतों के सामान्य स्तर में वृद्धि होती रहती है।
अर्थशास्त्री प्रायः यह तर्क देते हैं कि मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिए बुरी नहीं है। जब कीमतें 2-3% वार्षिक दर पर बढ़ती हैं तो निवेश के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार होता है और इससे आय बढ़ने के साथ-साथ रोजगार का स्तर प्राप्त होता है। लेकिन जब कीमतें लगातार दीर्घकाल तक बढ़ती है तो आय और संपत्ति की असमानताएं बढ़ती है और निश्चित आय वाले वर्गों की क्रय शक्ति लगातार कम होती जाती है। वस्तुतः एक ओर देश की अर्थव्यवस्था नाजुक मोड़ पर पहुंच जाती है और दूसरी ओर जनसाधारण का आर्थिक जीवन कष्टप्रद हो जाता है।
मुद्रास्फीति मापक के सूचकांक
भारत में सामान्यता दो प्रकार के मूल्य सूचकांकों को उपयोग में लाया जाता है :
- थोक मूल्य सूचकांक
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
थोक मूल्य सूचकांक :
थोक मूल्य सूचकांक साप्ताहिक तौर पर उपलब्ध होते हैं। इसे मुद्रास्फीति मापने का लोकप्रिय तरीका माना जाता है। भारत में थोक मूल्य सूचकांक का उद्देश्य रुपए की सामान्य क्रय शक्ति को मापना है। इसमें वे सभी वस्तुएं शामिल की जाती है जो महत्वपूर्ण एवं कीमत संवेदनशील है और जिनका क्रय-विक्रय भारत के थोक मूल्य विक्रय की मंडियों में होता है। थोक मूल्य सूचकांक में मुख्य खाद्य पदार्थ, कच्चे माल, अर्द्ध निर्मित वस्तुएं मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? और निर्मित वस्तुएं शामिल की जाती है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक :
भारत सरकार 3 नियम जनसंख्या समूह मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग के लिए तीन प्रकार के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार करती है।
मुद्रास्फीति के कारण
भारत में मुद्रास्फीति के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या समष्टिगत स्तर में समस्त मांग और समस्त आपूर्ति का विवेचन करके की जा सकती है। आयोजन काल में मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि के अलावा न केवल मांग पक्ष की ओर से विभिन्न कारकों का दबाव रहा है, बल्कि पूर्ति पक्ष की ओर से भी अनेक तत्वों का स्फीतिकारी कीमत वृद्धि में योगदान रहा है।
- लोक व्यय में वृद्धि : आजादी के बाद लोकतंत्र प्रणाली के कारण नई संस्थाओं का गठन हुआ तो लोक व्यय में वृद्धि होना स्वाभाविक था। योजना काल में केंद्रीय और राज्य सरकारों के खर्चों में निरंतर भारी वृद्धि हुई है। इस खर्चे का एक बड़ा भाग विकास मदों पर खर्च हुआ। विकास के बाद आय की वृद्धि से लोगों की मुद्रा आय में वृद्धि हुई, किंतु इसके साथ उपयोग वस्तुुओं के उत्पादन या आपूर्ति में वृद्धि नहीं हुई।
- घाटे का वित्त प्रबंधन : जब सरकार अपने खर्चे पूरे करने के लिए पर्याप्त मात्रा में राजस्व की व्यवस्था नहीं कर पाती तो वह बैंकिंग व्यवस्था से उधार लेकर अपने घाटे को पूरा करती है। साधन जुटाने की इस रीति को घाटे का वित्त प्रबंधन कहते हैं। कहने का अर्थ यह है कि योजनाओं के लिए वित्त प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया घाटा वित्तीयन ने भी कीीमतोों को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया है। वित्त प्राप्त करने के इस तरीके से मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती हैै, और यदि इसके साथ वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति नहीं बढ़ती, तो इसके फलस्वरूप कीमतें बढ़ने लगती हैं।
- अनियमित कृषि समृद्धि : पिछले 60 वर्षों में कृषि क्षेत्र में यद्यपि कोई क्रांतिकारी समृद्धि नहीं हुई है तथापि इसमें संदेह नहीं है कि इस क्षेत्र में पर्याप्त विकास हुआ है जिसकी वजह से खाद्यान्नों के उत्पादन में ढाई प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई है। लेकिन प्रथम पंचवर्षीय योजना काल को छोड़कर सामान्यतः कृषि उत्पादन उस दर से नहीं बढ़ा जिस दर से कृषि वस्तुओं, विशेषकर खाद्यान्नों की मांग बढ़ी। इस दौरान कृषि उत्पादन बढ़ने की दर स्थिर ही नहीं रही, बल्कि कुछ वर्षों में तो उत्पादन में कमी हुई। कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि और इसमें हो रहे उतार-चढ़ाव कीमतों की बढ़ोतरी में बहुत हद तक जिम्मेदार रहे हैं।
- औद्योगिक उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि : 1991 के बाद की अवधि में औद्योगिक उत्पादन में व्यापक उतार-चढ़ाव होते रहे, जिससे अनिश्चितता का वातावरण बना रहा। औद्योगिक क्षेत्र में इस मंदी के कारण कई औद्योगिक वस्तुओं की कमी हुई, जिससे कीमतों पर दबाव बढ़ा।
- सट्टेबाजी और जमाखोरी की प्रवृत्ति : सट्टेबाजी और जमाखोरी की प्रवृत्ति भी मुद्रास्फीति को बढ़ावा देती है। जिन वर्षों में देश में उत्पादन गिरा उस समय जमाखोरी से वस्तुओं का अभाव और अधिक बढ़ गया और कीमतें तेजी से बढ़ने लगी। यद्यपि भारत में जमाखोरी हमेशा से होती रही है लेकिन सितंबर 1998 में कीमतों में हुई वृद्धि से इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। दरअसल जमाखोरी उत्पादन और अंतिम उपयोग के बीच कई स्तरों पर पाई जाती है – उत्पादन के स्तर पर, थोक विक्रेता के स्तर पर, फिर फुटकर विक्रेताओं के स्तर पर और अंत में उपभोक्ताओं की संचयी प्रवृत्ति से मांग अपेक्षित बढ़ जाती है जबकि अन्य वर्गों की जमाखोरी से आपूर्ति में गिरावट आती है। इसके प्रभाव से कीमत वृद्धि की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
Currency मुद्रा की परिभाषा, मुद्रा का अर्थ एवं प्रकार
अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसमे उपयोगिता ,उपभोग, उपभोक्ता का कार्यान्वयन होता हैं जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है।
‘अर्थशास्त्र’ शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘धन का अध्ययन’।
किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।
अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है वह समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा होता है
कुल उपयोगिता और सीमांत उपयोगिता में संबंध ( Relation in total utility and marginal utility )
- जब_कुल उपयोगिता बढ़ती है तब सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती है
- जब_कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तब सीमांत उपयोगिता शुन्य होती है
- जब कुल उपयोगिता घटती है तब सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक होती है
- कुल उपयोगिता सीमांत उपयोगिता का + होती है।
- सीमांत उपयोगिता कुल उपयोगिता वक्र के डाल को मापती है।
कुल उपयोगिता और सीमांत उपयोगिता में संबंध की व्याख्या सर्वप्रथम जेवेन्स ने की.।
मुद्रा की परिभाषा एवं कार्य
मुद्रा की परिभाषा Currency Definition
मुद्रा_एक ऐसा मूल्यवान रिकॉर्ड है या आमतौर पर वस्तुओं और सेवाओं के लिए भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाने वाला तथ्य है मुद्रा यह एक सामाजिक-आर्थिक संदर्भ के अनुसार ऋण के पुनर्भुगतान के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता हैं। ( Currency मुद्रा )
हिन्दी वार्ता
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हिन्दी सामान्य ज्ञान के प्रश्न उत्तर का अभ्यास विद्यार्थियों के लिए सभी प्रतियोगी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अक्सर विद्यार्थी अन्य विषयों की तैयारी तो अच्छी तरह से कर लेते हैं किन्तु सामान्य ज्ञान की जानकारी कमजोर होने के कारण परीक्षा में असफल हो जाते हैं। अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर क्विज के हजारों प्रश्न हमने यहाँ संकलित किए हैं।
bihar board class 12th economics | मुद्रा और बैंकिंग
से प्राप्त की गई वस्तु से अपनी-अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करते हैं । इसको आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में दोहरे संयोग की कमी या अभाव पाया जाता है। उदाहरण के लिए गेहूँ उत्पादक को गेहूँ के बदले में कपड़ों की आवश्यकता है लेकिन ऐसा ढूँढ़ना बड़ा मुश्किल काम है कि ऐसा वस्त्र उत्पादक मिल जाए जो बदले में गेहूँ स्वीकार कर सकता है। आवश्यकताओं के ऐसे संयोगों की अनुपस्थिति या कमी को ही दोहरे संयोग के अभाव की संज्ञा दी जाती है
वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य मापन की कोई सामान्य इकाई नहीं होती जिसमें सभी वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य अंकित किए जा सके और सर्वसम्मति से स्वीकार किए जा सके।
एक राज्य के या दो जिले तक सीमित रखा गया । ये छोटे और सीमित किसानों, खेतिहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं । इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण मुद्रा के मूल्य से क्या अभिप्राय है? अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि,
"सांकेतिक मुद्रा मूल्य" के बारे में
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